चला गया भारत का वीर चक्र विजेता महान नौसैनिक वाइस एडमिरल एमपी अवाती

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वाइस एडमिरल एमपी अवाती
महान भारतीय नौसैनिक और प्रकृति प्रेमी, वीर चक्र और अति विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित वाइस एडमिरल एमपी अवाती.

भारत पाकिस्तान के 1971 युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने वाले महान भारतीय नौसैनिक और प्रकृति प्रेमी, वीर चक्र और अति विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित वाइस एडमिरल एमपी अवाती रविवार की सुबह 91 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से कूच कर गये. उनका पूरा नाम मनोहर प्रल्हाद अवाती है. हर नज़रिये से भरपूर जीवन जीने वाले ज़बरदस्त नाविक एमपी अवाती का नाम न सिर्फ समुद्र की निगहबानी में अमिट छाप छोड़ने वाला रहा बल्कि नौकायन और शिपिंग को भी एक नज़रिया देने में उनका योगदान हमेशा इतिहास में दर्ज रहेगा. कभी न आराम करने वाले मराठा सपूत एमपी अवाती ने अंतिम सांस भी महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में गृह नगर विन्चरनी में जब ली तब वो एक फिल्म की शूटिंग में मसरूफ थे.

वाइस एडमिरल एमपी अवाती
एक युग का अंत…आखिरी सैल्यूट एडमिरल.

भारतीय सेना में कार्यरत और रिटायर्ड कई अफसर ऐसे हैं जिनके लिए वाइस एडमिरल मनोहर प्रल्हाद अवाती गुरु भी थे, दिशा व प्रदर्शक भी थे और साथ ही प्रेरणास्रोत भी. भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लान्बा ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वाइस एडमिरल मनोहर प्रल्हाद अवाती को ऊँचे कद का नायक और महानता का प्रतिरूप बताया और कहा कि उनके जाने के साथ एक युग की समाप्ति हो गई.

1983 में भारतीय नौसेना की पश्चिमी कमान के प्रमुख के तौर पर रिटायर होने के बाद तो उन्होंने पेशेवर और सामाजिक जीवन और भी शिद्दत से जीया. ऐसा शायद ही कोई नौसैनिक हो जिसको वाइस एडमिरल एमपी अवाती का जीवनवृत्त प्रभावित न करता हो. भारत में नौसेना और नौकायन के क्षेत्र में होने वाला कोई भी बड़ा अभियान या कार्यक्रम उनकी मौजूदगी के बिना मानो अधूरा सा लगता था.

दुनिया भर का चक्कर लगाकर लौटी भारतीय महिला नौसैनिकों की पहली नौका तारिणी का पिछले साल मार्च में स्वदेश आगमन रहा हो या दुनिया की सबसे लम्बी समुद्री दौड़ पर निकले कमांडर अभिलाष टोमी का कारनामा, एडमिरल अवाती की उपस्थिति ऐसे हरेक आयोजन में चार चाँद लगा देती थी. मार्च 1976 से जुलाई 1977 के बीच राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (नेशनल डिफेन्स एकेडमी) के कमान्डेंट रहे एमपी अवाती का सपना था कमांडर अभिलाष टोमी जैसे अभियान पर खुद निकलना लेकिन तब संसाधनों की कमी की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाये थे.

वीर चक्र की कहानी :

वाइस एडमिरल एमपी अवाती
वाइस एडमिरल एमपी अवाती.

