‘…from Bamboo House to President House’ आईपीएस अधिकारी रॉबिन हिबू ने चिरपरिचित मुस्कान के साथ जब ये वाक्य (बांस के घर से राष्ट्रपति भवन तक) कहा तो उनकी आँखें और चेहरा जीवन के संघर्ष और चुनौतियों से उपजे दर्द को बखूबी बयान कर रहे थे लेकिन वो गर्व भी छलक कर सामने आ रहा था जो वो इस कुर्सी पर बैठकर महसूस कर रहे थे. और हो भी क्यूँ ना…! पूर्वोत्तर भारत के दूरदराज़ इलाके के एक गाँव में लकड़ी काटने और मछलियों के तालाब से गाद निकालने वाला लड़का जब अपने बूते उस जगह की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी निभाने पहुंच जाये जहां देश का पहला नागरिक, तीनों सेनाओं का सुप्रीम कमांडर यानि राष्ट्रपति रहता हो. गर्व होना तो तब भी स्वाभाविक है जब उसे अपने प्रदेश का पहला आईपीएस अधिकारी बनने का भी गौरव हासिल हो.
डा. कलाम का न्योता :
![रॉबिन हिबू](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/08/IPS-Robin-Hibu-1.jpg)
भारत की आज़ादी के 46 साल बाद अरुणाचल प्रदेश ने देश को पहला आईपीएस राबिन हिबू के रूप में ही दिया. भारतीय पुलिस सेवा के AGMUT कैडर के 1993 बैच के इस अधिकारी को देश ही नहीं एशिया के सबसे बड़े इस रिहाशयी भवन (340 कमरों वाले) की सुरक्षा का ज़िम्मा सँभालते हुए साल भर होने वाला है लेकिन उनके खुशनुमा अंदाज़ और जोश को देखकर लगता है जैसे उन्हें अभी अभी राष्ट्रपति भवन का ज्वाइंट कमिश्नर बनाया गया हो. इसकी वजह पूछने पर वो एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं जिसका ताल्लुक मिसाइलमैन के तौर पर विश्वविख्यात स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम से है. तब कलाम साहब भारत के राष्ट्रपति थे. अरुणाचल के तवांग इलाके में आये थे. राबिन हिबू तब एसपी थे. कलाम साहब ने उन्हें राष्ट्रपति भवन आने का न्योता दिया था. रोबिन हिबू को, एपीजे कलाम जैसी शख्सियत के साथ काम न कर पाने का आज भी मलाल है. साथ ही वो कहते हैं,’ मेरे लिए यहाँ आना, किसी सपने के सच होने से कम जैसा नही है’.
पहली बार देखा राष्ट्रपति भवन :
![आईपीएस अधिकारी रॉबिन हिबू](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/08/IPS-Robin-Hibu-7.jpg)
पढ़ाई के दौरान और आईपीएस बनने के बाद पोस्टिंग के दौरान भी दिल्ली डीसीपी और अन्य ओहदों पर रहे लेकिन इस रॉबिन कभी राष्ट्रपति भवन नहीं गये. कहते हैं, ‘कभी यहाँ काम ही नहीं पड़ा’. पिछले साल 7 सितम्बर को जब उन्होंने ज्वाइंट कमिश्नर का पद ग्रहण किया तभी यहाँ की भव्यता और विशालता से रूबरू हुए. भारत के राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा का पूरा दारोमदार वाले ओहदे को सँभालने वाले उत्तर पूर्व के किसी राज्य के वे पहले अधिकारी हैं.
भले ही राष्ट्रपति भवन परिसर एक छोटे मोटे नगर की तरह हो लेकिन यहाँ ज्वाइंट कमिश्नर स्तर के पुलिस अधिकारी का काम एकदम अलग तरह का है. सेना के तीनों अंगों से लेकर अलग अलग सुरक्षा बलों की तैनाती यहाँ पर है और देशी विदेशी मेहमानों का तांता लगा रहता है. सैलानी भी खूब आते हैं. 330 एकड़ में फैले इस ऐतिहासिक परिसर के 5 एकड़ में भवन है जिसकी कुल मिलाकर 4 मंजिलों में 340 कमरे हैं. और तो और 2.5 किलोमीटर लम्बे इसके बरामदों की लम्बाई और 330 एकड़ क्षेत्र में फैला बाग़ ही है.
