दिल्ली पुलिस के अधिकारी जीतेंद्र मणि त्रिपाठी की मानवीय सोच और संवेदनशीलता की कई कहानियाँ प्रचलित हैं और हर दो चार महीने में इनमें ऐसा कोई न कोई इज़ाफा हो जाता है जो उनको और लोकप्रिय बना देता है. लोगों की भले ही वो अपनी क्षमता में रहकर या कभी उससे बाहर जाकर भी छोटी सी भी मदद करते हों लेकिन वो ख़ुशी का कारण बन जाती है. उस घटना की जानकारी पाने वालों के भी चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है भले ही उनका घटना से सीधा ताल्लुक न हो.
जितेन्द्र मणि दिल्ली मेट्रो के उपायुक्त हैं. कभी कभार वह ऐसी मदद की रोचक असली कहानी सोशल मीडिया पर शेयर भी कर देते हैं जो बहुत ही प्रेरणादायक होती हैं और किसी भी संवेदनशील इंसान को सकारात्मक और आशावादी सोच बढ़ाने में मदद कर सकती है. मेट्रो में यात्रा कर रहे एक शख्स को तो उन्होंने उसके माँ की हाथ की बनाई रोटियों का वो थैला खोज कर पहुँचाने में ही अपने अधिकारियों को लगा दिया था जो यात्रा के दौरान उस शख्स से छूट गया था. हालांकि शुरू में नहीं पता था कि उस बैग में सामान क्या है.
डीसीपी जितेन्द्र मणि के ज़रिये कल एक ऐसे शख्स की हुई मदद का एक दिलचस्प ब्यौरा उन्हीं के शब्दों में यहाँ बता रहे हैं जिसकी पत्नी का बैग उस ट्रेन में छूट गया था जो दिल्ली से मीलों दूर जा चुकी थी. दो राज्यों की पुलिस के आपसी तालमेल से एक आम शख्स को दी गई मदद की ये घटना श्री त्रिपाठी के फेस बुक वाल से ली गई है :
आदरणीय वरिष्ठ एवं साथियों मैं आपसे बड़े सादर पूर्वक ये कहना चाहता हूं कि कोशिश करता हूं कि किसी की जरूरत पर उसके काम आ सकूं. उसकी आंख से आंसू को रोक सकूं तो किसी एक को भी अगर मेरी वजह से थोड़ी मदद मिलती है तो खुद को बड़ा अच्छा महसूस करता हूं.
कल रात में 10 बजकर 36 मिनट पर व्हाट्सएप मैसेज मिला कि मेरी पत्नी का पर्स रेलवे (ट्रेन) में छूट गया है पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर और ट्रेन जा चुकी है. ट्रेन को आगे अंबाला जाना था. उन्होंने बताया कि बोगी नंबर 1 में यह बैग है. कोशिश करें यदि मेरा बैग मिल जाए.
मैंने डीसीपी रेलवे, एसीपी रेलवे, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के थानाध्यक्ष को तत्काल यह मैसेज किया. मैं ये भी बताना चाहूंगा कि मैंने जिस (श्री महेंद्र) एसीपी रेलवे को मैसेज किया उनका रेलवे से ट्रांसफर हो चुका था. एसीपी साहब ट्रांसफर होकर एसीपी नांगलोई हो चुके थे लेकिन जब मैंने उनको मैसेज किया तो और हमारे उनके ऐसे अच्छे संबंध हैं तो उन्होंने भी ऐसी अच्छी नियत दिखाई और कहा, “सर भले ही मैं एसीपी नांगलोई हो चुका हूं मैं इस मामले को करूंगा और उम्मीद है इसमें अच्छा परिणाम आएगा”.
इसी बीच पता चला कि ट्रेन सोनीपत पहुंची और वहां से भी निकल गई है. फिर मैंने एसएचओ ओल्ड दिल्ली रेलवे स्टेशन से कहा कि आगे किस स्टेशन पर मैसेज करें और जब तक कि बैग मिल ना जाए आगे के स्टेशनों पर मैसेज करते रहें. इसी दौरान 11:00 बजे के आसपास एसएचओ का फोन आया कि सर जो बोगी नंबर आपने बताई थी (1 नंबर) उसको चेक करा लिया है लेकिन उसमें इनका बैग नहीं था और वहां पर कोई 3 यात्री पुरानी दिल्ली स्टेशन से आ रहे हैं और वहीं बैठे हुए हैं. फिर मैंने शिकायतकर्ता शुक्ला जी से क्रॉस किया जिन शुक्ला जी ने मुझे यह सूचना दी थी उन्होंने कहा कि बताया सर गलती से मैंने बोगी नंबर 1 बता दिया. असल में बोगी नंबर 2 में यह बैग है.
फिर मैंने यह खबर एसएचओ को दी और इस घटना को मैं करीब 2 घंटे फॉलो करता रहा. रात 12:30 बजे मुझे खबर मिली कि बैग अंबाला से एएसआई ओमप्रकाश, जिनको हमने गाड़ी चेक करने को भिजवाया था, ने वहां से बरामद कर लिया है. यही नहीं 12:40 बजे के आसपास शुक्ला जी का भी मैसेज आया कि सर बैग मिल गया.
तो इस तरह से जब कोई एक आम आदमी उम्मीद से आपकी तरफ हाथ उठाकर इशारा करता है और मदद मांगता है उसकी मदद करने में बहुत खुशी महसूस होती है. मामला रेलवे का था मेरे विभाग का नहीं था. ट्रेन दिल्ली के बाहर जा चुकी थी इसके बाद भी मैंने इस प्रकरण को लगातार फॉलो किया और ईश्वरीय अनुकंपा से और मेरे प्रयासों से यह बैग मिल गया. यह बात आपको सूचित करते हुए बड़ी खुशी और बड़ी ही मानसिक शांति महसूस हो रही है. इससे पहले भी कई बार इस तरह की मदद करके मुझे बहुत खुशी मिली है चाहे वह किसी ऑफिसर की घड़ी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गायब हुई उसे दिलाना हो, चाहे किसी व्यक्ति का बैग जिसमें उसके खाने का सामान मात्र था उसी उसको खोज कर दिलाना हो. बहुत शांति महसूस होती है और अच्छा लगता है कि जरूरत पर हम किसी के काम आ सके ईश्वर ने हमें इस लायक बनाया है और आगे भी किसी की जरूरत पर काम आने की कोशिश करेंगे.
(रक्षक न्यूज़ टीम का अनुरोध है कि अगर मानवीय दृष्टिकोण से लोगों की मदद करने वाले इस अधिकारी का जज़्बा काबिले तारीफ़ लगे तो इस समाचार को शेयर ज़रूर करें. ये कई अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा होगी)