दो सौ साल के सैनिक इतिहास वाले खानदान के, भारतीय सेना के जनरल ज़ूम शाह की आटोबायोग्राफी ‘द सरकारी मुसलमान’ (The Sarkari Mussalman) आखिर विवादों के बीच रिलीज़ हुई. रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह को सेना ने ही एक तरह तभी से ज़ूम शाह बनाया था जब वह नेशनल डिफेन्स एकेडमी में कैडेट थे. इसके बाद से साथी फ़ौजी उन्हें ज़ूम शाह पुकारने लगे. जाने माने फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के, उनसे दो साल बड़े, भाई ज़हीर शाह के रैंक बदलते रहे. वह सेकंड लेफ्टिनेंट से लेकर डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ बने लेकिन ज़ूम उनके नाम के साथ हमेशा जुड़ा रहा. साल भर पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के प्रतिष्ठित ओहदे से हटने के बाद मिली फुर्सत में उन्होंने ये किताब लिखी.
![लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/10/Lt-General-Zameer-Uddin-Shah.jpg)
जनरल ज़मीर शाह की लिखी इस किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ का जब दिल्ली में पूर्व उपराष्ट्रपति डाक्टर हामिद अंसारी विमोचन कर रहे थे तब इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर के उस सभागार में जितने लोग थे, उतनी ही भीड़ शायद बाहर भी रही होगी. दिल्ली में किसी किताब के लांच पर ऐसी भीड़ विरले ही देखने को मिलती है. लेकिन इस भीड़ के वहां होने की अलग अलग वाजिब वजह भी थीं. पहली तो यही कि अपने जीवन के अनुभवों की ये किताब भारतीय सेना के एक रिटायर्ड जनरल ने उस दौर में लिखी जब सेना से जुड़े विषय लगातार सुर्ख़ियों में रहते हैं, दूसरा उनकी और उनके भाई नसीरुद्दीन शाह के साथ साथ अभिनेता बेटे मेजर मोहम्मद अली शाह के फैन, फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से उनका जुड़ा होना. इतना ही नहीं, किताब का रिलीज़ होने से पहले ही विवादों से घिर जाना इस भीड़ की मौजूदगी की सबसे बड़ी वजह बनी. विवाद भी ऐसा जिसका ताल्लुक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली शख्सियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हो.
![लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/10/Zameer-Uddin-Shah-2.jpg)
असल में, अपने जीवन के कई पहलुओं की चर्चा करते वक्त, जनरल ज़ूम शाह ने इस किताब में कुछ पन्ने गुजरात में 2002 के तब हुए दंगों के हालात से निबटने के लिए की गई अपनी तैनाती को भी समर्पित किये जब वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे. किताब में लिखा गया है कि गोधरा काण्ड के बाद अहमदाबाद और वड़ोदरा जैसे शहरों में हुए उन दंगों को कंट्रोल करने के लिए सेना तो बुलाई गयी लेकिन उसके लिए समय पर वे ज़रूरी बन्दोबस्त नहीं किये गये जिससे वह काम कर पाती. इन बंदोबस्त को मुहैया कराने में देरी हुई जोकि प्रशासनिक नाकामी थी. जनरल ज़मीरुद्दीन शाह के मुताबिक़ देरी की ये हालत तो तब थी जबकि उन्होंने वहां पहुँचते ही सीएम नरेंद्र मोदी से, तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस की मौजूदगी में मुलाक़ात की थी. सेना को स्थानीय प्रशासन की मदद की ज़रूरत थी जो पूरा एक दिन बीतने के बाद दी गई. इस दौरान जानमाल का काफी नुकसान हुआ.
किताब का ये पहलू, रिलीज़ से पहले ही तब सामने आया जब पूर्व उप राष्ट्रपति डाक्टर हामिद अंसारी को, अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के फोरम फार मुस्लिम स्टडीज़ एंड ऐनालिसिस के पूर्व मीडिया सलाहकार डाक्टर जासिम मोहम्मद ने पत्र लिखकर अनुरोध किया कि वह जनरल ज़मीरुद्दीन शाह की किताब का विमोचन न करें. पत्र में इस बात का ज़िक्र किया गया कि किताब में गलत तथ्य हैं.
वैसे जनरल ज़मीर शाह की किताब के विमोचन को राजनीतिक नज़रिये से भी देखा जा रहा है क्यूंकि इसी साल जहां भारत में कुछ राज्यों में विधान सभा चुनाव है, वहीं अगले साल लोकसभा के चुनाव भी हैं. और किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ का ये हिस्सा मुख्यमंत्री (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल खड़ा करता है या फिर उनकी साम्प्रदायिकतावादी सोच वाले व्यक्ति की छवि की तरफ इशारा करता है. ज़ाहिर है इसका विवादास्पद होना.
