एकदम झक्क सफ़ेद चादर की मानिंद बिछी बर्फ और उस पर चींटियों की तरह टेढ़ी सी कतार में चलती काली काली छोटी छोटी बीसेक आकृतियाँ ….सरसरी तौर पर तो इतना ही समझ आता है कि दुनिया के सबसे ऊँचे रणक्षेत्र सियाचिन में सैनिकों की आवाजाही की ये फोटो शायद उस जमाने की रही होगी जब भारत में कलर फोटोग्राफी नहीं आई थी या फिर यूँ ही आकर्षित करने के लिए जानबूझकर इसे ब्लैक एंड व्हाइट इफेक्ट के साथ प्रदर्शित किया गया है.
हर कीमत पर देश की सुरक्षा के इरादे से, तकरीबन 20 हज़ार फुट ऊँचे इस ग्लेशियर पर मुस्तैद रहने वाले भारतीय सेना के इन जवानों के कठिनतम हालात में जीवन के पलों को बयाँ करती ये तस्वीर असल में रंगीन फोटो है. इस बात पर जल्दी से यकीन नहीं होता …तब तक तो बिलकुल नहीं जब तक इसमें कतार में चल रहे सैनिकों के आगे दिशासूचक के तौर पर लगाये गये छोटे छोटे लाल रंग के झंडों पर नजर न पड़े. झंडे कहना भी गलत ही होगा क्यूंकि फोटो इतनी ऊंचाई से ली गई लगती है कि वो झंडे असल में झंडी दीखते हैं.
फोटो खींचे जाने के वक्त के हालात सुनकर तो सच में इसके अदभुत होने जैसा भाव आने लगता है. ये तस्वीर, फोटो जर्नलिस्ट नरेश शर्मा की सियाचिन श्रृंखला की उन चार फोटोग्राफ्स में से एक है जो सेना के हेलीकाप्टर से, जिस वक्त खींची गई थीं उस वक्त वहां का तापमान -40 (शून्य से 40 कम) था. और ये भी तब जबकि वहां धूप खिली हुयी थी लेकिन फोटोग्राफी के हिसाब से फेवरेबल कन्डीशन थी. फोटो पत्रकारिता और विडियोग्राफी जैसी विधाओं में जीवन के 25 बरस का अनुभव बटोर चुके नरेश बरसों पुराने इन फोटोग्राफ्स की चर्चा करते ऐसे उत्साहित होकर बात करते है मानों तस्वीरें खींचने के बाद अभी अभी सियाचिन से दिल्ली लौटे हों. उनकी ये चारों फोटोग्राफ्स राजधानी दिल्ली के सिविल सर्विसेज़ आफिसर्स इंस्टिट्यूट में 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस पर शुरू हुई प्रदर्शनी का अहम हिस्सा हैं.
सियाचिन में ही ली गई एक और फोटो भी गज़ब की है. ये भी ब्लैक एंड व्हाइट सी है लेकिन इसे समझना आसान नहीं है और जब इसके बारे में नरेश शर्मा ने बताया तो हर कोई अचम्भे में दिखाई दिया. नरेश बताते हैं, ‘ये असल में बर्फ का भंवर है, ठीक वैसा जैसा पानी का भंवर होता है’. सही में ये हैरान करने वाली बात है, बर्फ में भी पानी की तरह हलचल वाला भंवर का बनना. नरेश को अफ़सोस इस बात का है कि उस वक्त उनके पास वीडियो कैमरा नहीं था. वैसे भंवर का ग्लेशियर में होना अति दुर्लभ नहीं है. नरेश का कहना, ‘भंवर को शूट करने का मौका मिलना बेहद दुर्लभ है क्यूंकि इसके लिए ऊंचाई से शूट करना होगा लेकिन सियाचिन में मौसम इतना साफ़ मिलने के मौके ही कम होते हैं’. सियाचिन श्रृंखला में यहाँ पर उनकी जो दो और तस्वीरें हैं उनमें से एक वहां के सेना परिसरों का एरियल व्यू है और एक में वहां का गाँव जिसका नाम बताते हैं परतापुर.
पांच सितम्बर 2018 तक चलने वाली इस फोटो प्रदर्शनी का उद्घाटन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) में तैनात पुलिस महानिरीक्षक मुकेश सिंह ने किया. इसमें 11 फोटोग्राफर्स का खूबसूरत काम है जिसमें भारत के कई तरह के रंग ढंग देखने को मिलते हैं. शहरी, देहाती, पुरातनी, तीज, त्यौहार, कला, संस्कृति, मानवीय भावनाएं और दृष्टिकोण भी. कुल मिलाकर 11 फ़ोटोग्राफरों ने अपने चार से पांच फोटो लगाये हैं.
भारत की राजधानी दिल्ली में राजपथ पर बीटिंग रिट्रीट पर राष्ट्रपति भवन की तरफ अग्रसर सेना की टुकड़ी की फोटो हो या उत्तर प्रदेश के मथुरा के गाँव की तस्वीर जो भारतीय समाज में पुत्रवधू और पुत्री के भेद को खुलकर बताती हो, हर कोई एक से बढकर एक. ये नुमायश कुछ पल के लिए ही सही, न जाने इस बात का भी यूँ अहसास दिला देती है कि जीवन में बिना भाषा और बिना जुबान से बात किये भी काम चल सकता है. सिर्फ नजर चाहिए-देखने और दिखाने वाले की.
इस ग्रुप प्रदर्शनी में जिन और फोटोग्राफर्स की कला यहाँ देखी जा सकती है वो हैं : अश्वनी अत्री, लिप्पी परीदा, जितेन्द्र प्रकाश, नीरज उपाध्याय, राजीव त्यागी, कमल रस्तोगी, त्रिभुवन कुमार देव, शैलेन्द्र पाण्डेय, सौरभ गाँधी और विन्सेंट वी रास. इनमें युवा भी हैं तो अनुभवी भी. कुछेक फोटोग्राफ्स प्रयोग की श्रेणी वाले भी हैं. दिल्ली में ये फोटो प्रेमियों और कला के कद्रदानों के लिए कुछ ख़ास देखने का मौका देती है ये ग्रुप प्रदर्शनी.