नमक के रेगिस्तान के तौर पर पहचान बना चुके गुजरात के उस इलाके में आज ही के दिन ठीक 54 साल पहले जो कुछ हुआ वो दुनिया भर में कही सुनी जाने वाली सैन्य लड़ाइयों की जांबाज़ी भरी कहानियों में से एक है. भारत-पाकिस्तान के बीच गुजरात सीमा पर समन्दर के किनारे शूरवीरता की ये गाथा 8-9 अप्रैल 1965 की रात केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ CRPF) के जवानों ने रची थी. तादाद में अपने से कई गुना ज़्यादा प्रशिक्षित उन पाकिस्तानी फौजियों से इन्होंने लोहा लिया जो भारत के उस हिस्से पर कब्ज़ा करने के लिए युद्ध की सम्पूर्ण तैयारी के साथ घुसे थे जिसे रण का कच्छ कहा जाता है.
गर्मियों में जो इलाका 50 डिग्री के आसपास पहुंचने से आग के गोले में तब्दील हो जाता है और सर्दियों में जीरो डिग्री के कारण बर्फ की सिल्ली बन जाता है उस बॉर्डर की सुरक्षा में सीआरपीएफ के साथ गुजरात राज्य की पुलिस को तब तैनात किया गया था. अचानक आधी रात के बाद पाकिस्तान सेना की 18 पंजाब बटालियन, 8 फ्रंटियर रायफल्स और 6 बलूच बटालियन के सैनिकों ने यहाँ सरदार पोस्ट पर हमला किया. एक बार नहीं तीन बार ये हमला हुआ. सीआरपीएफ के सिर्फ 150 के आसपास जवान थे जबकि पाकिस्तानी 3000 के आसपास रहे होंगे.
जबरदस्त घमासान हुआ तकरीबन 12 से 15 घंटे. हमले के लिए तैयार होकर आये दुश्मन का दुर्गम क्षेत्र के साथ साथ संख्या और ज्यादा घातक हथियारों के कारण पलड़ा भारी था लेकिन सीआरपीएफ जवानों के साहस और तगड़ी जवाबी कार्रवाई ने उनके दांत खट्टे कर दिए. पाकिस्तानी फौजी अपने 34 साथियों की लाशें छोड़कर भाग खड़े हुए. मारे गये पाकिस्तानी फौजियों में दो अधिकारी भी थे. चार पाकिस्तानियों को बंधक बना लिया गया था. हालांकि सीआरपीएफ को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी. इसके 6 जवानों की भी शहादत हुई.
रण के कच्छ में सीआरपीएफ की दूसरी बटालियन की 2 कम्पनियां इस घमासान में हीरो बनीं. उन जवानों की बहादुरी और शहीद जवानों की कुर्बानी को हमेशा याद रखने के लिए सीआरपीएफ 9 अप्रैल को शौर्य दिवस के तौर पर मनाती है और यहाँ सरदार पोस्ट पर मुख्य कार्यक्रम का आयोजन होता है.
वैसे पाकिस्तान के इस हमले की जवाबी कार्रवाई के साथ शुरू हुए युद्ध को रोकने के लिए ब्रिटेन ने दखल दिया था लेकिन पाकिस्तान ने भारत में घुसपैठ के दौरान बड़े भू भाग पर कब्ज़ा कर लिया था. तब ये मामला फैसले के लिए अंतर्राष्ट्रीय अदालत में पहुंचा. अदालत ने 19 फरवरी 1968 को इसका फैसला भारत के पक्ष में सुनाया. पूरे इलाके का 10 फ़ीसदी हिस्सा ही पाकिस्तान को मिला बाकी 90 फीसदी भारत को सौंपा गया.
इस घटना से सबक लेते हुए भारत ने सीमाई चौकियों की रक्षा का दायित्व केन्द्रीय बलों को सौंपा और साथ ही सीमावर्ती इलाकों के लिए और खास तौर से पाकिस्तान से सटी सीमा की चौकसी के लिए अलग फ़ोर्स बनाने का फैसला लिया. इसके बाद भारत ने सीमा सुरक्षा बल (BSF- बीएसएफ) का गठन किया गया जो 1 दिसम्बर 1965 को वजूद में आया.