सियासत और विवाद इसलिए भी :
किताब के कुछेक पन्नों की वजह से उसके विवादों से घिर जाने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) ज़मीर उद्दीन शाह मीडिया पर दोष मढ़ते हैं. उनका कहना है कि किताब में बहुत कुछ है लेकिन मीडिया ने इसी पहलू को उजागर करके विवाद खड़ा कर डाला. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया है कि किताब या इस घटना को किसी राजनीतिक मकसद से नहीं लिखा गया.
दूसरी तरफ एक सच्चाई ये है कि किताब के रिलीज़ से पहले और बाद में भी वह इस मुद्दे पर खूब मुखर रहे. बात इतनी ही नहीं है, गुजरात दंगों से जुड़े किताब के प्रकाशित पन्नों को पूर्व उप राष्ट्रपति डाक्टर हामिद अंसारी ने भी खासतौर से पढ़ कर सुनाया. वो भी प्वाइंट दर प्वाइंट.
![लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/10/Zameer-Uddin-Shah-6.jpg)
बचपन की बात :
ब्रिटिश शासन की गुलामी से भारत की आजादी के ठीक एक साल बाद यानि 15 अगस्त 1948 को उत्तर प्रदेश के बहराइच में पैदा हुए ज़मीर शाह को माँ से अलग करके मौसी के पास उत्तर पश्चिम उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर मेरठ के पास सरधना भेज दिया गया था, जहां उनकी शुरूआती शिक्षा मदरसे में हुई. इसके बाद उन्हें नैनीताल के बोर्डिंग में भेज दिया गया. नसीरुद्दीन शाह भी उनके साथ यहीं पढ़े.
धर्म के आधार पर कोई भेद नहीं :
किताब में जनरल ज़मीर उद्दीन शाह ने कई मार्मिक और संवेदनशील पलों और मुद्दों का ज़िक्र किया है. लेकिन उनका तजुर्बा ये है कि भारतीय सेना में कभी भी मजहबी विश्वास के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता. यहाँ सबका धर्म एक ही होता है – भारतीय. जनरल उस मन्दिर परेड का भी ज़िक्र करते हैं जिसमें सेना में रहते उन्होंने हिस्सा लिया. उन्होंने तब के हालात भी बयान किये जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ 1971 में मोर्चा सम्भाला. अलग अलग ओहदों पर रहते हुए उन्होंने राजस्थान से लेकर जम्मू कश्मीर और सीमाई पूर्वोत्तर राज्यों तक में सेना की अगुआई की.
अगली नस्ल का सेना से नाता :
![लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह](https://www.rakshaknews.in/wp-content/uploads/2018/10/Lt.-Gen.-Zameer-Uddin-Shah-PVSM-SM-VSM-and-his-wife-Mrs.-Sabiha-Simi-Shah-with-his-son-Major-Mohommed-Ali-Shah.jpg)
दिलचस्प है कि जिस वक्त लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह पूर्वोत्तर में जनरल आफिसर कमांडिंग (जीओसी) थे तब उनके एडीसी कोई और नहीं बल्कि उनके पुत्र कैप्टन मोहम्मद अली शाह थे. सेना से जुड़े रहने की परिवार की परम्परा को मोहम्मद अली शाह ने कायम रखते हुए सेना में शार्ट सर्विस कमीशन लिया था. इस दौरान वह भी जम्मू कश्मीर में एलओसी पर तैनात रहे. पांच साल सेना में रहने के बाद में मेजर पद पर आकर उन्होंने सेना छोडी. चाचा नसीरुद्दीन शाह के नक्शे कदम पर चले हुए उन्होंने अभिनय को अपना करियर चुना. ग़दर समेत तकरीबन 10 फिल्मों में अभिनय कर चुके मोहम्मद अली शाह आस्ट्रेलिया के बोर्ड आफ फिल्म फेस्टिवल एंड इंटरटेनमेंट के सदस्य हैं. अभी भी एक्टिंग से जुड़े हुए हैं. जनरल ज़मीर उद्दीन शाह के दामाद भी भारतीय नौसेना में पायलट हैं.
सशस्त्र ट्रिब्यूनल के सदस्य और वाइस चांसलर बने :
लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह ने 1968 में सेना में कमीशन हासिल किया और 2008 तक सेना की सेवा की. इतना ही नहीं, इसके बाद भी वो सशस्त्र ट्रिब्यूनल के सदस्य के तौर पर सेना से सम्बन्धित काम से जुड़े रहे. 2012 में यूपीए शासन में उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बनाया गया और अपने इन पांच साल के यूनिवर्सिटी के कार्यकाल को ज़मीर उद्दीन शाह सबसे चुनौती भरा काम मानते हैं. उनका कहना है कि अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की छवि अनजान कारणों से खराब हुई है. वैसे उनकी नज़र में ये भारत की अव्वल यूनिवर्सिटी है.