दुश्मन के लिए और खतरनाक बनी ब्रह्मोस, सेना ने किया मिसाइल का टेस्ट

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ब्रह्मोस
सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण

भारतीय सेना ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Island) से सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (supersonic cruise missile) ब्रह्मोस के ज़मीनी हमले के संस्करण का कामयाब टेस्ट किया है. सतह से सतह तक मार करने के इस परीक्षण के तहत ब्रह्मोस मिसाइल को मंगलवार को एक द्वीप से दागा गया और दूसरे द्वीप पर मौजूद अपने टारगेट पर इसने सटीक हमला किया. भारत के अग्रणी रक्षा अनुसन्धानकर्ता संस्थान डीआरडीओ ने इसे विकसित किया जिसके साथ ही ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की स्ट्राइक रेंज अब 400 किलोमीटर से ज्यादा हो गई है. ये मिसाइल प्रणाली थल सेना के साथ साथ नौसेना और वायु सेना के लिए भी हैं यानि थल, नभ और जल तीनों से ही दागी जा सकती है.

भारत और रूस ने मिलकर इस ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को बनाया है और ये अपनी श्रेणी में दुनिया की सबसे तेज परिचालन प्रणाली मानी जाती है. कुछ अरसा पहले ही रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) ने इस मिसाइल प्रणाली की सीमा को 298 किलोमीटर से बढ़ाकर तकरीबन 450 किलोमीटर कर डाला था. आवाज़ से भी तीन गुना ज्यादा रफ्तार से पहुँचने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को सुखोई लड़ाकू विमानों में भी लगाया गया है जिससे सुखोई की मारक क्षमता भी बढ़ गई है. पंजाब के हलवारा एयर स्टेशन से उड़े उस फाइटर सुखोई ने बंगाल की खाड़ी में अपने टारगेट को ध्वस्त कर दिया था.

ब्रह्मोस
सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण

भारत की नौसेना ने युद्धपोत आईएनएस चेन्नई (INS Chennai) से ब्रह्मोस मिसाइल का परीक्षण किया था, जिसने 400 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद लक्ष्य पर प्रहार करने की अपनी ताकत दिखा दी थी. इस मिसाइल को पनडुब्बी से भी दागा जा सकता है यानि गहरे पानी से भी इसे दुश्मन पर दागा जा सकता है. ऐसी पनडुब्बियां भी बनाई जा रही हैं जिसमें इस मिसाइल का छोटा वर्ज़न एक तारपीडो ट्यूब में लगाया जाएगा. खासियत ये भी है कि ब्रह्मोस मिसाइल 5 मीटर से लेकर 1400 मीटर तक की ऊंचाई पर उड़ सकती है.

डीआरडीओ बीते दो महीने में कई नई और मौजूदा मिसाइल प्रणालियों समेत शौर्य मिसाइल प्रणाली का परीक्षण करने में सफल रहा है, जो 800 किलोमीटर से अधिक दूरी तक सटीक निशाना साध सकती हैं.

ब्रह्मोस की शुरुआत :

भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम जोड़ जोड़कर ब्रह्मोस (BrahMos) का नाम रखा गया था. इसके लिए दोनों देशों ने मिलकर 1998 में एक कम्पनी बनाई जिसका 50.50 फ़ीसदी हिस्सा भारत का और 49.50 फ़ीसदी रूस का है. ब्रह्मोस के पहले संस्करण का परीक्षण 12 जून 2001 को ओड़िशा (उड़ीसा) के चांदीपुर एकीकृत रेंज से किया गया था.