परिवार, बिरादरी एकजुट हो लेकिन देश सर्वोपरि – कायस्थ आईएएस व आईपीएस को संदेश

397
नई दिल्ली का  कॉनस्टिट्यूशन क्लब  शुक्रवार की शाम एक अलग तरह के  जमावड़े का गवाह बना .  भारत की अफसरशाही में ऊँचे ओहदे पर तैनात रहे रिटायर्ड सिविल अधिकारियों से लेकर वर्तमान में सेवारत अधिकारी  तो शामिल हुए ही वो युवा भी खासतौर पर बुलाये गए जो भावी अधिकारी हैं , जिनकी अभी अधिकारी के तौर पर तैनाती होनी हैं . सभा में इकट्ठा  हुए  सभी  अधिकारी भारत के विभिन्न प्रान्तों के हैं  , उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक  , लेकिन सब में एक समानता है . वो ये कि सब के सब उस कायस्थ बिरादरी के हैं जो खुद चित्रगुप्त का वंशज मानती है . इस मौके पर कायस्थ बिरादरी ने ,  हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी ) की परीक्षा में पास हुए , 6 युवाओं को सम्मानित किया जो अब आईएएस या आईपीएस बनने की राह पर हैं .

कायस्थ बिरादरी की इस सभा का आयोजन ‘ संगत – पंगत ‘  के बैनर तले किया गया जो कि कायस्थों का  2015 में शुरू किया गया एक अभियान है. इसके संस्थापक राज किशोर सिन्हा हैं जो भारत में प्राइवेट सिक्युरिटी और इससे जुडी सेवाएं उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी कंपनी समूह एसआईएस (SIS ) के मालिक हैं. क्यूंकि बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी और सेवानिवृत्त सैनिक इस सुरक्षा प्रदाता कंपनी में काम करते हैं  इस नाते पुलिस और सेना के क्षेत्र में इनकी अच्छी पकड है . आर के सिन्हा राज्य सभा के  सदस्य भी रहे हैं . हालांकि उनका कहना है कि ‘ संगत – पंगत ‘ की प्रेरणा नीरा शास्त्री से मिली . नीरा शास्त्री  भारत के स्वर्गवासी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुत्रवधू हैं .कार्यक्रम में स्वागत भाषण के दौरान  नीरा शास्त्री ने अपने ससुर श्री शास्त्री से जुडी कुछ बातों और 1965 के युद्ध का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि रूआबदार कद काठी और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले  देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद जब छोटे कद के सादा व्यक्तित्व वाले  शास्त्री जी प्रधानमन्त्री की कुर्सी बैठे तो देश के नेतृत्व देने की उनकी क्षमता पर लोगों को संदेह हुआ था,  ख़ास तौर से भारतीय सेनाओं के  नेतृत्व को लेकिन शास्त्री जी ने जंग लड़ने का फैसला उन पर छोड़ा और  उनके फैसले के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे. इसका नतीजा ये हुआ कि हमारी सेनाएं आत्म विश्वास के साथ लड़ीं और पाकिस्तान की सीमा पार करके लाहौर तक जा  पहुँचीं .  उन्होंने उस एक और घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि  1965 के युद्ध में उनके भाई की टांग में गोली लगी थी लेकिन ज़ख्म ऐसा था कि उनका जीवन  बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी टांग काटनी पड़ी.संगत – पंगत के इस आयोजन में पूर्व अफसरशाह पी पी श्रीवास्तव मुख्य अतिथि थे. श्री श्रीवास्तव आईएएस  अधिकारी बनने से पहले 3 साल तक आईपीएस के तौर पर  पुलिस सेवा में थे.  उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि सिविल अधिकारियों का सबसे बड़ा मकसद समाज के विभिन्न वर्गों में आखरी पायदान पर रह रहे ज़रूरतमंद  लोगों का ख्याल रखना होना चाहिए . एक आई ए एस के तौर पर  विभिन्न पदों पर रहे पी पी श्रीवास्तव लोकप्रिय अधिकारी थे . रिटायरमेंट के बाद सरकार ने उनकों विभिन्न राज्यपालों के सलाहकार के तौर पर भी तैनात किया . तकरीबन नब्बे वर्षीय पी पी श्रीवास्तव 1977 बैच के आई ए एस  अधिकारी तो हैं ही , इससे पहले वे आईपीएस भी रहे . पी पी श्रीवास्तव तीन दशक पहले रिटायर हुए  दिल्ली एन सी आर क्षेत्र में रहने वाले वे सबसे बुजुर्ग सिविल अधिकारी है .

कार्यक्रम के आयोजन में ,  दिल्ली पुलिस में तैनात रहे 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी  , उदय सहाय ने अहम भूमिका निभाई. समय से काफी पहले ही स्वेच्छा से पुलिस सेवा से रिटायर हुए उदय सहाय ने कायस्थ बिरादरी की उत्पत्ति से लेकर प्राचीन इतिहास और विभिन्न तरह की पहचान के साथ अलग अलग प्रान्तों में  प्रवास पर काफी शोध कार्य किया है. इस नाते उनकी इस बिरादरी में न सिर्फ एक पहचान बनी बल्कि बिरादरी को अपने इतिहास से  और वर्तमान में एक दूसरे से जुड़ने का मौका भी मिला.  उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं हैं .  पूर्व आईपीएस उदय सहाय का कहना है कि हर बिरादरी को अपने इतिहास से जुड़ना चाहिए और खुद पर गर्व करना चाहिए . उनका कहना है कि ये एकजुटता किसी पर हावी होने के लिए नहीं बल्कि एक दूसरे को सशक्त करके समाज के तमाम तबकों की मदद करने के लिए है.

