यूपी में डीजीपी टिक नहीं पाता, साल से पहले ही पुलिस चीफ मुकुल गोयल हटाए गए

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मुकुल गोयल
अकर्मण्यता के कारण यूपी के पुलिस महानिदेशक पद से हटाए गए मुकुल गोयल.

भारतीय पुलिस सेवा (indian police service) के अधिकारी मुकुल गोयल मुश्किल से दस महीने ही उत्तर प्रदेश पुलिस के प्रमुख बने रह सके. उत्तर प्रदेश सरकार ने मुकुल गोयल को बुधवार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के ओहदे से हटाकर सिविल डिफेंस का महानिदेशक बना दिया. उनके स्थान पर किसी की तैनाती तो नहीं की गई लेकिन आईपीएस प्रशांत कुमार को फिलहाल यूपी पुलिस के चीफ का काम देखने के लिए कहा गया है. प्रशांत कुमार उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महानिदेशक (क़ानून व्यवस्था) हैं. पिछले साल पुलिस महानिदेशक के पद से जब एचसी अवस्थी रिटायर हुए थे तब भी प्रशांत कुमार को ही काम चलाने के लिए ये कुर्सी सौंपी गई थी लेकिन उसी दिन ही मुकुल गोयल डीजीपी बना दिए गए थे.

यूपी पुलिस का प्रमुख बनाये जाने से पहले 1987 बैच के आईपीएस मुकुल गोयल सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में एडीजी के पद पर चंडीगढ़ में तैनात थे. पश्चिम उत्तर प्रदेश के शामली के रहने वाले मुकुल गोयल का कार्यकाल तकरीबन डेढ़ साल का बचा हुआ है. वे फरवरी 2024 में रिटायर होंगे. यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान मुज़फ्फरनगर में हुए दंगों के बाद अरुण कुमार को हटाकर हालात सम्भालने के लिए मुकुल गोयल को एडीजी (कानून व्यवस्था) बनाया गया था. मुकुल गोयल गोरखपुर, वाराणसी, मैनपुरी से लेकर आजमगढ़, सहारनपुर और मेरठ जिलों में भी एसएसपी रहे हैं. वे बरेली, आगरा और कानपुर जैसी रेंज में डीआईजी भी रहे.

क्या है माजरा :

यूं तो मुकुल गोयल का पहले भी सुर्ख़ियों से नाता रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ सरकार ने उन पर अपना काम ठीक से नहीं करने और आज्ञा का पालन न करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं. हालांकि कहा ये भी जा रहा है कि उनकी सरकार से कई दिन से पटरी नहीं बैठ रही थी. वैसे इलज़ाम है कि वे महकमे की कुछ मीटिंगों में नहीं आए और ऐसे गंभीर मामले में स्पॉट पर नही गए जब जाना चाहिए था. कहानी का एक रुख ये भी है कि ऐसी बैठकों में उनको बुलाया नहीं गया और प्रशांत कुमार इन मीटिंग में जाते थे. लखनऊ में एक थाने के निरीक्षण के दौरान डीजीपी मुकुल गोयल ने काम और थाने में प्रबन्धन, सफाई आदि की खामियां पकड़ी थीं और थाने के एसएचओ को हटाने के लिए कहा था लेकिन इस पर उनकी मर्ज़ी नही चल सकी थी. मुकुल गोयल पर एक इलज़ाम ये भी है कि अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताए बिना छुट्टी चले गए. जिस तरह के इलज़ाम मुकुल गोयल पर लगे हैं ऐसे पहले शायद ही किस डीजीपी के मामले में हुआ हो.

विवादों और सुर्ख़ियों से मुकुल गोयल का नाता :

सन 2000 में सहारनपुर में भारतीय जनता पार्टी के विधायक निर्भय पाल शर्मा की हत्या के बाद मुकुल गोयल को सस्पेंड कर दिया गया था. बताया गया था कि तब पुलिस ने सही से काम नहीं किया था. निर्भय पाल शर्मा ने खुद फोन किये थे लेकिन पुलिस ने वक्त पर कार्रवाई नहीं की. 2005 – 2006 में यूपी में समाजवादी पार्टी की मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव वाली सरकार के राज में पीएसी (Provincial Armed Constabulary) भर्ती और पुलिस कर्मियों के लिए रेडियो सेट की खरीद में गड़बड़ियों को लेकर 24 पुलिस अधिकारीयों के खिलाफ़ बहुजन समाज पार्टी की सरकार के शासन में मायावाती के मुख्यमंत्रित्व काल में एफआईआर दर्ज हुई थी. उनमें मुकुल गोयल का भी नाम था. ये 2007 की बात है जब 24 अफसर निलंबित भी किये गए थे. लेकिन इसके बाद 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व में बनी समाजवादी पार्टी सरकार के काल में उनको क्लीन चिट दे दी गई थी. लेकिन हैरानी की बात है कि इतने विवादों के बाद भी मुकुल गोयल को पुलिस प्रमुख बना दिया गया था.

यूपी में डीजीपी टिक नहीं पाता :

मुकुल गोयल ही सिर्फ नहीं, काफी लम्बे समय से, भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कोई भी पुलिस चीफ लम्बे समय तक टिक नहीं पाया. बीते 12 साल में तो इस राज्य में शायद ही कोई डीजीपी रहा हो, जिसने दो साल का भी कार्यकाल किया हो. 2012 में चुनाव आयोग ने इस पद से आईपीएस बृजलाल को हटाया था. उनकी मुख्यमंत्री मायावती से नजदीकियां इसका कारण बताई गई थीं. ब्रजलाल अभी भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं. बीजेपी ने उनको राज्यसभा का सदस्य बनाकर संसद भेजा. बृजलाल के बाद डीजीपी बने अम्बरीश शर्मा को अखिलेश यादव के राज में कानून व्यवस्था के सुचारू न चलने का कारण बताकर डीजीपी के ओहदे पर कार्यकाल पूरा होने से पहले ही रुखसत कर दिया गया था. 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार आने पर जावीद अहमद को भी डीजीपी के पद पर कार्यकाल पूरा करने से पहले ही हटा दिया गया.