कश्मीर की तिरंगा क्रान्ति में सेना और सुरक्षा बलों की दृढ़ भूमिका

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तिरंगा क्रान्ति
कश्मीर में तिरंगा

तीन दशक से भी ज्यादा अरसे से आतंकवाद का दंश झेल रहे जम्मू कश्मीर में ‘तिरंगा क्रान्ति’ का स्वरूप भले ही देखने-सुनने में एक छोटा प्रयास लगे लेकिन इसके कुछ पहलू अलगाववाद की भावना को ख़त्म करने और इस इलाके को सम्पूर्ण भारतीयता का लिबास पहनाने में अहम साबित हो सकते हैं. भारतीय थल सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी की पहल पर इसी साल शुरू हुई तिरंगा मुहिम में अब जहां दूसरे सुरक्षा बल भी दिलचस्पी लेने लगे हैं वहीं उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के आदेश के बाद नागरिक प्रशासन ने भी जगह जगह तिरंगा फहराने की प्रक्रिया शुरू की है. इसमें भी सेना सहयोग कर रही है.

तिरंगा क्रान्ति
जम्मू कश्मीर में तिरंगे के आर्टिस्ट

हालांकि शुरू शुरू में भले ही इसका विरोध करके इस मुद्दे पर विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई लेकिन सेना और सुरक्षा बलों की दृढ़ता ‘तिरंगा क्रान्ति’ के संचार में चुनौतियों का सामना करते करते अपना योगदान देने में मददगार साबित हो रही है. एक अधिकारी का तो स्पष्ट कहना है कि जो कोई इस मुहिम में रोड़ा अटकाने की कोशिश करेगा या राष्ट्र ध्वज का अपमान करेगा उससे कानूनन सख्ती से निपटा जाएगा.

अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करके उसे दो हिस्सों में तक़सीम करके उन्हें केंद्र शासित क्षेत्र शासित प्रान्तों में तब्दील किया गया था. इस फैसले के खासा अरसा बीतने के बाद जगह जगह भारत का राष्ट्रीय ध्वज लगाने की इस मुहिम के तहत जम्मू कश्मीर के पुराने सूबाई झंडे की भी रुखसती शुरू हुई. हालांकि इस ‘तिरंगा क्रांति’ के दौरान कई बार अफसोसनाक और अजीबो गरीब घटनाएं भी सामने आईं, खासतौर पर जब किसी नये स्थान पर पहली बार झंडा फहराया गया. जब मार्च 2021 में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मुख्य सरकारी इमारतों और जिला मुख्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के आदेश जारी किये तब ऐसी घटनाएं और दिखाई दीं.

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डल झील के शिकारा पर फहराता तिरंगा.

तिरंगा फहराने के समारोह के दौरान, रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन…’ गाया जाता है लेकिन ऐसे मौके पर कुछ ऐसे लोग भी मौजूद होते थे जिन्हें न तो राष्ट्रगान आता था और कुछ में इसे गाने में भी हिचकिचाहट भी थी. कइयों को तो ये भी नहीं पता था राष्ट्रगान बजाते या गाए जाते वक्त ध्वज के सम्मान में किस तरीके से सावधान मुद्रा में खड़ा होना है.

सैन्य प्रशासन एक सोची समझी रणनीति के तहत, कश्मीर के आम जनमानस में तिरंगे को फहराते वक्त अपनाये जाने वाले तौर तरीकों के प्रति जागरूकता लाने में भी भूमिका अदा कर रहा है. उन्हें बताया जा रहा है कि झंडे की लम्बाई-चौड़ाई और आकार के साथ साथ सही रंग कौन से हैं. सरकारी कार्यक्रमों या कुछ ख़ास मौके पर तिरंगा फहराने या लगाने के आदेश के बाद तिरंगों की मांग भी होने लगी है.

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कश्मीर में तिरंगा

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उन्हें इस काम में सहायता के लिए नागरिक प्रशासन से भी कभी कभार अनुरोध आता है जिसे सेना ख़ुशी ख़ुशी पूरा करती है. तिरंगों की मांग बढ़ने के बाद कुछ महिलाओं को कपड़े के तिरंगे सिलने का काम भी दिया गया है. सेना के ही एक अन्य अधिकारी का कहना था कि राष्ट्रीय ध्वज का जगह जगह दिखाई देना उन लोगों के मन में भारतीयता की भावना को न सिर्फ बढ़ावा देता है जो अब तक सूबाई झंडे को सर्वोपरि मानकर तिरंगे को अहमियत देते थे बल्कि अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली हवा को भी रोकता है. श्रीनगर का दिल कहलाने वाला लाल चौक हो या शानदार डल लेक के शिकारे से लेकर ज़िला नगर परिषदों व नगर पालिकाओं के मुख्यालय तक में अब भारत का राष्ट्र ध्वज फहरता दिखाई देने लगा है.

एक अन्य अधिकारी का तो यहाँ तक मानना है कि ये उन तत्वों के लिए भी सबक है जो पाकिस्तान के समर्थन में या कथित आज़ादी के बहाने से अलगाव की कुभावना को बढ़ाने या पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं क्यूंकि उनके बहकावे में आये लोगों के जेहन में ये बात अब धीरे धीरे घर करने लगी है कि वे और उनकी भूमि भारत का ही एक हिस्सा हैं. उनमें ये बदलाव अपनत्व को बढ़ावा देगा और नये निज़ाम को कबूल करने में मदद करेगा.