सदमे ने बेटे को पिता की अंतिम यात्रा भुला दी, बस सैनिकों का सैल्यूट करना याद है

283
जीव मिल्खा सिंह
जीव मिल्खा सिंह (पिता पुत्र)

सिर्फ एक हफ्ते के अंदर अपने माँ बाप को खोने के सदमे ने जाने माने गोल्फर जीव मिल्खा सिंह को जेहनी तौर पर कितना झकझोर के रख डाला है कि उन्हें पिता मिल्खा सिंह की अंतिम यात्रा के एक दृश्य के अलावा कुछ याद ही नहीं आ रहा. ये बात खुद जीव मिल्खा सिंह ने ट्वीट करके कही. रविवार को पिता को उन्होंने मुखाग्नि दी थी और सोमवार को जब पूरी दुनिया फादर्स डे मना रही थी तो उन्हें अपने पिता धावक और फौजी मिल्खा सिंह की याद और सता रही थी.

जीव मिल्खा सिंह ने ट्वीट करके भारतीय सेना का आभार ज़ाहिर किया. उन्होंने कहा कि मुझे पिता की अंतिम यात्रा का कुछ याद नहीं आ रहा सिवाय इसके कि सेना की एक वैन आकर रुकी और उसमें से सैनिक उतर कर आये और उन्होंने मेरे पिता को सैल्यूट किया. जीव मिल्खा सिंह कहते हैं. “वो मंज़र मैं कभी भी भुला नहीं पाऊंगा”. 49 वर्षीय गोल्फर जीव मिल्खा सिंह का कहना था कि वो मेरे पिता ही नहीं दोस्त और गाइड भी थे.

जीव मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह को अंतिम विदाई देते केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजु

मिल्खा सिंह के बीमार होने की खबर जब आई तब जीव मिल्खा सिंह दुबई में थे लेकिन जल्द ही भारत वापस आ गये थे.

उल्लेखनीय है कि सेना में भर्ती होने के बाद ही मिल्खा सिंह ने पेशेवर दौड़ सीखी थी और एक के बाद रेकॉर्ड तोड़े और बनाये थे. मिल्खा सिंह जब सेना से रिटायर हुए तो वह ऑनरेरी कैप्टन थे. बाद में वह पंजाब सरकार के खेल विभाग के निदेशक भी रहे.

जीव मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह का पार्थिव शरीर. सीने पर पत्नी की तस्वीर

महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण और उसकी पेचीदगियों से जूझते हुए शुक्रवार 19 जून की रात चंडीगढ़ के पीजीआई में 91 साल की उम्र में फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह ने अंतिम सांस ली थी. इससे पांच दिन पहले यानि 13 जून को ही इसी खतरनाक वायरस ने उनकी पत्नी निर्मल कौर को हमेशा के लिए उनसे अलग कर दिया था. निर्मल कौर भी खिलाड़ी थीं और वह भारत की राष्ट्रीय वालीबाल टीम की कैप्टन भी रहीं थीं. मिल्खा सिंह की हालत ऐसी थी कि पत्नी को आखिरी विदाई तक न दे सके थे.

जीव मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह को अंतिम विदाई

ट्रैक के बादशाह रहे मिल्खा सिंह ने 31 जनवरी 1960 को पाकिस्तान के लाहौर में अपनी बेहतरीन परफोर्मेंस देते हुए 20.7 सेकंड में 200 मीटर की दौड़ पूरी की थी. इसने मिल्खा सिंह के लिए रोम ओलिंपिक में जाने का रास्ता साफ़ कर दिया था.हालांकि इसमें वह मेडल लेने से चूक गये थे लेकिन 45.6 सेकंड में 400 मीटर का भारतीय खिलाड़ी के दौड़ने का रेकॉर्ड बना लिया था. मिल्खा सिंह को 1958 में कार्डिफ़ में हुए राष्ट्रकुल खेलों में हासिल की गई उपलब्धि के लिए हमेशा याद किया जाएगा जिसमें उन्होंने 46 .6 सेकंड में 440 गज़ की दौड़ पूरी करके गोल्ड मेडल हासिल किया था.