हेल्पिंग हैण्ड :
![आईपीएस अधिकारी रॉबिन हिबू](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/08/IPS-Robin-Hibu-4.jpg)
अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबंसिरी जिले के होन्ग गाँव के रॉबिन उन गिने-चुने अधिकारियों में से एक हैं जो जमीन से जुड़े रहकर संघर्ष और चुनौती के रास्ते को पार करके जो कुछ सीखते व हासिल करते हैं, उसे समाज को लौटाने की भरपूर कोशिश भी करते हैं. पूर्वोत्तर के लोगों, खासतौर से वहां के युवकों और युवतियों के लिए हेल्पिंग हैण्ड (Helping Hand) नाम की संस्था के जरिये मदद कर रहे इस आईपीएस को कुछ लोग तो ज़रूरतमंदों की मदद करने वाले ऐतिहासिक किरदार रॉबिन हुड से भी जोड़ते हैं (नाम भी मिलता जुलता है).
इस संस्था के ज़रिये उन्होंने उन विभिन्न नौजवानों को कोचिंग दिलाने का बीड़ा उठाया है जो सिविल सेवा परीक्षा या ऐसे ही प्रतियोगी इम्तिहान पास करके करियर बनाना चाहते हैं जिनके पास साधनों की कमी है. बचपन से लेकर युवावस्था तक (जब तक अधिकारी न बने) अभावों और तरह तरह के भेदभाव के कटु अनुभवों के बीच जीवन यात्रा को आगे बढ़ाते रहे आईपीएस रॉबिन हिबू कहते हैं कि पूर्वोतर में भौगोलिक, विकास और सुविधाओं के पहलुओं से चुनौतियां अब भी बहुत हैं और हमारी कोशिश है कि वहां के प्रतिभावान लोगों की उन तकलीफों को कम या ख़त्म कर सकें जो उनकी तरक्की के रास्ते में रोड़ा बनती हैं. खासतौर से पढ़ाई और करियर उनका फोकस एरिया है.
फ़िल्मी किरदार :
IPS अधिकारी रॉबिन हिबू के जीवन के कुछ वृत्तांत तो ऐसे हैं जो बालीवुड की किसी आर्ट मूवी या मुंशी प्रेमचंद सरीखे लेखकों की कलम के उन किरदारों से मेल खाते हैं जिन्हें समाज की तरह तरह की प्रताड़ना झेलनी पड़ती है लेकिन इरादों के पक्के होते हुए मंजिल को हासिल करने की दिशा में बढ़ते रहते हैं. कभी कभी तो लोग अब भी उन्हें अलग तरह से प्रताड़ित करते है. दिल्ली पुलिस समेत देश विदेश में अलग अलग जगह तरह तरह की ड्यूटी निभाते हुए भी उत्तर पूर्व समुदाय के कल्याणार्थ किये गये कुछ विशेष काम की वजह से उनकी लोकप्रियता में ऐसा इजाफा हुआ कि कुछ लोगों ने उन्हें नेता के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया. हालत ये हुई कि खुद रॉबिन हिबू को सोशल मीडिया पर चल रही ऐसी बातों को नकारने के लिए संदेश लिखने पड़े. जब उन्हें चुनाव तक लड़ने के प्रस्ताव की मनगढ़ंत कहानियाँ फैलने लगीं तो रॉबिन को कहना पड़ा, ‘फ्रेंड्स, नो पालिटिक्स’.
संघर्ष की शुरुआत :
![आईपीएस अधिकारी रॉबिन हिबू](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/08/IPS-Robin-Hibu-3.jpg)
अपने जीवन की एक बेहद मार्मिक घटना भी श्री हिबू ने साझा की जब उन्हें देवमाली के नरोत्तम नगर के आर के मिशन स्कूल में सम्मानित करने के लिए राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री ताको डाबी के साथ आमंत्रित किया गया था. ये वही स्कूल था जहाँ एक मंत्री के बेटे को दाखिला देने के लिए रॉबिन हिबू को बचपन में लौटा दिया गया था. उस स्कूल के लोगो (Logo) वाली टी शर्ट को पकड़कर वो अक्सर तब खूब रोया करते थे जब उन्हें स्कूल की बहुत याद सताती थी. कुछ साल बाद वह टी शर्ट भी गाँव में लगी भीषण आग में बाकी सारे सामान के साथ स्वाहा हो गई थी जो उनके घर में थी.
दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दाखिला परीक्षा के रिज़ल्ट के इंतजार में अरुणाचल भवन में सब्ज़ी से भरे गोदाम में रात बिताना जब लोक निर्माण विभाग के मंत्री के बेटे की बर्थ डे पार्टी में कानफोडू संगीत बजता रहा, 12 वीं कक्षा पास करने के बाद कागज़ अटेस्ट कराने के लिए पांच घंटे स्थानीय न्यायिक अधिकारी के दफ्तर के बाहर खड़ा रहना, वन विभाग में अपने दोस्त ब्याबंग राणा (जो अब इटानगर के मशहूर हीमा अस्पताल के मालिक और डाक्टर हैं) के साथ मज़दूरी करना, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र में एमए की पढ़ाई के दौरान नर्मदा होस्टल के कमरा नम्बर 27 में भीषण गर्मी से बचने के लिए 7-7 बाल्टी पानी भरना… ये तमाम घटनाएं उनके जहन में यदा-कदा कुछ अब भी छाई रहती हैं.
