भारतीय सेनाओं में भर्ती के लिए घोषित की गई ‘अग्निपथ ‘ योजना ( agnipath scheme) पर देशभर में बवाल मचने के बाद सेना के कई बड़े अधिकारी इस योजना को फायदेमंद बता रहे हैं लेकिन जिन सेना प्रमुख के कार्यकाल में ये योजना तैयार की गई उन्होंने इस पर खामोशी अख्तियार कर ली है. इसके अलग अलग मतलब निकाले जा सकते हैं .ये हैं सेना प्रमुख कोई और नहीं वही जनरल मनोज मनोज मुकुंद नरवणे हैं जो बीते अप्रैल महीने में रिटायर हुए . सेनाध्यक्ष के अलावा जनरल नरवणे भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ के ओहदे की कुछ जिम्मेदारियां भीं सम्भाल रहे थे जो ओहदा भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत के दिसम्बर 2021 में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हए निधन के बाद से अब तक खाली है.
दरअसल बीते सप्ताह अग्निपथ योजना के ऐलान के बाद देशभर में हुई हिंसा और आगजनी के माहौल के बीच सोमवार को पहला मौका था जनरल नरवणे किस सार्वजनिक कार्यक्रम में देखे गए . ये कार्यक्रम भारत – चीन सेना के बीच लदाख में हुए संघर्ष की दूसरी बरसी के एक किताब के विमोचन का था. जनरल नरवणे और पूर्व वायु सेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने इस कार्यक्रम में साथ शिरकत की थी. इस मौके पर जब पत्रकारों ने उनसे बातचीत के दौरान ‘ अग्निपथ ‘ विवाद को लेकर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने इस पर कुछ कहने से मना कर दिया गया.
जनरल मनोज नरवणे 31 दिसम्बर 2019 से 30 अप्रैल 2022 तक भारत के सेनाध्यक्ष रहे हैं. अग्निपथ योजना की तैयारी इसी दौरा की गई लेकिन उनके इस पर टिप्पणी तक न करने को को योजना के प्रति पूरी सहमती न होने के नजरिये से भी देखा जा रहा है. वैसे एक ख़ास बात ये भी ध्यान देने की है कि रिटायर्मेंट से पहले जनरल मनोज नरवणे को सीडीएस बनाए जाने के चर्चा थी. माना जा रहा था वरिष्ठता के साथ साथ चीन वाले संघर्ष के दौरान उनकी भूमिका से संतुष्ट सरकार उनको देश के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी का वो ओहदा भी सौंप देगी जो जनरल बिपिन रावत के गत वर्ष दिसम्बर में हेलीकाप्टर दुर्घटना में निधन के बाद से खाली है. हालांकि वरिष्ठता और आयु की शर्तों के मुताबिक अब भी जनरल नरवणे उस ओहदे के पात्र की शर्ते पूरी करते हैं और उन्हें मुख्य दावेदार भी माना जा रहा है. ये भी माना जा रहा है कि संभवत इस ओहदे पर तैनाती के किसी तरह के सरकार के अंतिम फैसले तक जनरल मनोज नरवणे इस मामले पर चुप्पी साधे रखना चाहते है.
वैसे अग्निपथ को लेकर भारतीय सेना में ऐसे कुछ और बड़े रिटायर अधिकारियों ने चुप्पी साधी हुई है जो इस योजना के तैयार किये जाने वाले दौर में सेना में अहम पदों पर रहे या इस दौर में रिटायर हुए. क्योंकि सीडीएस बनने की कतार में वे भी हो सकते हैं, इसलिए संभवत वे भी विवाद से दूरी बनाए रखने में ही भलाई समझ रहे र्हैं.