अकेले चार-चार आतंकियों से भिड़े हवलदार हंगपन दादा फिर बहुत याद आये

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हंगपन दादा
भारतीय सेना की दाओ डिवीजन (Dao Division) ने अशोक चक्र (मरणोपरांत) विजेता हंगपन दादा का शहादत के 26 मई को दो वर्ष पूर्व होने पर अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले में स्थित उनके गांव बोर्दुरिया में उनके स्मारक का उद्घाटन किया. Photo/adgpi

हवलदार हंगपन दादा की शूरवीरता है ही ऐसी कि इसे बार बार लिखने, बताने और सुनने-सुनाने का मन करता है. मानो इफेक्ट्स से लबरेज कोई दक्षिण भारतीय फिल्म के हीरो की खलनायकों से फाइट का सीन हो और हीरो भी ऐसा जो अपने दम पर एक एक करके आतंकियों को गाजर मूली की माफिक उन्हें उनके आखिरी अंजाम तक पहुंचा रहा हो. अब जब इस जांबाज़ी की दूसरी बरसी पर दादा का स्मारक उनके गाँव में बनाया गया तो जम्मू कश्मीर के नौगाम की शमशाबारी रेंज में हुई उस भीषण मुठभेड़ की तस्वीर एक चित्रकथा की तरह जिंदा हो गई. भारतीय सेना के वीरों के लिए प्रेरणा और जोश का एक मुकाम है ये नाम-हवलदार हंगपन दादा, अशोक चक्र (मरणोपरांत).

वो दो साल (2016) पहले के मई महीने की 26 तारीख की रात थी. समुद्र तट से 12 हज़ार 500 फुट की ऊंचाई पर सेना की साबू चौकी पर 37 बरस का ये हवलदार अपनी टुकड़ी के साथ तैनात था जब इसकी नज़र, अँधेरे का फायदा उठाकर भारत की सीमा में घुसपैठ कर रहे हथियारों से लैस आतंकवादियों पर पड़ी. हंगपन दादा ने आतंकवादियों को ललकारा और शुरू हो गई वहां भीषण मुठभेड़ और वो भी ऐसी कि 24 घंटे चली. आतंकवादियों के पास बहुत असलाह था और वो थे भी पूरी तरह ट्रेंड. इससे पहले कि वो और आगे बढ़कर हमला करते, हंगपन दादा ने चारों आतंकियों से खुद ही हिसाब किताब करने की ठान ली. अचानक उन्होंने आतंकियों के सामने पहुंचकर हमला बोल दिया. दो को तो उन्होंने गोलियों से भून डाला और तीसरे को तो बिना हथियार ही ढेर कर डाला. उसके साथ हाथापाई के दौरान दादा लाइन आफ कंट्रोल (LOC) की दिशा में ढलान पर फिसल गये और बुरी तरह घायल भी हुए. इसी बीच वहां घात लागाकर बैठे आतंकी ने ऑटोमेटिक हथियार से गोलियों की बौछार कर डाली. इससे भी हंगपन दादा को तगड़ी चोटें आईं लेकिन सर पर कफ़न बांध के रण में उतरा ये बहादुर हवलदार कहाँ डगमगाने वाला था. दादा ने पूरी ताकत से चौथे को भी तगड़ा जवाब दिया और उसका भी काम तमाम कर डाला लेकिन साथ ही अपना भी बलिदान दे दिया.

बलिदान के लिए अशोक चक्र :

हवलदार हंगपन दादा, अशोक चक्र (मरणोपरांत)
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अशोक चक्र (मरणोपरान्त) प्राप्त करतीं हंगपन दादा की पत्नी. (फाइल फोटो)

इसके बाद फिर से 26 तारीख आई लेकिन नौ महीने बाद. जी हाँ, 26 जनवरी 2017, भारत का गणतंत्र दिवस. दिल्ली में इंडिया गेट की छाया में राजपथ से इस जांबाजी की कहानी टीवी पर पूरी दुनिया ने उस वक्त सुनी जब इस शहीद को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अशोक चक्र (मरणोपरान्त) से सम्मानित किया. शूरवीरता का वो सर्वश्रेष्ठ सम्मान जो भारत में शांतिकाल में दिया जाता है. वो बेहद भावुक दृश्य था जब दादा की विधवा चेसन लोवांग अश्रुपूरित नेत्रों से, पति की शूरवीरता और कुर्बानी का, ये सम्मान लेने के लिए मंच पर आयीं थीं.

कौन थे हंगपन दादा :

हवलदार हंगपन दादा, अशोक चक्र (मरणोपरांत)
हवलदार हंगपन दादा अपनी पत्नी के साथ (फाइल फोटो)

पूर्वोतर के राज्य अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले के बोर्दुरिया गाँव में 2 अक्टूबर 1979 को पैदा हुए हंगपन के साहस की कहानी बचपन में ही शुरू हो गई थी जब उन्होंने साथी सोमांग लामरा बालक को नदी में डूबने बचाया था. हंगपन 28 अक्टूबर 1997 को पैराशूट रेजिमेंट में भर्ती हुए. 2005 में उनका तबादला असम रेजिमेंटल सेंटर में किया गया और इसके तीन साल बाद वो असम रेजिमेंट की 4 बटालियन में स्थानांतरित किये गये लेकिन इसके बाद खुद उन्होंने राष्ट्रीय रायफल्स में जाने की प्रार्थना की तो उन्हें मई 2016 को आरआर की 35वीं बटालियन में तैनात किया गया.

हंगपन दादा की स्मृति :

शूरवीरता और सर्वोच्च बलिदान की बड़ी मिसाल बने दादा को सेना और भारत देश कभी न भुला पायेगा. इसी भावना के साथ असम रेजिमेंटल सेंटर (ARC) के प्रशासनिक ब्लाक का नाम हंगपन के नाम पर रखा गया. उनके नाम पर अरुणाचल प्रदेश में फ़ुटबाल टूर्नामेंट हंगपन दादा स्मृति ट्राफी के अलावा वालीबाल का भी राज्यस्तरीय मुकाबला कराया जाता है.

हवलदार हंगपन दादा की शहादत की दूसरी बरसी पर सेना ने अब अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले में उनके गाँव बोर्दुरिया में उनका स्मारक बनाया है. इस अवसर पर सेना के रस्मो रिवाज़ के मुताबिक शहीद को सलामी दी गई. इलाके के विधायक, जिले के अधिकारी और कई गण्यमान्य लोग इस कार्यक्रम में शरीक हुए.

 

हंगपन दादा
स्मारक के उद्घाटन पर हंगपन दादा की पत्नी चेसन दादा और उनकी बेटी और बेटा के अलावा स्थानीय विधायक और सरकारी अधिकारी भी मौजूद थे. Photo/adgpi
हंगपन दादा
स्मारक के उद्घाटन के मौके पर सलामी देती सेना की दाओ डिवीजन. Photo/adgpi
हवलदार हंगपन दादा, अशोक चक्र (मरणोपरांत)
हवलदार हंगपन दादा (फाइल फोटो)
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