वाइस एडमिरल एमपी अवाती को प्रदत्त वीर चक्र (तब वो कैप्टन थे) के प्रशस्ति पत्र में दर्ज तथ्यों के मुताबिक़ – कैप्टन मनोहर प्रल्हाद दिसंबर 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध किए गए ऑपरेशनों के दौरान भारतीय नौसेना यूनिट के पूर्वी बेड़े के कमांडिंग अफसर थे. इन्हें पूरे ऑपरेशनों की अवधि के दौरान शत्रु के उन समुद्री इलाकों में ऑपरेट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जहां उनके पोत को शत्रु की बारूदी सुरंगों एवं पनडुब्बियों से लगातार खतरा बना हुआ था. इन्होंने अपने मजबूत इरादे के बलबूते बांग्लादेश में शत्रु द्वारा रक्षित पत्तनों की लगातार जांच की तथा शत्रुओं को भारी नुकसान पहुंचाया. इन्होंने नाकाबंदी के दौरान शत्रुओं के तीन पोतों पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधिकार में ले लिया जिनमें वर्जित माल लदा हुआ था. इस दौरान, उन्होंने पनडुब्बी से संपर्क करने मं6 सफलता हासिल की और उस पर पूरी शक्ति से आक्रमण कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप संभवतः उस पनडुब्बी का समूल नाश हो गया. इस पूरी कार्रवाई के दौरान कैप्टन मनोहर प्रल्हाद अवाती ने उच्च कोटि की शूरवीरता, नेतृत्व क्षमता एवं ड्यूटी के प्रति निष्ठा भाव का प्रदर्शन किया.

वो पाकिस्तानी रिवाल्वर :

पाकिस्तान के दो टुकड़े कराने में अहम भूमिका निभाने वाले भारत ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सेना का बखूबी इस्तेमाल किया था. तब पाकिस्तान के वरिष्ठ नौसैनिक अधिकारियों ने सरेंडर के वक्त प्रतीक रूप में .38 कैलिबर का वेबले रिवाल्वर भारतीय नौसैनिकों के सुपुर्द किया था.

दिसम्बर 2015 तक ये रिवाल्वर संग्रहालय में तब्दील हुए आईएनएस विक्रांत में रखा था जिसे रिटायर्ड वाइस एडमिरल एमपी अवाती ने तीन साल पहले, सेना के तीनों अंगों के लिए अधिकारी तैयार करने वाले संस्थान एनडीए के म्यूज़ियम की स्थायी धरोहर बनाने के लिए एनडीए के तत्कालीन कमांडेंट वाइस एडमिरल जी अशोक कुमार को सौंपा था.

एडमिरल एमपी अवाती का नौसैनिक जीवन :

7 सितम्बर 1927 को जन्मे एडमिरल अवाती ने स्कूली पढ़ाई मुम्बई के किंग जार्ज स्कूल और महाराष्ट्र एजूकेशन सोसायटी के पुणे स्थित स्कूल से की. 1945 में वो भारतीय नौसेना में भर्ती हुए तब इसे रायल इंडियन नेवी (RIN ) कहा जाता था. डार्ट्समाऊथ और ग्रीनविच के रॉयल नेवल कॉलेज में ट्रेनिंग के बाद उन्होंने ब्रिटिश नौसेना में भी ट्रेनिंग ली. भारतीय नौसेना में सक्रिय काम करने के लिए वह मार्च 1950 में भारत लौटे. सिग्नल संचार में विशेषज्ञता प्राप्त अवाती ने भारतीय नौसेना के कई जहाजों को सेवा दी जिनमें आईएनएस रणजीत, वेंदुरुति, किस्तना तो प्रमुख ही. बाद में उन्होंने बेतवा, तीर और मैसूर की भी कमान सम्भाली.

कुछ और बड़ी उपलब्धियां :

अति विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित एडमिरल अवाती 1982 के एशियाई खेलों की नौकायन संयोजन समिति के अध्यक्ष भी थे. प्रकृति और वन्य जीवों के प्रति उनका प्रेम उनकी उन दो किताबों, ‘होमो सेपियंस एंड पेंथरो लियो’ और ‘द वेनिशिंग इन्डियन टाइगर’, के सम्पादन से परिलक्षित होता है जो शेरों के संरक्षण और बाघ की विलुप्तता पर लिखी गई थीं.
लिखने पढ़ने के शौक़ीन एम पी अवाती ब्लिट्ज़ पब्लिकेशन्स के वाइस प्रेसिडेंट और जहाज़रानी कम्पनी तोलानी शिपिंग कम्पनी के प्रेसिडेंट भी थे. भारत में निर्मित नाव में अकेले पूरी दुनिया का चक्कर लगाने का, अगस्त 2009 से मई 2010 तक का सागर परिक्रमा अभियान उन्हीं के दिमाग की उपज थी जो आधुनिक भारत में समुद्र के सबसे महत्वाकांक्षी अभियान के तौर पर दर्ज हो चुका है.