सीआरपीएफ का अधिकारी जिसने एक जवान को बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाली

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छत्तीसगढ़ में तैनाती के दौरान गांव के बच्चों के बीच सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट सागर गणेश बोराड़े

नक्सलियों के सफाए के लिए उनके गढ़ में घुसकर किए जाने वाले ‘ऑपरेशन संकल्प ‘ का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तो इस युवा अधिकारी का ज़िक्र लाज़मी होगा . नाम है सागर गणेश बोराड़े जो  केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल ( central reserve police force ) की कोबरा बटालियन (commando battalion for resolute action) में सहायक कमान्डेंट हैं लेकिन  वर्तमान में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती हैं. नक्सलियों की छिपाई आईईडी के धमाके की चपेट में आने से यह युवा अधिकारी बुरी तरह तब घायल हुआ जब एक रेस्क्यू मिशन पर जाते समय  टीम को लीड कर रहा था और रास्ते में अपने एक साथी सिपाही को बचाने की कोशिश की. वह जवान सलामत है लेकिन  सागर ने एक टांग गंवा दी. अधिक खून बहने और संक्रमण होने के कारण डॉक्टरों को सागर की टांग काटनी पड़ी.  सागर आईसीयू में  है और सब उनकी सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे हैं .

मूल रूप से महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के कल्याण गांव के 33  वर्षीय  सागर गणेश बोराड़े ने  मुंबई यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की है और एक पढ़े लिखे सम्पन्न परिवार में तमाम सुख सुविधाओं के बीच पला बढ़ा .  सागर चाहता तो इंजीनियरिंग के बाद मास्टर्स करके देश विदेश की  किसी बड़ी कम्पनी में मोटा पैकेज हासिल करके परिवार के साथ  मौज में  जीवन बिता सकता था लेकिन वर्दी का जूनून उसे  सीआरपीएफ में ले आया . वर्दी पहनना सागर का बचपन का सपना था क्योंकि वह वर्दी पहन देश सेवा करने को तरजीह देता है .

सीआरपीएफ के प्रवक्ता मोसेस दिनाकरण ने बताया कि सागर के घायल होने की घटना छत्तीसगढ़ – तेलंगाना बॉर्डर पर बीजापुर में , केजीएच के नाम से पहचाने वाले इलाके ,  कर्रेगुट्टा पहाड़ी क्षेत्र में हुई . नक्सलियों के इस गढ़ में  21 अप्रैल से ‘ऑपरेशन संकल्प ‘  चल रहा है और अब तक इसमें 26 नक्सली मारे जा चुके हैं और काफी असला भी बरामद हुआ है . छह जवान भी इसमें अब तक घायल हुए हैं .  ऑपरेशन संकल्प में जिला रिजर्व गार्ड (drg ), बस्तर फाइटर्स, स्पेशल टास्क फोर्स (  stf ), राज्य पुलिस की सभी इकाइयों, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (crpf) और इसकी विशिष्ट इकाई कोबरा सहित विभिन्न इकाइयों के तकरीबन  24,000 सुरक्षाकर्मी शामिल हैं

सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट सागर गणेश बोराड़े

दरअसल  कर्रेगुट्टा पहाड़ी में इस नक्सलरोधी  अभियान में 151 बटालियन का जनरल ड्यूटी जवान धनुराम बस्तरिया  घायल हो गया था जो  204 कोबरा बटालियन से सम्बद्ध था . धनुराम को इलाज के लिए वहां से जल्दी से जल्दी सुरक्षित निकालना ज़रूरी था .  यह एक बेहद संवेदनशील और खतरनाक इलाका माना जाता है.  यह इलाका  न केवल घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों से घिरा है, बल्कि माओवादियों के सबसे मजबूत सैन्य इकाई ‘ बटालियन नंबर 1 ‘ का गढ़ यहीं है . विशेष रूप से नक्सली कमांडर माड़वी हिडमा की गतिविधियां इसी इलाके में केंद्रित हैं . माओवादियों की तेलंगाना राज्य समिति के वरिष्ठ कैडरों की यहां मौजूदगी की सूचना भी थी . इससे यह क्षेत्र और भी ज्यादा  खतरनाक बन जाता है.

