ये टीम आजकल दिल्ली के ‘ टॉप थ्री’ शानदार थाने खोजने में जुटी है

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दिल्ली पुलिस
सिविल लाइन्स थाने का मुआयना करने पहुंची दिल्ली पुलिस की चयन समिति के सदस्य.

फरवरी का महीना आते ही दिल्ली पुलिस में ख़ास हलचल शुरू हो जाती है जिसका खास कारण होता है इसका स्थापना दिवस मनाने की तैयारियां. दिल्ली पुलिस का स्थापना जोकि हर साल 16 फरवरी को धूमधाम से मनाया जाता है. शानदार परेड, प्रतिभावान और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए जहां पुलिस कर्मियों को सम्मानित करने से लेकर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते है. इस कार्यक्रमों में गृह मंत्री, प्रधानमन्त्री से लेकर राष्ट्रपति तक को आमंत्रित करने की परम्परा रही है. स्थापना दिवस परेड के दौरान दिल्ली पुलिस के तीन टॉप परिसरों को भी ट्रॉफी देने की परम्परा शुरू हो चुकी है और ये परिसर हैं यहां के थाने जिनकी तादाद 200 से ऊपर है. अब इनमें से साल 2023 के ‘टॉप थ्री’ थाने चुनने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है.

दिल्ली के 200 से ज्यादा थानों में ‘टॉप थ्री ‘ को चुनना आसान काम नहीं है. इस दिलचस्प कवायद में नीचे से लेकर ऊपर तक के तमाम रैंक के अधिकारी शामिल होते हैं. पहले हरेक ज़िले दो सर्श्रेष्ठ थाने चुनकर उपायुक्त (डीसीपी – DCP) रैंक का अधिकारी अपनी रेंज के प्रभारी ज्वाइंट कमिश्नर के पास भेजता है. 6 रेंज और 1 ट्रांसपोर्ट रेंज के ज्वाइंट कमिश्नर अपनी अपनी रेंज के थानों में से 2 -2 सर्वश्रेष्ठ थानों के नाम चुनकर स्पेशल कमिश्नर के नेतृत्व वाली उस कमेटी के पास भेजते हैं जिसमें बाकी दो सदस्य ज्वाइंट कमिश्नर रैंक के पुलिस अफसर होते हैं. इस तरह कमेटी के पास कुल मिलाकर उन 14 थानों की लिस्ट पहुँच जाती है जिन्हें हर तरीके से काबिल थाना माना गया. अब उन्हीं टॉप थ्री थाने इस कमेटी को चुनने हैं.

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थाने का रिकॉर्ड जांच परख कर देखती स्पेशल कमिश्नर शालिनी सिंह.

वर्तमान में 1996 बैच की आईपीएस अधिकारी शालिनी सिंह इस कमेटी की प्रमुख हैं और दो अन्य सदस्य ज्वाइंट कमिश्नर ओपी मिश्रा तथा धीरज कुमार हैं. शनिवार को इस टीम ने उत्तरी दिल्ली के सिविल लाइंस थाने का मुआयना किया जिसका पिछले दिनों कायाकल्प किया गया था. दिल्ली विधानसभा से लगभग सटा हुए ये थाना दिल्ली की सत्ता के एक अन्य केंद्र राजभवन के भी करीब है.

स्पेशल कमिश्नर शालिनी सिंह ने बताया कि सर्वश्रेष्ठ थाना चुनने के लिए वहां के हर पहलू को देखा जाता है. बिल्डिंग का रख रखाव, सफाई व्यवस्था, पुलिसकर्मियों और वहां आगंतुकों के लिए सुविधाएं व उनका स्तर तो मुख्य तौर पर देखा ही जाता है. थाने का दस्तावेजी और कम्प्यूटर रिकॉर्ड, हथियारों व वाहनों का रखरखाव, अपराधों का ग्राफ, उनकी तफ्तीश, तफ्तीश के तौर तरीके, कितने केस में अपराधियों को सज़ा दिलाने में मिली. सफलता व अपराधों की रोकथाम के लिए किये गए उपाय आदि को भी देखा समझा जाता है. साथ ही इस बात पर भी विशेष नजर रखी जाती है कि उस थाने ने ऐसी क्या ख़ास पहल की है जो प्रभावशाली साबित हुई हो या हो सकती हो. ये पहल चाहे पुलिस के रूटीन कामकाज में सुधार लाने वाली हो या समाज के किसी हिस्से की बेहतरी के लिये की गई हो.

आईपीएस शालिनी सिंह ने ऐसी पहल के सन्दर्भ में दक्षिण दिल्ली के एक थाने की मिसाल भी दी जहां एसएचओ ने इलाके में रहने वाले लोगों के बीच किस मुद्दे पर आपसी तनाव या मनमुटाव पैदा करने वाले मसलों को सुलझाने के लिए गांव देहात में होने वाली परम्परागत पंचायत जैसा सिस्टम बना दिया था. इलाके के कुछ सम्मानित रसूखदार लोगों को ऐसे मसले सुलझाने में शामिल किया जाता था. इससे स्थानीय निवासियों में न सिर्फ भाईचारा बना रहता है बल्कि तनाव से स्थिति बिगड़ने की आशंका भी नहीं रहती. ऐसे में पुलिस पर फ़जूल के काम का बोझ भी नहीं बढ़ता.