जांबाज कर्नल पुत्र के आखिरी दर्शन के लिए बुजुर्ग माँ पिता की 2 हज़ार किमी की सड़क यात्रा

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Col Navjot Singh Bal
कर्नल नवजोत सिंह बल की (दाहिने) बेंगलुरु के अस्पताल में ली गई सेल्फी. उनका दायां हाथ नहीं था.

अपनी आखिरी तस्वीर खुद लेने के कुछ घंटों बाद ही इस दुनिया से कूच कर गये भारतीय सेना के शौर्य चक्र से सम्मानित जांबाज कर्नल नवजोत सिंह बल की जिंदादिली और कुर्बानी ही शायद वो वजह थी जो उनके प्राणांत के बाद घटे घटनाक्रम को लोग अफ़सोसनाक और शर्मनाक कह रहे हैं. इंसानियत के दुश्मन, सबसे खतरनाक रोग कैंसर, से लड़ते हुए अपना दाहिना हाथ गंवा बैठा भारतीय सेना की 2 पेरा (स्पेशल फोर्सेस) का ये कमान अधिकारी कर्नल नवजोत सिंह बल आखिरी सांस तक जिंदादिली की मिसाल बना रहा. जब तक आखिरी बार बिस्तर नहीं पकड़ा तब तक सेना की सेवा करते रहे कर्नल बल ने बृहस्पतिवार को जब बंगलुरु के अस्पताल में अंतिम सांस ली तो माता पिता दो हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा फासले पर देश के सीमाई इलाके पंजाब के शहर अमृतसर में थे.

अपनी उम्र से आधी उम्र के अपने बेटे नवजोत को (39 वें साल में) गंवाने वाले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल के एस बल और उनकी पत्नी का दर्द कोरोना संकट की वजह से लगे कर्फ्यू और लॉक डाउन की स्थिति ने तो बढ़ाया ही भारत की अफसरशाही की लाल फीताशाही और शासन के तौर तरीकों में असंवेदनशीलता ने और तकलीफ बढ़ा दी. उम्र के 7 वें दशक में जी रहे इस बुजुर्ग बल दम्पति को अमृतसर से बंगलुरु तक का सफर सड़क मार्ग से करना पड़ रहा है. शनिवार की शाम समाचार लिखे जाने तक के समय में वो कार में यात्रा कर रहे थे. हवाई उड़ाने बंद होने की वजह से उनके पास कोई साधन नहीं था क्यूंकि सरकार तक पहुंची उनकी दरख्वास्त पर लिए गये फैसले को अमली जामा पहनाने में अधिकारियों की हीला हवाली ने इन्हें ये कष्ट सहने को मजबूर कर दिया.

Col Navjot Singh Bal
भारतीय सेना के शौर्य चक्र से सम्मानित जांबाज कर्नल नवजोत सिंह बल

अंग्रेज़ी दैनिक ट्रिब्यून की खबर पर यकीन किया जाए तो कर्नल नवजोत सिंह बल के माता पिता को सेना के उस विमान से बंगलुरु तक पहुँचाने की हरी झंडी चीफ आफ डिफेन्स स्टाफ बिपिन सिंह रावत के जरिये रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दे दी थी. कहा जा रहा है कि क्यूंकि विमान गृह मंत्रालय की सेवा में था तो डिफेन्स के अधिकारी ने गृह मंत्रालय के अधिकारी से अनुमति मांगी लेकिन फोन पर मिली अनुमति को नाकाफी मानते हुए इसे लिखित में देने को कहा. ये भी तब जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ही कोविड संकट से निपटने के लिए बने ग्रुप आफ मिनिस्टर के मुखिया हैं. इस बीच कर्नल नवजोत सिंह बल के पुराने साथियों ने अपने संपर्को और निजी स्रोतों का इस्तेमाल किया और बुजुर्ग बल दम्पति को दिल्ली से बंगलुरु तक लाने के लिए चार्टेड हेलिकॉप्टर का बन्दोबस्त किया जिस पर 22 लाख रूपये खर्च आना था. ये पैसा उन्होंने आपस में इकट्ठा करके देना था. लेकिन और देरी के जोखिम से बचने के लिए मजबूर लेफ्टिनेंट कर्नल के एस बल और उनकी पत्नी ने कार से ही चलते रहने का निर्णय लिया.

शौर्य चक्र से सम्मानित कर्नल नवजोत का परिवार अमृतसर का रहने वाला है लेकिन उनकी पत्नी आरती और 8 व 4 साल के दो बेटे बंगलुरु में रह रहे थे. यहीं पर पैरा (स्पेशल फोर्सेस) रेजिमेंटल सेंटर भी है. तय कार्यक्रम के मुताबिक़ कर्नल नवजोत बल के माता पिता को शनिवार की रात बंगलुरु पहुँच जाने की उम्मीद है. ऐसे में सम्भावना है कि रविवार को कर्नल नवजोत बल का अंतिम संस्कार हो. वैसे सरकार ने कर्नल बल का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार दिल्ली छावनी स्थित बरार स्क्वेयर शवदाह गृह पर करने का प्रस्ताव रखते हुए बल परिवार से कहा था कि उन हालात में पार्थिव शरीर बंगलुरु से विमान से ले आया जाएगा लेकिन परिवार के सदस्य चाहते थे कि संस्कार बंगलुरु में ही हो.

बुजुर्ग बल दम्पति के सड़क मार्ग से 2 हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा की यात्रा पर निकलना और उन्हें विमान में ले जाने में लगे अड़ंगे की सूचना सोशल मीडिया पर और खासतौर पर सैन्य हलकों में वायरल हो गई. कई पूर्व सैनिकों और अधिकारियों ने इस पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए सरकार और सिस्टम की आलोचना की है. इस तरह की प्रतिक्रिया करगिल युद्ध के समय भारत के सेनाध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक ने दी है. वहीं खुद पेराट्रूपर रहे भारतीय सेना के पूर्व डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल, मिलिटरी ऑपरेशंस) लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया, लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग, सैन्य ऑपरेशन के दौरान एक टांग गँवा चुके और भारत के पहले ब्लेड रनर के तौर पर विख्यात मेजर डी पी सिंह समेत कई पूर्व सैनिकों ने सरकारी तंत्र के रवैये की आलोचना की है.