भेदभाव का दर्द सहा :
अभाव ही नहीं, भेदभाव पूर्ण व्यवहार ने भी रॉबिन हिबू की तकलीफें बढ़ाईं लेकिन उन्हें साथ ही मज़बूत भी किया. एक बार तो ब्रह्मपुत्र मेल में सफ़र के दौरान फौजियों ने उन पर ताने कसते हुए उनसे सीट ही खाली करवा ली…सामान (बैग) उठाकर फेंक दिया और उन्हें बदबूदार बाथरूम के दरवाज़े के बाहर सड़ांध के बीच यात्रा करने पर मजबूर होना पड़ा, ट्रेनिंग के दौरान हरियाणा के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक के बेटे ने उनकी रैगिंग की और इसका जवाब उन्होंने मसूरी की अकादमी में 1994 में दिया. तब उन्हें IAS, IPS, IFS, IRS में से बेस्ट प्रोबेशनर आफिसर का मेडल दिया गया था. लेकिन इन तमाम कड़वे अनुभवों के बीच उन्हें कुछ अच्छे लोग भी मिले और मदद का हाथ भी बढ़ाया.
परदेस में मौत का सच :
पूर्वोत्तर से दिल्ली आकर रोज़गार या पढ़ाई के लिए रह रहे किसी शख्स का जब परिवार में कोई मरता है तो कई बार ऐसा देखा गया है कि वो शख्स अपने गाँव तक समय पर पहुँच ही नहीं पाता. वजह होती है फासला ज्यादा और रेल नेटवर्क की कमी, लिहाज़ा समय पर वहां तक पहुंचने के लिए फ्लाइट पकड़ना ही एकमात्र विकल्प होता है लेकिन उसकी टिकट महंगी होती है. गरीब होने के कारण वो जहाज़ की टिकट नहीं खरीद पाता और ट्रेन-बस का सफर करके तीन चार दिन बाद वहां पहुंचा जा पाता है. सबसे बुरा हाल तब होता है जब दिल्ली में रह रहा वहां का कोई शख्स सिधार जाता है. अंतिम संस्कार के लिए उसके पैतृक स्थान तक पार्थिव शरीर ले जाना मुश्किल और बेहद खर्चे वाला काम है. लेकिन IPS रॉबिन के प्रयास के बाद एक प्राइवेट एयर लाइन ने इसमें फ्री सेवा करके सहायता करनी शुरू कर दी है. पूर्वोतर में किसी अपने की मृत्यु की जब खबर आती है तो रॉबिन हिबू को वो दिन याद आता है जब वो दिल्ली में परीक्षा की तैयारी के लिए आये थे और गाँव में उनकी बहन का देहांत हो गया था. रॉबिन कहीं तनावग्रस्त न हो और सब कुछ बीच में ही छोड़कर गाँव न आ जाएँ, इसलिए माँ बाप ने उन्हें इत्तेला तक नहीं दी.
वर्दी और लगन ने दिलाया सम्मान :
![आईपीएस अधिकारी रॉबिन हिबू](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/08/IPS-Robin-Hibu-5.jpg)
![रॉबिन हिबू](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/08/IPS-Robin-Hibu-6.jpg)
इस तरह के अतीत के बावजूद आईपीएस रॉबिन हिबू एक अच्छे पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं जिसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें दो बार राष्ट्रपति के पुलिस मेडल से सम्मानित किया जा चुका है. 2009 -10 में उन्हें उत्कृष्ट सेवाओं के लिए और 2017-18 के लिए विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति की तरफ से मेडल दिए गये. इतना ही नहीं बोस्निया और कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र के पुलिस कमांडर के तौर पर उत्कृष्ट कार्य करने पर संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन सेक्रेटरी जनरल कोफ़ी अन्नान ने उन्हें दोनों बार शान्ति मेडल देकर सम्मानित किया था. इससे पहले अरुणाचल प्रदेश सरकार ने उन्हें 2003 और फिर 2009 में गोल्ड मेडल प्रदान किया था.
राजधानी दिल्ली में पूर्वोतर राज्यों के बाशिंदों के मुद्दों को समझने और उनसे जुड़े मसलों को सरकारी मंच पर लाने के लिए बनी समिति के नोडल अधिकारी भी रह चुके राबिन हिबू को एक बात खलती है और वो ये कि भारत के कई हिस्सों में पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को विदेशी की तरह या अलग समझकर व्यवहार किया जाता है.