परमवीर चक्र से सम्मानित करगिल योद्धा योगेन्द्र सिंह ओनररी लेफ्टिनेंट बने

516
योगेन्द्र सिंह यादव
योगेन्द्र सिंह यादव को तरक्की देकर लेफ्टिनेंट (ओनररी) बनाया गया.

एक ऐसा सैनिक जो अभी बालिग भी नहीं हुआ था कि भारतीय सेना की वर्दी धारण कर ली. एक ऐसा जांबाज़ जिसे सबसे कम उम्र में भारतीय सेना के लिए योद्धा के तौर पर परमवीर चक्र पाने का गौरव प्राप्त हुआ. दुश्मन सैनिक को मौत की सौगात देकर और अपनी मौत को मात देकर गोलियों से छलनी जिस्म के साथ ये जांबाज़ फिर से देश सेवा के लिए लौटा. अब इस जांबाज़ को तरक्की देकर लेफ्टिनेंट (ओनररी) बनाया गया है. नाम हैं योगेन्द्र सिंह यादव.

जिस युद्ध में योगेन्द्र सिंह यादव ने साहस और वीरता दिखाई थी वो 1999 – 2000 में लड़ा गया था. पाकिस्तान के साथ जम्मू कश्मीर के सबसे सबसे दुर्गम इलाकों में लड़े गये इस करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना किसी भी कीमत पर द्रास सेक्टर की टाइगर हिल पर फिर से अपना कब्ज़ा चाहती थी. इसी मिशन के तहत 4 जुलाई,1999 को थल सेना की 18 ग्रेनेडियर्स की एक प्लाटून को टाइगर हिल के बेहद अहम तीन दुश्मन बंकरों पर कब्ज़ा करने का टास्क सौंपा गया था. लेकिन इन बंकरों तक पहुंचने के लिए ऊंची और खड़ी चढ़ाई करनी थी. लेकिन प्लाटून का नेतृत्व कर रहे योगेन्द्र यादव ने इसे करके दिखाया. इस दौरान घमासान में उनके शरीर में 15 गोलियां लगीं और उन्होंने ग्रेनेड हमले का भी सामना किया लेकिन हौसला नहीं छोड़ा. करगिल युद्ध में दिखाई इस वीरता के लिए उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. अब इस साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर योगेन्द्र सिंह यादव को ऑनरेरी लेफ्टिनेंट (Honorary Lieutenant ) बनाया गया है.

योगेन्द्र सिंह यादव
परमवीर चक्र से सम्मानित योद्धा योगेन्द्र सिंह

सेना से नाता :

योगेन्द्र सिंह के सामने भी इस बार उसी देश के दुश्मन सैनिक थे जिसकी फौजों से उनके पिता करण सिंह भी दो दो हाथ आज़मा चुके थे. 1965 और 1971 के युद्ध की कहानियाँ अपने फौजी पिता से सुनकर बडे हुए योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को यूपी के बुलंदशहर ज़िले में औरंगाबाद अहिर गांव में हुआ. उनके पिता कुमाऊँ रेजिमेंट में थे. उनकी प्रेरणा और सैनिक वर्दी से अभिभूत योगेन्द्र ने सिर्फ 16 साल की उम्र में ही सैनिक जीवन धारण कर लिया. योगेन्द्र 1996 में भारतीय सेना में भर्ती हुए. लेकिन कम उम्र और कम तजुर्बा उनकी उस कामयाबी के सामने रुकावट न बन सका जो उन्होंने साहस और वीरता से अपने देश का गौरव बढ़ाने की दिशा में हासिल की.

योगेन्द्र की घातक पलटन :

योगेन्द्र सिंह 4 जुलाई 1999 को अपनी ‘ घातक’ पलटन के साथ आगे बढ़े. ये लगभग 90 डिग्री की सीधी चढ़ाई थी जो बेहद जोखिम भरा काम था क्योंकि दूसरी तरफ दुश्मन नजरें गड़ाये बैठा था और मौका लगते ही फायरिंग कर रहा था लेकिन पलटन के सामने सिर्फ़ यही एक रास्ता था. इसी रास्ते से पाकिस्तानी सैनिकों को चकमा दिया जा सकता था. योगेन्द्र सिंह यादव की टीम रात करीब 8 बजे बेस कैंप से निकली और नामुमकिन सी दिखने वाली चढ़ाई शुरू कर दी. पलटन कुछ फासले तक ही पहुंची थी कि दुश्मन को उनके आने की आहट हो गई. बस फिर क्या था – पाकिस्तानी फौजियों ने ज़बरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी. इसमें कई भारतीय सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए. ऐसे में कुछ वक्त के लिए इस सैनिकों को पीछे हटना पड़ा. अगले दिन यानि 5 जुलाई को 18 ग्रेनेडियर्स के 25 सैनिक फिर से आगे बढ़े. इस दफा भी वे दुश्मन की निगाह से नहीं बच सके. पाकिस्तानी सैनिकों ने उनकी गोलियों का निशाना बनाना शुरू कर दिया .

योगेन्द्र सिंह यादव
करगिल युद्ध के दौरान जब घायल हुए थे योगेन्द्र सिंह यादव

पांच घंटे बाद सन्नाटा :

तकरीबन – तकरीबन पांच घंटे की लगातार गोलीबारी के बाद भारतीय सैनिक योजनाबद्ध तरीके से पीछे हटे. दुश्मन ने इसे अपनी जीत समझा और उसे लगा कि अब उन भारतीय सैनिकों में से या तो कोई नहीं बचा या लौट गये हैं और अब नहीं आ पाएंगे. दुश्मन खुश हो गया लेकिन उसे अंदाज़ा नहीं था कि यह एक सैनिक योजना का हिस्सा था. योगेन्द्र सिंह यादव समेत 7 हिन्दुस्तानी फ़ौजी अभी भी वहीं थे. सब शांत जानकर कुछ वक्त के बाद पाकिस्तानी सैनिक अपने अंदाज़े को पक्का करने के लिए कि कोई भारतीय सैनिक ज़िंदा तो नहीं बचा. इसी बीच घात लगाकर बैठे योगेन्द्र और उनके साथियों ने उन पर हमला कर दिया. इस घमासान के दौरान कुछ पाकिस्तानी सैनिक बचकर भाग गये. उन्होंने ऊपर जाकर योगेन्द्र की टुकड़ी के बारे में अपने पाकिस्तानी साथियों को बताया.

अंतिम घमासान :

इसके बाद फिर से घमासान हुआ. भारतीय सेना ने ज़ोरदार हमला कर के एक साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को उड़ा दिया.लेकिन हमले में योगेन्द्र भी बुरी तरह घायल हो गये. बावजूद इसके योगेन्द्र ने पास पड़ी रायफ़ल उठा ली थी और बचे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. योगेंद्र का काफी ख़ून बह चुका था. इसलिए वो ज़्यादा देर होश में नहीं रहे.

नाले ने जान बचाई :

घायल योगेन्द्र इत्तेफाकन एक नाले में जा गिरे जो ऊंचाई से आ रहा था. उसके पानी में बहते योगेन्द्र नीचे आ गए. इसके बाद भारतीय सैनिकों ने उन्हें बाहर निकाला और उन्हें इलाज मुहैया कराया गया जिससे इस उनकी जान बच सकी. योगेन्द्र सिंह की और उनके साथियों की इस जांबाजी ने भारतीय सेना को करगिल युद्ध में विजय दिलाने में अहम भूमिका निभाई.