अविनाश साबले : भारतीय सेना में खेल की दुनिया का यूँ चमका सितारा

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भारतीय सेना का जवान अविनाश साबले

सियाचिन में शून्य से भी 50 डिग्री कम तापमान में खून को जमा देने वाली ठंड से लेकर राजस्थान में जिस्म को जला देने वाली भीषण गर्मी में तपने के बाद, भारतीय सेना का जवान अविनाश साबले (Avinash Sable) एक ऐसा खरे सोने का सितारा बनकर निकला है जिससे भारत में तो कोई मुकाबला करने वाला है ही नहीं. खुद से मुकाबला और खुद के लिए चुनौतियां खडी करके उनसे पार पाता हुआ ये मराठा सैनिक स्टीपल चेज़ (Steeplechase – बाधा दौड़) में ना सिर्फ अपना बनाया रिकॉर्ड फिर से खुद तोड़ चुका है बल्कि ऐसा करके उसने, दुनिया के सबसे बड़े खेल मुकाबले यानि ओलम्पिक में भी हिस्सा लेने की अपनी जगह पक्की कर ली है.

दोहा में हाल ही में हुई विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप (World Athletics Championships) में महार रेजिमेंट के इस मराठा जवान अविनाश ने 3000 मीटर की स्टीपल चेज़ ( Steeplechase – बाधा दौड़ ) में अपना ही बनाया रिकॉर्ड फिर से तोड़ा है . अविनाश साबले ने ये दौड़ 8 मिनट 21.37 सैकंड में पूरी की जो उनके पिछले समय से तो कम है ही साथ ही टोक्यो में अगले साल होने वाले ओलम्पिक प्रतिस्पर्धा के लिए तय किये गये क्वालिफाइंग समय से भी कम है . लिहाज़ा इस मापदंड के मुताबिक़ अविनाश ओलम्पिक में स्टीपलचेज़ मुकाबले में जाने के लिए पात्र हो गये हैं . हालांकि इस समय के साथ वो दोहा में हुए अंतिम मुकाबले में 13 वें नम्बर पर रहे लेकिन ये कामयाबी भी भारत के एथलीटों की हासिल कामयाबियों में से सबसे उपर रहने वाली कामयाबी में गिनी जायेगी . सन 1952 के बाद ओलम्पिक खेलों के इस मुकाबले के लिए क्वालीफाई होने वाले अविनाश पहले भारतीय हैं . वैसे भी इस मुकाबले में अव्वल रहे केन्या के ओलम्पिक चेम्पियन कोंसेल्सस किपरुतो , अविनाश से 20 सैकंड ही आगे थे .

खेल में बदलाव :
महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गाँव के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अविनाश साबले सात साल पहले भारतीय सेना में भर्ती हुए थे और तब उनकी उम्र 18 साल थी . दौड़ना बेशक उनका बचपन से शौक रहा लेकिन स्टीपल चेज़ की प्रोफेशनल ट्रेनिंग उन्होंने सेना में भी भर्ती होने के बहुत बाद में ली थी . क्रॉस कंट्री दौड़ने वाले अविनाश को जनवरी 2017 में सेना में कोच अमरीश कुमार ने उन्हें खेल बदलने के लिए ऐसा समझाया कि उनकी बात समझ आते ही अविनाश ने स्टीपल चेज़ पर ध्यान केन्द्रित करके प्रेक्टिस शुरू कर डाली और फिर धड़ाधड़ राष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड तोड़ने शुरू कर दिए . हालांकि इस तरह से खेल बदलना चुनौतीपूर्ण था लेकिन ये फैसला अविनाश के खेल करियर में खूबसूरत नया मोड़ ले आया .

नाटकीय मोड़ और चुनौती :
वैसे दोहा में के स्टीपल चेज़ मुकाबले तक पहुंचना और इसमें ओलम्पिक के क्वालिफाइंग मार्क से 8 मिनट 22 सैकंड से सिर्फ .23 सैकंड पहले दौड़ पूरी करना कोई कम नाटकीय नहीं था . असल में इस फाइनल मुकाबले से पहले हीट मुकाबले में दूसरे एथलीट के रुकावट पैदा करने की वजह से उनकी टाइमिंग बिगड़ी जिससे होने मुकाबले से बाहर होना पड़ा . इसकी भारतीय एथलेटिक्स महासंघ (एएफआई) ने मैच के अधिकारियों से शिकायत की थी और कहा था कि इथोपिया के धावक ने अविनाश के भागने में रुकावट खड़ी की . इसके बाद मुकाबले की वीडियो रिकॉर्डिंग देखी गई जिसमें पाया गया कि अविनाश को दो बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा . इसके बाद अविनाश साबले को अंतिम मेडल मुकाबले के लिए वाइल्ड कार्ड एंट्री दी गई .

जुलाई 2020 में जापान के टोक्यो शहर में होने वाले खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक गेम्स से पहले अविनाश साबले के लिए फिलहाल चुनौती 18 अक्टूबर को चीन के वुहान में होने वाले विश्व सेना खेल ( World Military Games ) हैं .

यूँ बने एथलीट :
अविनाश साबले बताते हैं कि दौड़ने की शुरुआत तब हुई जब वो स्कूल से छुट्टी होते ही खेत में काम कर रहे अपने पिता मुकुंद साबले की मदद करने के मकसद से जल्दी से जल्दी पहुँचने के चक्कर में भाग कर जाया करते थे . ये फासला करीब 6 – 7 किलोमीटर था जो वो रोज़ाना दौड़ते दौड़ते तय किया करते थे . उनकी इस प्रतिभा को स्कूल के टीचर ‘वाडेकर सर ‘ ने पहचाना , जैसाकि उनके स्कूल के मित्र चंद्रकांत मुतकुले बताते हैं . वाडेकर सर अविनाश को स्कूल के खेल मुकाबलों में ले जाया करते थे . एक दिन वाडेकर सर ने और बच्चों के सामने ये कही भी थी अविनाश अपने गाँव , जिले और महाराष्ट्र का ही नहीं पूरे देश का नाम रोशन करेगा जिस पर इसके माँ पिता को फख्र महसूस होगा .

अविनाश साबले दिसम्बर 2015 में भारतीय सेना की महार रेजीमेंट की 5वीं बटालियन में भर्ती हुए थे . 2013 – 14 में दुनिया के सबसे ऊँचे और ठंडे युद्ध के मैदान सियाचीन ग्लेशियर में तैनाती के बाद 2015 अविनाश साबले की तैनाती मरुभूमि राजस्थान में हुई थी . अच्छी लम्बाई के कारण अविनाश को सेना की टीम में शामिल होने का मौका मिला और उन्हें क्रॉस कंट्री की ट्रेनिंग देनी शुरू दी गई . ये 2015 की ही बात है .