दुनिया के सबसे ऊँचे मैदान-ए-जंग सियाचिन की गजब फोटोग्राफ

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photo exhibition on world highest warfield Siachen
Source/Sanjay Vohra

एकदम झक्क सफ़ेद चादर की मानिंद बिछी बर्फ और उस पर चींटियों की तरह टेढ़ी सी कतार में चलती काली काली छोटी छोटी बीसेक आकृतियाँ ….सरसरी तौर पर तो इतना ही समझ आता है कि दुनिया के सबसे ऊँचे रणक्षेत्र सियाचिन में सैनिकों की आवाजाही की ये फोटो शायद उस जमाने की रही होगी जब भारत में कलर फोटोग्राफी नहीं आई थी या फिर यूँ ही आकर्षित करने के लिए जानबूझकर इसे ब्लैक एंड व्हाइट इफेक्ट के साथ प्रदर्शित किया गया है.

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बर्फ का भंवर. Source/Sanjay Vohra

हर कीमत पर देश की सुरक्षा के इरादे से, तकरीबन 20 हज़ार फुट ऊँचे इस ग्लेशियर पर मुस्तैद रहने वाले भारतीय सेना के इन जवानों के कठिनतम हालात में जीवन के पलों को बयाँ करती ये तस्वीर असल में रंगीन फोटो है. इस बात पर जल्दी से यकीन नहीं होता …तब तक तो बिलकुल नहीं जब तक इसमें कतार में चल रहे सैनिकों के आगे दिशासूचक के तौर पर लगाये गये छोटे छोटे लाल रंग के झंडों पर नजर न पड़े. झंडे कहना भी गलत ही होगा क्यूंकि फोटो इतनी ऊंचाई से ली गई लगती है कि वो झंडे असल में झंडी दीखते हैं.

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Source/Sanjay Vohra

फोटो खींचे जाने के वक्त के हालात सुनकर तो सच में इसके अदभुत होने जैसा भाव आने लगता है. ये तस्वीर, फोटो जर्नलिस्ट नरेश शर्मा की सियाचिन श्रृंखला की उन चार फोटोग्राफ्स में से एक है जो सेना के हेलीकाप्टर से, जिस वक्त खींची गई थीं उस वक्त वहां का तापमान -40 (शून्य से 40 कम) था. और ये भी तब जबकि वहां धूप खिली हुयी थी लेकिन फोटोग्राफी के हिसाब से फेवरेबल कन्डीशन थी. फोटो पत्रकारिता और विडियोग्राफी जैसी विधाओं में जीवन के 25 बरस का अनुभव बटोर चुके नरेश बरसों पुराने इन फोटोग्राफ्स की चर्चा करते ऐसे उत्साहित होकर बात करते है मानों तस्वीरें खींचने के बाद अभी अभी सियाचिन से दिल्ली लौटे हों. उनकी ये चारों फोटोग्राफ्स राजधानी दिल्ली के सिविल सर्विसेज़ आफिसर्स इंस्टिट्यूट में 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस पर शुरू हुई प्रदर्शनी का अहम हिस्सा हैं.

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Source/Sanjay Vohra

सियाचिन में ही ली गई एक और फोटो भी गज़ब की है. ये भी ब्लैक एंड व्हाइट सी है लेकिन इसे समझना आसान नहीं है और जब इसके बारे में नरेश शर्मा ने बताया तो हर कोई अचम्भे में दिखाई दिया. नरेश बताते हैं, ‘ये असल में बर्फ का भंवर है, ठीक वैसा जैसा पानी का भंवर होता है’. सही में ये हैरान करने वाली बात है, बर्फ में भी पानी की तरह हलचल वाला भंवर का बनना. नरेश को अफ़सोस इस बात का है कि उस वक्त उनके पास वीडियो कैमरा नहीं था. वैसे भंवर का ग्लेशियर में होना अति दुर्लभ नहीं है. नरेश का कहना, ‘भंवर को शूट करने का मौका मिलना बेहद दुर्लभ है क्यूंकि इसके लिए ऊंचाई से शूट करना होगा लेकिन सियाचिन में मौसम इतना साफ़ मिलने के मौके ही कम होते हैं’. सियाचिन श्रृंखला में यहाँ पर उनकी जो दो और तस्वीरें हैं उनमें से एक वहां के सेना परिसरों का एरियल व्यू है और एक में वहां का गाँव जिसका नाम बताते हैं परतापुर.

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Source/Sanjay Vohra

पांच सितम्बर 2018 तक चलने वाली इस फोटो प्रदर्शनी का उद्घाटन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) में तैनात पुलिस महानिरीक्षक मुकेश सिंह ने किया. इसमें 11 फोटोग्राफर्स का खूबसूरत काम है जिसमें भारत के कई तरह के रंग ढंग देखने को मिलते हैं. शहरी, देहाती, पुरातनी, तीज, त्यौहार, कला, संस्कृति, मानवीय भावनाएं और दृष्टिकोण भी. कुल मिलाकर 11 फ़ोटोग्राफरों ने अपने चार से पांच फोटो लगाये हैं.

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Source/Sanjay Vohra

भारत की राजधानी दिल्ली में राजपथ पर बीटिंग रिट्रीट पर राष्ट्रपति भवन की तरफ अग्रसर सेना की टुकड़ी की फोटो हो या उत्तर प्रदेश के मथुरा के गाँव की तस्वीर जो भारतीय समाज में पुत्रवधू और पुत्री के भेद को खुलकर बताती हो, हर कोई एक से बढकर एक. ये नुमायश कुछ पल के लिए ही सही, न जाने इस बात का भी यूँ अहसास दिला देती है कि जीवन में बिना भाषा और बिना जुबान से बात किये भी काम चल सकता है. सिर्फ नजर चाहिए-देखने और दिखाने वाले की.

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Source/Sanjay Vohra

इस ग्रुप प्रदर्शनी में जिन और फोटोग्राफर्स की कला यहाँ देखी जा सकती है वो हैं : अश्वनी अत्री, लिप्पी परीदा, जितेन्द्र प्रकाश, नीरज उपाध्याय, राजीव त्यागी, कमल रस्तोगी, त्रिभुवन कुमार देव, शैलेन्द्र पाण्डेय, सौरभ गाँधी और विन्सेंट वी रास. इनमें युवा भी हैं तो अनुभवी भी. कुछेक फोटोग्राफ्स प्रयोग की श्रेणी वाले भी हैं. दिल्ली में ये फोटो प्रेमियों और कला के कद्रदानों के लिए कुछ ख़ास देखने का मौका देती है ये ग्रुप प्रदर्शनी.