भारत के सैनिक स्कूलों में अब लड़कियाँ भी पढ़ेंगी

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सैनिक स्कूल
सैनिक स्कूल में छात्राएं

भारत के अब सभी सैनिक स्कूल के दरवाजे अब छात्राओं के लिए भी खोल दिए गये हैं. सेना में अधिकारियों की भर्ती में एक तरह से पौधशाला का काम करने वाले सैनिक स्कूलों में लड़कियों का भी दाखिला किये जाने के सरकार के फैसले का ऐलान भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने तब किया जब वो देश की आज़ादी की सालगिरह के मौके पर लाल किले से सम्बोधन कर रहे थे. भारत में 28 सैनिक स्कूल हैं यानि कि तकरीबन हरेक राज्य में एक सैनिक स्कूल जिनमें सैन्य परिवारों के अलावा सामान्य नागरिक परिवारों के बच्चे भी दाखिला ले सकते हैं.

इसे भारत में सेनाओं में हिचकिचाते हुए महिलाओं को उचित दर्जा देने (स्थाई कमीशन आदि) की मानसिकता में आये इस परिवर्तन के तौर पर देखा जा सकता है. इसकी पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम से हुई जहां सैनिक स्कूल के दरवाजे पहली बार छात्राओं के लिए खोले गए थे. इसी स्कूल का ज़िक्र करते हुए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने सैनिक स्कूलों में लड़कियों को भी दाखिला देने के सरकार के फैसले का रविवार को भारत के 75 वें स्वत्रंतता दिवस पर ऐलान किया. लाल किले की प्राचीर पर भारत का राष्ट्र ध्वज तिरंगा फहराने के बाद नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को बधाई देते हुए ये जानकारी दी.

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15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

वैसे एक तथ्य ये भी है कि कुछ सैनिक स्कूलों ने छात्रों के साथ साथ छात्राओं को भी दाखिला देने की प्रक्रिया पहले ही शुरू करने का ऐलान कर दिया था. इनमें से बीजापुर , चंद्रपुर , घोड़ाखाल , कलिकरी और कोडगु के सैनिक स्कूल में लड़कियों को 2020 – 21 के सत्र के लिए दाखिला देने के फैसले का ऐलान तो खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नवंबर 2019 में किया था.

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सैनिक स्कूल मिजोरम की छात्राएं

श्री मोदी ने कहा कि सैनिक स्कूलों में छात्राओं को दाखिला दिए जाने की मांग लगातार हो रही थी. लड़कियों की महत्वकांक्षाएं हैं कि वे भी इन सैनिक स्कूलों में पढ़ाई कर सकें. उन्होंने कहा कि लाखों बेटियों से इस तरह के संदेश मिलते रहे हैं. करीब दो ढाई साल पहले मिज़ोरम स्थित सैनिक स्कूल में लड़कियों को भी दाखिला देने का प्रयोग किया गया था. अपने इसी सम्बोधन में भारत के प्रधानमत्री नरेंद्र ने ‘ राष्ट्रीय शिक्षा नीति ‘का भी ज़िक्र करते हुए कहा कि ये नीति 21 वीं सदी की सभी ज़रूरते पूरी करेगी . उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को एक ऐसा औज़ार बताया जो देश में गरीबी से लड़ने में एक अहम औज़ार का काम करेगा जिसमें खेलों को अतिरिक्त गतिविधि नहीं बल्कि एक विषय के तौर पर जगह दी गई है.

भारत में सेना में महिलाएं :

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सेना में महिलाएं

भारत में वर्तमान सरकार समेत साल 2020 तक तमाम सरकारों के राज में महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन देने में हिचकिचाहट या विरोध का रुख अपनाया है. सेना की मेडिकल कोर (medical corps ) के अलावा किसी भी भूमिका में महिलाओं के सआसानी से स्वीकृति नहीं हुई. यूँ तो 1888 में ब्रिटिश शासन काल में सेना में महिलाओं की भर्ती शुरू हुई थी लेकिन मेडिकल कोर में नर्स के तौर पर. भारत के आज़ादी के 11 साल बाद 1958 सेना की मेडिकल में महिलाओं को दीर्घकालीन कमीशन देना शुरू किया गया. यही वजह है कि भारतीय सेना में अब तक सिर्फ तीन महिला अधिकारी ही तीन स्टार वाली जनरल बन स्की हैं और वे भी मेडीकल कोर से रहीं.

मेडीकल कोर के अलावा सेना की अन्य कोर जैसे शिक्षा कोर (education corps ), इंजीनियरिंग कोर (engineering corps ) , सिग्नल कोर (signal corps)इलेक्ट्रॉनिक्स और मकेनिकल इंजीनियर्स कोर ( corps of electronics and mechanical engineers) आदि में साल 1992 में महिलाओं को दीर्घकालिक या स्थाई कमीशन देने का निर्णय हुआ था लेकिन ये सब वो कोर हैं जिनकी दुश्मन से जंग या मोर्चे पर आमने सामने की लड़ाई में अहम भूमिका नहीं होती. अदालतों में कई तरह के केस लड़कर महिलाओं ने सेना में अपने लिए उचित स्थान और ओहदा पाने के लिए संघर्ष किया है जिसकी वजह से साल भर पहले ही (2020 में ) सरकार ने भारतीय सेनाओं के अंगों और कोर में दीर्घकालिक या स्थाई कमीशन देने का फैसला लिया. खास तौर से शॉर्ट सर्विस कमीशन * short service commission ) से सेना में शामिल हुई महिलाओं को इसके लिए बार बार अदालतों में जाकर हक की लड़ाई लड़नी पड़ी.

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सेना में महिलाएं

भारतीय सेना का ही एक अंग प्रादेशिक सेना में 2018 महिलाओं के लिए कमीशन का रास्ता खुला था. 2020 में सेना की 8 कोर में महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन देने का रास्ता खोला गया. कई कोर में अब भी महिलाओं की शमूरियत है. कुछ में शॉर्ट सर्विस कमीशन वाली अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन का अभी प्रावधान नहीं हुआ है.

भारत में सैनिक स्कूल :

भारत में सैनिक स्कूलों (sainik school ) की स्थापना की शुरुआत साल 1961 में हुई थी. ऐसे स्कूल बनाने का विचार सबसे पहले भारत के तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन को आया था. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ( national defence academy – NDA ) में आने वाले कैडेट्स में क्षेत्रीय असंतुलन की समस्या को देखते हुए सैनिक स्कूलों का विचार आया था. विभिन्नता से भरे भारत की सेना में देश के तमाम प्रान्तों के जवानों और अधिकारियों की ज़रूरत महसूस की गई थी. इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए अलग अलग राज्यों में ऐसे स्कूल खोले गये . भारत में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक फैले तमाम राज्यों में स्थापित और सेना की तरफ से संचालित किये जाने वाले इन स्कूलों को चलाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार मिलकर खर्च उठाती हैं.

सैनिक स्कूल में दाखिला :

भारत में सैनिक स्कूलों में छठी कक्षा और नौवीं कक्षा में दाखिला होता है जिसके लिए छात्रों को लिखित परीक्षा पास करनी होती है. ये परीक्षा हरेक साल अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाती है. ये सभी स्कूल सीबीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त होते है. इनमें भी कुछ वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षण का प्रावधान है. ये स्कूल विभिन्न परीक्षाओं के लिए भी छात्रों को तैयार करते हैं और ये एनसीसी का हिस्सा भी होते हैं.