श्रीनगर में चिनार कोर ने अलग अंदाज़ से कश्मीरी युद्ध वीरों का सम्मान किया

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चिनार कोर
युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पण समारोह. फोटो : अंजलि कौल

सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत
पुर्जा पुर्जा कट मरे, कबहू ना छाडे खेत

जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में सर्वधर्म प्रार्थना के अंत में शूरवीरों को पारिभाषित गुरु गोबिंद सिंह रचित इन पंक्तियों के साथ ही, 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को सेना ने पुष्पांजलि अर्पित की. मुख्य कार्यक्रम बादामी बाग़ छावनी स्थित 15 कोर (चिनार कोर) के युद्ध स्मारक पर हुआ. कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी पी पांडेय और अन्य सैन्य अधिकारियों ने तो स्मारक पर पुष्प चक्र अर्पित किये ही, बड़ी संख्या में आये उन पूर्व सैनिकों ने भी पुष्पांजलि अर्पित की जिन्होंने खुद इस युद्ध को लड़ा है. ये ज़्यादातर वो पूर्व सैनिक हैं जो श्रीनगर के आसपास के ज़िलों में रहते हैं. इनमें से कई तो इस युद्ध में घायल भी हुए थे.

भारत-पाकिस्तान 1971 युद्ध के 50 साल पूरे होने पर मनाये जा रहे स्वर्ण जयंती वर्ष (golden jubilee year) कार्यक्रमों में से एक इस कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के भी आने की चर्चा थी लेकिन राजधानी से बाहर होने के कारण वह नहीं आ सके.

चिनार कोर
युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पण समारोह.
फोटो : अंजलि कौल

कार्यक्रम की शुरुआत हिन्दू, ईसाई, इस्लाम और सिख धर्मों की प्रार्थना से हुई. इस्लामिक तरीके से शहीदों के लिए प्रार्थना करते कहा गया कि वतन से मोहब्बत ईमान की शान है और जो लोग देश की रक्षा करते हुए शहीद होते हैं उनको मुर्दा न कहो बल्कि वो जिंदा हैं मगर आपको इनकी ज़िन्दगी का एहसास नहीं होता. इसी तरह हमारे बहादुर जवानों ने जो मिसाल कायम की कि अपनी जान को देश के लिए कुर्बान किया, वो जवान मरे नहीं बल्कि देश के लिए अमर हो गए. यहाँ वीरों को समर्पित एक शेर भी पढ़ा गया……

गिरते हैं शह सवार ही मैदान ए जंग में, वो तुफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले.

सिख तौर तरीके से की गई प्रार्थना (अरदास) के अंत में गुरु गोविंद सिंह की लिखी उपरोक्त पंक्तियों (सूरा सो पहचानिये …) असली शूरवीर की पहचान यही है कि वो दीन (गरीब, ज़रुरतमंदों) की भलाई के लिए काम करे और जब युद्ध में उतरे तो बेशक उसके टुकड़े टुकड़े हो जाएँ लेकिन वो मैदान छोड़कर नहीं भागेगा.

युद्ध स्मारक से सैनिकों के साथ एनसीसी के कैडेट्स उस मशाल को लेकर आगे बढ़ गये जो कश्मीर के अलग अलग हिस्सों से होते हुए तीन दिन से श्रीनगर के अलग अलग हिस्सों में ले जाई जा रही है. स्वर्णिम विजय वर्ष मशाल के स्वागत में जगह जगह लोगों का इकट्टा होना और उसे सम्मान देने का ज़िक्र करते हुए कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पाण्डेय ने कश्मीरवासियों का आभार भी तब प्रकट किया जब वे मीडिया से मुखातिब हो रहे थे.

चिनार कोर
1971 युद्ध के दौरान जब पाकिस्तान के सेना कमांडर जनरल नियाज़ी ने जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष सैनिकों के साथ सरेंडर. उस मौके की फोटो पर आधारित पेंटिंग के स्मृति चिन्ह के साथ सैनिक अधिकारी और पूर्व सैनिक.
फोटो : अंजलि कौल

श्रीनगर स्थित वेटरन सेल ने भी इस कार्यक्रम में अपनी अहम भूमिका निभाई. 1971 के युद्ध में हिस्सा लेने वाले बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए अलग अलग हिस्सों से लाकर यहाँ ठहराया गया. युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पण के बाद एक सादा कार्यक्रम चिनार कोर मुख्यालय के बाहरी लॉन में हुआ. कोर कमांडर डीपी पाण्डेय (Lt.Gen. D P Pandey) ने युद्ध वीरों को स्मृति चिन्ह और उपहार भेंट किये. यहीं पर उनके लिए नाश्ते की व्यवस्था थी जिसमें पूर्व सिपाही से लेकर लेफ्टिनेंट जनरल रैंक तक के अधिकारी बराबरी से शामिल दिखे.

बहुत से पूर्व सैनिकों के लिए ये बेहद भावुक माहौल था. उन्होंने 50 साल पुराने युद्ध की यादें ताज़ा की. कइयों के लिए तो उम्र के इस पड़ाव में पहुंचकर लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी से मुलाक़ात और सम्मान प्राप्त होना ही सपने जैसा था. कोर कमांडर भी इन वीरों के कारनामों से प्रभावित दिखे और उनको शुभकामनायें दीं. दोपहर के खाने के बाद 1971 के इन युद्ध वीरों को ससम्मान छावनी से रुखसत किया गया.

चिनार कोर
युद्ध स्मारक पर स्वर्णिम विजय वर्ष मशाल के साथ सैन्य अधिकारी, एनसीसी कैडेट और पूर्व सैनिक.
फोटो : अंजलि कौल

अपने आप में अनूठे इस कार्यक्रम के आयोजन और सम्मान के लिए, बुजुर्ग हो चुके इन पूर्व सैनिकों ने अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया और दुआएं दीं. इनमें से सभी 70 से 80 साल के या इससे ज्यादा उम्र के भी थे. ज्यादातर जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंटरी (JAK LI) से ताल्लुक रखते थे. जैक लाई के रूप में लोकप्रिय भारतीय सेना की ये एक ऐसी इकाई है जिसने भारत की आजादी के बाद हरेक युद्ध में हिस्सा लिया और अपना पराक्रम दिखाते हुए वीरता पदक और सम्मान हासिल किये.

चिनार कोर
सम्मानित किए गए युद्धवीर जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान को युद्ध में परास्त करने में पराक्रम दिखाया.