कद पांच फुट 11 इंच, अव्वल नम्बर की फिटनेस के साथ सधा हुआ शरीर, कड़क आवाज़, ज़बरदस्त जोश और टीम लीडर के जज्बे और गुणों से लबरेज़ योगेन्द्र सिंह राठौर जब परेड की कमान सम्भालते हैं तो हर किसी के जेहन और जुबां पर यही अल्फाज़ होते हैं – परेड हो तो ऐसी. कुछ तो ख़ास बात होगी ही जो दुनिया की सबसे बड़ी बार्डर मैनेजमेंट फ़ोर्स कहलाने वाली सीमा सुरक्षा बल (BSF बीएसएफ) के कमांडेंट योगेन्द्र सिंह राठौर को एक बार फिर बीएसएफ स्थापना दिवस परेड कमांड करने के लिए चुना गया है वो भी तब जबकि 50 साल की उम्र पार कर चुके हैं और इनसे भी जवान और बेहतर दिखने वाले कम उम्र के अधिकारी परेड कमांड करने के लिए उपलब्ध हों.
राजस्थान के पाली ज़िले से मूल रूप से ताल्लुक रखने वाले बीएसएफ कमांडेंट योगेन्द्र सिंह राठौर ऐसे पहले अधिकारी होने का रिकॉर्ड बनायेंगे जिसने तीन बार बीएसएफ दिवस की परेड कमांड की हो. फ़ोर्स के स्टार की ये पांचवीं परेड होगी जो कमांडेंट राठौर कमान करेंगे. वो ऐसे पहले और बीएसएफ के तो ऐसे एकमात्र अधिकारी भी हैं जिसने केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 21 अक्टूबर को होने वाली स्मृति दिवस परेड कमांड की हो. इस बारे में किये गये सवाल पर कमांडेंट राठौर का सिर्फ इतना ही कहना है कि वो ड्रिल पर बहुत मेहनत करते हैं और जोश को लगातार ऊँचे स्तर पर रखते हैं, अपना भी और साथियों का भी.”
परेड कमांड का ये सिलसिला 2012 में केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की संयुक्त परेड के कमान अधिकारी बनने के बाद से ऐसा शुरू हुआ कि कमांडेंट योगेन्द्र सिंह राठौर को बीएसएफ में ज्यादातर अहम मौके पर परेड कमांड करने के मौके दिए जाने लगे. चाहे वो बीएसएफ के महानिदेशक की विदाई परेड हो या फिर बल के स्थापना दिवस के मौके पर होने वाली शानदार और विशाल परेड हो.
करगिल युद्ध के समय यानि 20 साल पहले कश्मीर में सीमा पर तैनाती के वक्त ऑपरेशन विजय में सक्रियता रही हो या नक्सली बहुल क्षेत्र में हिंसा से निपटना हो या फिर पूर्वोतर के त्रिपुरा प्रान्त के हिंसक हालात से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से कोसोवो में तैनाती, हर जगह कमांडेंट योगेन्द्र सिंह राठौर ने अपने काम की छाप छोड़ी. फरवरी 1993 में बीएसएफ में बतौर सहायक कमांडेंट भर्ती हुए कमांडेंट राठौर न सिर्फ ड्यूटी को हर हाल में मुस्तैदी से करने में यकीन करते हैं बल्कि मातहतों से काम कराने और उन्हें काम सिखाने में भी दिलचस्पी लेते है. अधिकार पूर्ण तरीके काम करने की उनकी कला ही शायद ये वजह है जो उनके मातहत परेड करने वाली टुकड़ियों का मार्च पास्ट बेहद सराहनीय होता है.
हुनर और उपलब्धियां :
कई गुणों के धनी कमांडेंट राठौर बास्केट बॉल, फ़ुटबाल और टेनिस के भी खिलाड़ी हैं. और तो और अभिनय भी कर लेते हैं. टेलीफिल्म “कश्मीर -एक सबक’ में एक्टिंग भी कर चुके हैं. विभिन्न खेलों में फ़ोर्स के स्तर पर हिस्सा लेने वाले कमांडेंट राठौर को इंस्ट्रक्टर के बाद सीनियर इंस्ट्रक्टर (Senior Instructor) के तौर पर तैनात किया गया जो अधिकारियों को भी ट्रेन्ड करते हैं. खुद भी बीएसएफ के तहत विभिन्न तरह के कोर्सेज़ और ट्रेनिंग ले चुके कमांडेंट राठौर मध्य प्रदेश में सेना के मऊ स्थित आर्मी वार कॉलेज और हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकेडमी में भी कोर्स कर चुके हैं. वर्तमान में कमांडेंट राठौर बीएसएफ की ग्वालियर स्थित अकेडमी के एडजुडेंट है. उनके नेतृत्व वाले इंस्ट्रक्टर्स के दल ने, बीएसएफ में सीधे सहायक कमान्डेंट भर्ती हुए, अब तक के सबसे बड़े बैच को ट्रेंड करने की उपलब्धि हासिल की है.
यूँ तो उन्हें सराहनीय कार्यों के लिए समय समय पर मेडल, प्रशस्ति पत्रों जैसे सम्मान से नवाज़ा जा चुका है और अब तक उन्हें महानिदेशक की तरफ से 13 कमेंडेशन रोल (DG’s commendation Roll) मिल चुके हैं. लेकिन उनके लिए और उनके साथियों के लिए सबसे अहम और यादगार पल वो थे जब नक्सलियों के घात लगाकर किये गये हमले में घायल अपने साथियों को जिंदगियां बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान भी जोख़िम में डाल दी थी. इस हमले में बीएसएफ के दो जवान मारे गये थे और पांच घायल हुए थे. कमान्डेंट योगेन्द्र सिंह राठौर खबर मिलने पर हमले के बीच में ही अपने साथ कुछ जवानों को लेकर घटनास्थल पर पहुंचे घायलों को वहां से निकाल सही समय पर उन्हें अस्पताल पहुँचाया जिसकी वजह से घायलों की जान बच सकी.
स्केच आर्टिस्ट :
सीमा सुरक्षा बल में भर्ती होने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा बताते हैं कमांडेंट राठौर. ये तब की बात है जब वो स्कूल में पढ़ते थे. स्कूल अध्यापक पिता की सन्तान योगेन्द्र सिंह राठौर ने बेशक सोचा नहीं था लेकिन कुदरत ने उन्हें वर्दी धारण कराना जो ठान रखा था. योगेन्द्र सिंह राठौर के बारे में ये बात कम ही लोग जानते हैं कि वो सुन्दर स्केच बनाया करते हैं. सेना की गाड़ियों, जाते फौजियों के स्केच बनाना उन्हें बहुत पसंद था और ये स्केच उनसे बनते भी बेहतरीन थे. वर्दी, फ़ौज, बंदूक शायद उन्हें तभी से आकर्षित करने लगी. एक कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन तब उन्हें एनसीसी में जाने का मौका नहीं मिला और हैरानी की वजह थी उनके कद का कम होना. योगेन्द्र राठौर ने दूसरे कॉलेज का रास्ता पकड़ा और वहां एनसीसी के कैडेट ही नहीं अधिकारी भी बने. इसके बाद केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की परीक्षा पास की और बीएसएफ में चुन लिए गये.
योगेन्द्र सिंह राठौर कहते हैं,” किस फ़ोर्स को ज्वाइन करना है ये नहीं सोचा था कभी, हां! वर्दी पहनने का चाव हमेशा रहा”.