घर में वो नौजवान पुलिस अफसर काम पर जाते वक्त पिता के पाँव छूता है लेकिन कुछ ही घंटे बाद जब पिता पुत्र फिर से आमने सामने होते हैं तो पिता उसी पुत्र को सलाम ठोकता है. पिता का उसको सलाम करना ज़ाहिर है बेटे को अजीब लगता होगा लेकिन दिलचस्प बात ये कि बेटे को सैल्यूट करने में पिता को ख़ुशी मिलती है. पिता पुत्र की मजेदार ये असली कहानी भारत के राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की है. इसका गवाह बना है यहाँ का विभूति खंड थाना जहां तैनात हैं कहानी के एक किरदार सिपाही जनार्दन सिंह.
मूलतः यूपी के बस्ती जिले के पिपरा गौतम गाँव के रहने वाले यूपी पुलिस के सिपाही जनार्दन सिंह का आईपीएस बेटा अनूप सिंह इस कहानी का दूसरा किरदार है जिनका हाल ही में उन्नाव से तबादला किया गया है. भारतीय पुलिस सेवा के 2014 के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी अनूप सिंह को अब उत्तरी लखनऊ में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP ) बनाया गया है. इसी क्षेत्र में विभूति खण्ड थाना भी है जहां उनके पिता जनार्दन सिंह बतौर एक सिपाही ड्यूटी करते हैं. थाने में एसपी साहब आयेंगे तो पुलिस रस्मों के ही मुताबिक़ सलाम तो करना ही होगा. और ऐसा हुआ भी.
जनार्दन सिंह को इस बात की खुशी है कि अब बेटा उनका बॉस है. प्रसन्नचित्त मुद्रा में वो बोले, ‘लोग कहते हैं न कि मजूरी अपने घर की बढ़िया होती है… मुझे किसी न किसी के अंडर काम करना ही है… अच्छा लगता है …उनके मातहत काम करना तो और अच्छा लगेगा.’ वहीं उन्नाव से पहले नोएडा और गाज़ियाबाद में तैनात रहकर उन्नाव से आये लखनऊ के एएसपी (नार्थ) अनूप सिंह कहते हैं उन्होंने पिता से बहुत कुछ सीखा है. आईपीएस अनूप सिंह कहते हैं कि हमारे रिश्ते का काम पर कोई असर नहीं पड़ेगा, हम अपने अपने क्षेत्र में प्रोफेशनल जिम्मेदारियां वैसे ही पूरे मनोयोग से निभाएंगे जैसे कि हमसे अपेक्षा की जाती है.
पुलिस की नौकरी के सिलसिले कभी जनार्दन सिंह परिवार और पुत्र से अलग रहे तो कभी अनूप सिंह की तैनाती दूर रही. छात्र जीवन में भी वह पिता के साथ हमेशा नहीं रह सके. अनूप सिंह ने पोस्ट ग्रेजुएशन दिल्ली में जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी से की थी और उससे पहले स्कूली शिक्षा बाराबंकी में हुई. लेकिन अब दोनों की पोस्टिंग लखनऊ में ही होने से परिवार तो बेहद खुश है. जनार्दन सिंह का मानना है कि ड्यूटी के मामले उनका आईपीएस पुत्र बहुत सख्त और ईमानदार है और दूसरी तरफ अनूप सिंह का कहना है फ़र्ज़ के साथ संस्कार निभाना उन्होंने पिता से सीखा है.