सर्च ऑपरेशन और घायल जवान को निकालने के लिए  कोबरा के सहायक कमांडेंट सागर बोराड़े साहस और नेतृत्व का परिचय देते हुए खुद टीम को लीड कर रहे थे. इसी दौरान उनको वहां छिपा कर लगाई गई आईईडी का अहसास हुआ. साथ चल रहे एक जवान को उसकी चपेट में आने से बचाने के लिए सागर उस तरफ तेजी से बढ़े . वह जवान तो बच गया लेकिन इस कोशिश में सागर एक आईईडी की चपेट में आ गए . तेज धमाका  हुआ और वह बुरी तरह घायल हो गए . उनकी टांग के एक बड़े हिस्से को क्षति पहुंची. खून से लथपथ और असहनीय  पीड़ा में होने के बावजूद सागर बोराड़े ने अपने होश नहीं खोए. उनको उपचार के लिए पहले जगदलपुर और उसके बाद रायपुर लाया गया . वहां से एयर लिफ्ट करके दिल्ली में एम्स में लाया गया. क्योंकि रक्तस्राव ज्यादा हो चुका  था और साथ ही संक्रमण  भी हो  गया . ऐसे में डॉक्टरों को बायीं टांग का बड़ा हिस्सा काटकर अलग करना पड़ा .

सागर बोराड़े की पत्नी निकिता ने रक्षक न्यूज़ को बताया कि सागर अभी आईसीयू में भर्ती हैं लेकिन डॉक्टरों ने  उनकी हालत  स्थिर बताई  है. सागर बेमिसाल जीवटता और मानसिक ताकत का परिचय दे रहे हैं, जो एक सच्चे सैनिक की पहचान मानी जाती है.  सागर गणेश बोराड़े के परिवार में उनसे पहले कोई भी सेना या पुलिस जैसे किसी वर्दीधारी संगठन में नहीं गया लेकिन  सैनिक की वर्दी पहनना उनका हमेशा सपना रहा . उनके इस सपने को पूरा करने में परिवार ने सहयोग किया . सीआरपीएफ अधिकारियों के 52 वें बैच के लिए 2019 में सागर का  चयन हो गया था लेकिन कोरोना वायरस फैलने से हुई महामारी कोविड 19 के कारण उस साल ट्रेनिंग नहीं हो सकी. लिहाज़ा 2022 में  ट्रेनिंग पूरी करके सागर बोराडे 53 वें बैच के अधिकारी बने.  इसी बीच उनका निकिता से विवाह हुआ जोकि आईटी विशेषज्ञ हैं और एक कम्पनी में सूचना सुरक्षा का काम करती हैं .

निकिता एक जीवन साथी के तौर पर  ही  सागर की प्रशंसा नहीं करती बल्कि वह उनमें मौजूद जिंदादिल जुझारू सैनिक की भी मुरीद हैं . निकिता बताती हैं कि ट्रेनिंग पूरी करने के बाद सागर ने सामान्य ड्यूटी करने की जगह नक्सली गढ़ में  खतरे वाली जगह छत्तीसगढ़ में पहली  पोस्टिंग चुनी और कोबरा बटालियन का हिस्सा बने. इस स्थान पर तैनाती के उनके तीन साल हो गए हैं . निकिता कहती हैं कि उनको कभी कभी यह सोच कर हैरानी होती है कि तमाम सुख सुविधायुक्त वातावरण में पला सागर जैसा शक्स इतनी मुश्किल भरी ज़िन्दगी को कैसे पसंद से जी सकता है जहां तरह तरह की चुनौतियों और खतरों का अम्बार है. वो बताती हैं कि 6 महीने की कठिन ट्रेनिंग के बाद जब सागर पहली दफा घर लौटे तो सहज ही पहचान पाना आसान नहीं था क्योंकि पूरा हुलिया बदल चुका था.

तीन साल की तैनाती के दौरान सागर ने कई नक्सलरोधी अभियानों में हिस्सा लिया. ऐसे में तीन मौके ऐसे आए जब उन्होंने गोलीबारी का सामना किया . यही नहीं सहायक कमान्डेंट सागर  गणेश बोराड़े दो अलग अलग घटनाओं में आईईडी का पता लगा टीम को होने वाले नुक्सान से बचाया. इतने कम समय के कार्यकाल के दौरान सागर को डीजी डिस्क और प्रशंसा , आईजी प्रशंसा प्रमाण पत्र व अन्य  प्रशंसा प्रमाण पत्र मिले . 

वहीं सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नक्सलियों के गढ़ कर्रेगुट्टा हिल्स के ज़्यादातर इलाके में तलाशी लेते और नक्सलियों से मुकाबला करते हुए सुरक्षा बल हिल टॉप ( पहाड़ के शिखर ) वाले क्षेत्र की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं . उम्मीद की जा रही है एक पखवाड़े से यहां चल रहा नक्सलरोधी अभियान दो तीन दिन में पूरा हो जाएगा.उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद के खात्मे की आखिरी तारीख 31 मार्च 2026 तय करते हुए इसकी घोषणा भी की हुई है. इस दिशा में हो रही प्रगति की वह समय समय पर समीक्षा भी करते हैं .ऐसे हालात सुरक्षा बलों के सामने चुनौती के साथ दबाव भी है.