पूर्व आईपीएस अधिकारी आमोद कंठ ने इस अवसर पर अपने करियर के कुछ संस्मरण साझा किए. उन्होंने कहा कि सिविल अधिकारियों को अपना काम नौकरी की तरह नहीं एक सेवा के तौर पर लेना चाहिए . श्री कंठ 1974 बैच की आईपीएस हैं. दिल्ली समेत विभिन्न केंद्र शासित क्षेत्रों में वे तैनात रहे हैं और इस दौरान बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने ‘ प्रयास ‘ नामक संस्था की स्थापना की जोकि भारत में अब एक लोकप्रिय और  बड़ा एनजीओ है जो सैंकड़ों ज़रूरतमंद बच्चों की देखभाल करता है.  श्री कंठ तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सुबोध कांत सहाय के ओ एस डी भीं रहे. सुबोध कान्त सहाय भी इस अवसर पर मौजूद थे. श्री कंठ ने एक दिलचस्प वाक्या भी बताया जब आईपीएस बनने से पहले 23 साल की उम्र में वे प्राध्यापक भी बने थे. उन्होंने एक शिक्षण संस्थान  की शुरुआत की थी जो आल बहादुर शास्त्री के नाम पर खोला गया था. इसे बनाने में लोगों ने योगदान दिया था लेकिन इसमें शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने शुरुआत में अर्थदान किया था.

नगालैंड के मुख्य सचिव के तौर पर हाल ही में नियुक्त किये गए 1990 बैच की आई ए एस अधिकारी  ज्योति कलश और उनके छोटे भाई आईपीएस अमृत कलश भी इस अवसर पर ख़ास तौर से आमंत्रित किये गए. अमृत कलश 1993 बैच के आईपीएस है और वर्तमान में राजस्थान में पुलिस महानिदेशक के पद पर तैनात हैं .  भारत सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी रहे आई ए एस अमिताभ वर्मा ने भी सभा को सम्बोधित किया. वित्त मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी (बैंकिंग ) के उनके कार्यकाल को बहुत से लोग याद करते हैं जब उनका ज़बरदस्त प्रभाव था . श्री वर्मा ने अधिकारियों से अधिकतम  विनम्रता का गुण  अपनाने को कहा. उन्होंने कहा कि जो भी शख्स  उनके पास किसी काम से आए उनकी हर सम्भव मदद करें . अगर उसका काम नहीं भी कर सकते तो उसे अच्छे से समझा कर भेजें.

एक ज़माना था जब भारत की सिविल सोसायटी में  इस  कायस्थ समाज की तूती बोलती थी जोकि काफी सक्षम व प्रबन्धन के मामले में अग्रणी माना जाता है . इस बात का ज़िक्र सभा में कई बार हुआ. साथ ही भारतीय समाज और देश की तरक्की में इस बिरादरी के योगदान का ज़िक्र भी करते हुए वक्ताओं ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की बात कही. एक समय था जब यूपीएससी के एक बैच में 70 – 75 तक आईएएस अधिकारी होते थे लेकिन जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था लागू होने के कारण ये संख्या कम हो गई. इसके अलावा अन्य सरकारी  नौकरियों में भी आरक्षण लागू होने से कायस्थ बिरादरी के युवाओं के लिए मौके कम हुए हैं . इस तकलीफ का ज़िक्र नीरा शास्त्री ने किया जोकि भारतीय जनता पार्टी की नेता भी हैं. वहीं उदय सहाय ने बताया कि यूपीएससी के 2022 बैच में उतीर्ण हुए अभ्यर्थियों में 25 कायस्थ बिरादरी से हैं.

कार्यक्रम को उन इतिहासकार प्रोफेसर मखनलाल ने भी संबोधित किया जो भारतीय इतिहास को फिर से लिखने के काम में लगे हैं . देश विदेश के विश्वविद्यालयों  में पढ़ा चुके प्रोफ़ेसर मखन लाल का  संघ परिवार से  ताल्लुक  है और अपने लेखन  या कुछ अन्य कारणों से  विवादों के चक्कर में खबरों में चर्चित  भी रहे हैं . वैसे नीरा शास्त्री के संबोधन के कुछ हिस्से में राजनीतिक प्रभाव को छोड़ दें तो ये आयोजन सियासत से दूर ही रहा जबकि वहां अलग अलग सियासी विचारधारा वाले दलों के नेता या शख्सियतें भी थीं . उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर आर के सिन्हा ने भी सभा को संबोधित किया.

कुल मिलाकर इस आयोजन के ज़रिये ये सन्देश देने की कोशिश की गई कि सबको अपने अपने स्तर पर सशक्त , सक्षम और एकजुट होना चाहिए ताकि समाज के हर वर्ग में  सबसे निचले स्तर पर मौजूद व्यक्ति की मदद की जा सके. यहां ये भी बताया गया कि  परिवार और बिरादरी का हित भी देखना है लेकिन राष्ट्रहित  सबसे ऊपर  रहना चाहिए.

चित्रगुप्त वंदना से शुरू हुए इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से भी लोग आए . उनका खास तौर से सम्मान किया गया. इस आयोजन के ज़रिए ये जानकारी भी दी गई कि कायस्थ बिरादरी पूरे भारत वर्ष में है लेकिन अलग अलग पहचान के साथ बसी हुई है . मंच पर पृष्ठभूमि  में लगे विशाल फ्लेक्स बोर्ड पर भारत की  उन महान  हस्तियों के चित्र छपे थे जो कायस्थ वर्ण से हैं और जिनका नाम एक हरेक भारतीय  सम्मान के साथ लेता है . इनमें स्वामी विवेकानंद ,  सुभाष चंद्र बोस ,  देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद  और लाल बहादुर शास्त्री  शामिल हैं .