“मुसरत मेरी बहन है मां. मैं कैसा भाई हुआ, अगर मैं उसके निकाह पर नहीं आया? और माँ, मैं कब तक भागता रहूँगा? कश्मीर मेरा घर है. आप सब तो वहां रहोगे, क्या मैं अलग रहूँगा…. हमेशा!” ये अलफ़ाज़ 9 मई 2017 को कश्मीर में अगवा करके कायराना तरीके से क़त्ल किये गये लेफ्टिनेंट उमर फयाज़ ने अपनी माँ से बातचीत के दौरान फोन पर तब कहे थे, जब परिवार उसकी सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद था.
माँ बेटे के बीच हुई उस बातचीत से पता चलता है कि आतंकवाद प्रभावित कश्मीर में उन परिवारों का क्या हाल होता है जिनके सदस्य वहां सुरक्षा बलों और पुलिस संगठनों में तैनात हैं. इस बातचीत के अलावा ‘अनडॉनटेड : ले. उमर फ़याज़ ऑफ़ कश्मीर’ में ऐसा बहुत कुछ है जो न सिर्फ लेफ्टिनेंट उमर फ़याज़ की ज़िन्दगी, उसकी सोच और कश्मीरियत से रूबरू कराता है बल्कि ये भी बताता है कि सेना व सैनिकों की ऐसी कौन सी चुनौतियां है जो आमतौर पर दूसरों को न महसूस होती हैं न दिखाई देती हैं.
‘अनडॉनटेड : ले. उमर फ़याज़ ऑफ़ कश्मीर’ ( UNDAUNTED : LT. UMMER FAYAZ OF KASHMIR ) यानि ‘बेख़ौफ़ : कश्मीर का लेफ्टिनेंट उमर फ़याज़’ पुस्तक की लेखिका भावना अरोड़ा सेना से जुड़े विषयों को इसलिये भी बखूबी समझती हैं क्यूंकि खुद सेना के परिवार से जुड़ी हैं. हाल ही में पटियाला से चंडीगढ़ के प्रेस क्लब में किताब की रिलीज़ के सिलसिले में आई भावना अरोड़ा से लौटते वक्त लिविंग इन्डिया न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में मुलाक़ात हुई.
इससे पहले तीन किताबें लिख चुकी भावना कहती हैं कि ये किताब उनके दिल के करीब है. बातचीत के दौरान उनके हाव भाव से लगा शायद उनके जेहन में उन पलों का अक्स उभर आया जो उन्होंने इस किताब को लिखने की कवायद के दौरान कश्मीर में लेफ्टिनेंट उमर फयाज़ के परिवार, मित्रों और फ़ौजी साथियों के साथ बिताये थे. भावना अरोड़ा बड़े फ़ख्र से बताती भी हैं (और कहें भी क्यूँ न) कि वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं जिसकी अब चौथी पीढ़ी सेना की सेवा कर रही है, ‘मेरे दादा जी सेना में थे… अभी भी मेरा भाई सेना में है’.
अंग्रेजी में लिखी और छपी ‘अनडॉनटेड : ले. उमर फयाज़ ऑफ़ कश्मीर’ के 332 पन्नों की शुरुआत ही बेहद दिलचस्प है और इसे सेना के अधिकारियों ने पढ़ने के बाद ऐसी टिप्पणियाँ की हैं कि किताब के पन्ने खुद ब खुद पलटते रहते हैं. जीवंत वृतान्त सा लगते हैं घटनाक्रम. पुस्तक के आवरण पर तो भारतीय सेना के प्रमुख जनरल बिपिन रावत की ही टिप्पणी हैं जिसमें उन्होंने लेफ्टिनेंट उमर फयाज़ को इतिहास में हमेशा जिंदा रहने वाला ऐसा नायक बताया है जिसने देश सेवा करने के लिए तमाम तरह के विपरीत हालात का सामना किया.
कुछ ही महीने पहले 2 राजपूताना राइफल्स में कमीशन हासिल करने के बाद 23 बरस का ये नौजवान लेफ्टिनेंट उमर फयाज़ पहली बार छुट्टी लेकर घर लौटा था और बेहद शौक से ममेरी बहन की शादी में गया था. यहीं उसे दुल्हन के सामने ही घर से अगवा करके नकाबपोश आतंकवादी ले गये थे. इसके बाद इस निहत्थे जवान को बेहद कायराना तरीके से मार डाला गया था. फ़याज़ का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने कश्मीरी होकर सेना में जाने का हौसला दिखाया था जो वहां सक्रिय आतंकवादी संगठनों के लिए चुनौती है. उमर फ़याज़ अब शहादत के बाद भी कई कश्मीरी नौजवानों के लिए प्रेरणा है.
लेखिका भावना अरोड़ा ने ये पुस्तक 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में हिस्सा ले चुके अपने दादा के साथ साथ उनके साथ हमेशा चट्टान की तरह खड़ी रहीं अपने दादी को समर्पित की है. वह बताती हैं कि इस किताब को लिखने के लिये उन्होंने कई महीने कश्मीर के चक्कर लगाये और इस दौरान उनका लेफ्टिनेंट उमर फयाज़ के परिवार से बेहद भावुक नाता बन गया.