नक्सलियों के गढ़ में इस तरह स्कूल टीचर बने सीआरपीएफ के जवान

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सीआरपीएफ
यह फोटो चक्रधरपुर की है जहाँ 68 बटालियन का यह जवान छात्रों को पढा रहा है.

खून खराबा करने वाले नक्सलियों से निपटने के साथ-साथ भारत के झारखंड राज्य में केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ – CRPF) के जवानों ने अब उन सरकारी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी सम्भाल ली है जिनको पढ़ाने वाले टीचर हड़ताल पर चले गये हैं. दो चार स्कूल ही नहीं, झारखंड राज्य के 24 जिलों में से उन 18 जिलों के स्कूलों में ये जवान और अधिकारी बच्चों को उनके स्कूल में जाकर पढ़ा रहे हैं जहां जहां आसपास सीआरपीएफ की तैनाती है. दिलचस्प बात ये है कि इन जवानों और अधिकारियों ने यह भी कह डाला है कि वे इन बच्चों को तब तक पढ़ाते रहेंगे जब तक टीचरों की हड़ताल जारी रहेगी या जब तक बच्चों के पढ़ाने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो जाती.

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यह फोटो लोहरदग्गा जिले के चैनपुर की है जहाँ 158 बटालियन का यह जवान छात्रों को पढा रहा है.

बच्चों को ये जवान अपनी ड्यूटी और सीआरपीएफ का रूटीन का काम खत्म करने के बाद या उससे पहले पढ़ाते हैं. अधिकारियों का कहना है कि ये भले ही उनके काम का हिस्सा नहीं है लेकिन इस तरह की गतिविधियों से उन्हें न सिर्फ जनकल्याण का काम करके संतुष्टि और खुशी मिलती है, इससे स्थानीय लोगों का सीआरपीएफ पर भरोसा भी बढ़ता है जो उनके काम को आसान बनाता है. स्थानीय लोगों का सुरक्षा बलों पर भरोसा बढ़ना उन

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यह फोटो धनबाद की है जहाँ 154 बटालियन का यह जवान छात्रों को पढा रहा है.

नक्सलियों का सबसे बड़ा इलाज है जो स्थानीय लोगों के दम पर या उनसे जुटाए गये संसाधनों व समर्थन के बूते पर अपनी गतिविधियाँ चलाते हैं.

पहले से मदद :

नक्सली क्षेत्रों में जनकल्याण के तरह तरह के काम सीआरपीएफ की तरफ से अक्सर किये जाते हैं. एक अन्य अधिकारी ने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में सीआरपीएफ ने एक औपचारिक पहल तो यहाँ 2016 में जगह जगह पुस्तकालय बनाने से की थी. वर्तमान में 74 लाइब्रेरी झारखंड राज्य में सीआरपीएफ की मदद से चल रही हैं. किताबें और पढ़ाई की अन्य सामग्री ही नहीं, कई जगह तो बिजली तक का बन्दोबस्त सीआरपीएफ करती है. कुछ दूरदराज़ के इलाकों में पहले भी सीआरपीएफ के जवान या अधिकारी स्कूली बच्चों को पढ़ाई में मदद करते आ रहे हैं लेकिन ये पहला मौक़ा है जब इतने बडे स्तर पर सीआरपीएफ वाले बच्चों के टीचर बने हैं.

क्या है टीचरों का मसला :

झारखण्ड के स्कूलों में स्थाई अध्यापकों के अलावा 67 हज़ार शिक्षामित्र हैं जो बच्चों को पढ़ाते है. इन्हें पैरा टीचर भी कहा जाता है और इन्हें आठ हजार रूपये के हिसाब से मानदेय मिलता है. ये खुद को नियमित टीचर बनाये जाने और वैसे ही मानदेय की मांग कर रहे है. चुनावी माहौल में इन्हें उम्मीद है कि सरकार दबाव में आकर इनकी मांगे मान लेगी लिहाज़ा इन्होने हड़ताल लम्बी खींचने की घोषणा कर डाली है. ऐसे में छात्रों की पढ़ाई का ज्यादा हर्जा होने की आशंका को देखते हुए सीआरपीएफ के जवानों और अधिकारियों ने खुद उनको पढ़ाने का बीड़ा उठाया है.

अब टकराव बढ़ेगा :

इस बीच राज्य सरकार ने हड़ताली टीचरों को चेतावनी दी है कि काम पर नहीं लौटे तो उनकी छुट्टी कर दी जायेगी. सरकार ने उनकी जगह और टीचर्स को लाने के लिए अखबार में विज्ञापन तक छपवा दिया है. सरकार ने चेतावनी दी है कि 22 नवम्बर तक जो टीचर काम पर नहीं लौटेंगे उनको बर्खास्त कर दिया जायेगा और उनकी जगह जे टेट पास युवकों युवतियों को काम दिया जायेगा. वहीँ टीचरों ने तय किया है कि वो 22 नवम्बर से पूरे झारखंड राज्य में जेल भरो आन्दोलन शुरू करेंगे.