सुप्रीम कोर्ट का सीएपीएफ अफसरों के हक़ में फैसला : सरकार इनकी सुध ले और 2 साल में सब ठीक करे

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सर्वोच्च न्यायालय, जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस उज्जल भुयन
भारत की सुप्रीम कोर्ट ने  1986 से अब तक के बैचों के केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (central armed police forces) के ग्रुप ए अधिकारियों को “सभी उद्देश्यों” के लिए “संगठित सेवाओं” के रूप में मान्यता दिए जाने के पक्ष में फैसला सुनाया है. शुक्रवार ( 23 मई 2025 ) को दिए इस फैसले से  उन हज़ारों अधिकारियों को तरक्की मिलने का रास्ता खुल सकता है जो तरक्की के हकदार होते हैं लेकिन उनको तरक्की मिल नहीं पाती. क्योंकि उन पदों पर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को तैनात कर दिया जाता है . लिहाज़ा इस हताशा के कारण कई अधिकारी वक्त से पहले ही रिटायर्मेंट ले लेते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस  अभय श्रीनिवास  ओका  ( justice abhay shreeniwas  oka  ) और जस्टिस  उज्जल भुयन ( justice ujjal bhuyan ) की पीठ ने सीएपीएफ़  अफसरों के पक्ष में  यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (senior administrative grade ) या सीएपीएफ में महानिरीक्षक ( inspector general ) के पद तक के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों के प्रतिनियुक्ति पदों को “समय के साथ उत्तरोत्तर कम किया जाना चाहिए, इसके लिए ज्यादा से ज्यादा दो साल का वक्त काफी है. ”

शुक्रवार (23 मई, 2025) के फैसले ने सेवा नियमों या भर्ती नियमों में संशोधन का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे सीएपीएफ को संगठित ग्रुप ए सेवाओं (ओजीएएस) के सभी संबंधित लाभ और छह महीने के भीतर कैडर समीक्षा की अनुमति मिल सके. जस्टिस अभय एस ओका का बतौर सुप्रीम कोर्ट जज यह आखिरी फैसला था. जस्टिस अभय एस ओका अब रिटायर हो गए हैं . अपीलकर्ताओं की तरफ  से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, श्याम दीवान, एस. गुरुकृष्ण कुमार और के. परमेश्वर उपस्थित हुए, जबकि प्रतिवादियों की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी और वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा उपस्थित हुए.

वर्तमान में,  केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों  में उप महानिरीक्षक (deputy inspector general ) रैंक के 20% पद और महानिरीक्षक (inspector general ) रैंक के 50%  पदों को भारतीय पुलिस सेवा ( indian police service ) के  अधिकारियों के लिए आरक्षित रखा गया है .

इस निर्णय से तकरीबन सीएपीएफ़ के तकरीबन दस हजार से ज्यादा अधिकारियों को फायदा  मिलने की संभावना है.  एक अधिकारी के मुताबिक़  वर्तमान में, सहायक कमांडेंट (assistant commandant) के रूप में इन बलों में भर्ती होने वाले अधिकारी को कमांडेंट के रूप में पदोन्नत होने में  20 से 25 साल लगते हैं, जबकि उसे 13 साल में वरिष्ठता मिल जानी  चाहिए.  डीआईजी बनने के लिए  21 साल की आवश्यक सेवा अवधि के होती है लेकिन कई अधिकारी 31 साल की सेवा के बाद इस पद पर पहुंचते  हैं. आईजी बन पाना तो ज्यादातर के लिए असम्भव ही है .

भारत का केन्द्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of home affairs) सीएपीएफ़ ( CAPF) का कैडर नियंत्रण प्राधिकरण है. इन बलों में  सीमा सुरक्षा बल ( border security force ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (central industrial security force), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (central reserve police force), सशस्त्र सीमा बल (sashastr seema bal) और भारत तिब्बत सीमा पुलिस (indo tibbet border police) शामिल हैं.

इस विषय  की पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2015 में और सर्वोच्च न्याय ने  2019 में जांच की थी, जब यह फैसला  लिया गया था कि सीएपीएफ भारतीय विदेश सेवा ( indian foreign service ) और भारत राजस्व सेवा ( indian revenue service) जैसी संगठित सेवाओं की श्रेणी में आते हैं.

2021 में, सीएपीएफ के ग्रुप ए अधिकारियों ने गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (non functional financial upgradation ) यानि एनएफएफयू , कैडर समीक्षा और पुनर्गठन और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने और एसएजी तक आंतरिक पदोन्नति की अनुमति देने के लिए भर्ती नियमों में संशोधन की मांग करते हुए फिर से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.

न्यायालय ने कहा कि “अपीलकर्ताओं की शिकायतों का मूल, जैसा कि दिखाई देता है, ओजीएएस के रूप में मान्यता न मिलना, एनएफएफयू न देना और सेवा में ठहराव है”.

छठे केंद्रीय वेतन आयोग की 2006 की सिफारिशों के एक भाग के रूप में, ग्रुप ए सेवा अधिकारियों की तरक्की रुकने से पैदा हुए  ठहराव के हालात  को दुरुस्त  करने के लिए एनएफएफयू की अवधारणा पेश की गई थी. इसलिए, रिक्तियों की कमी के मामले में, यदि किसी संगठित सेवा के अधिकारी को पदोन्नत किया जाता है, तो उस बैच के अन्य लोगों को भी वित्तीय उन्नयन मिलेगा, भले ही उसे वह पद न  मिला हो.उन्हें पदोन्नत न किया गया हो.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत मौजूदा भर्ती नियमों पर केंद्रित है, जो आईपीएस से संबंधित अधिकारियों को विभिन्न पदों पर प्रतिनियुक्ति के माध्यम से अपनी संबंधित सेवाओं में पार्श्व प्रवेश प्रदान करता है, जिसके परिणामस्वरूप सीएपीएफ़  सेवा करियर में पूर्ण ठहराव आ जाता है.” अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि एक बार जब सीएपीएफ को “सभी उद्देश्यों” के लिए ओजीएएस घोषित कर दिया जाता है, तो कैडर समीक्षा और सेवा नियमों/भर्ती नियमों के पुनर्गठन जैसे परिणामी कदम प्रतिनियुक्ति के माध्यम से पार्श्व प्रवेश को समाप्त कर देंगे.

केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि “संघ का एक सशस्त्र बल होने के नाते, इसका उद्देश्य प्रत्येक सीएपीएफ को लड़ने के लिए फिट रखना है और साथ ही हमारे देश के संघीय ढांचे के भीतर राज्यों और केंद्र के बीच समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित करना है” और इसलिए, “आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति आवश्यक है”.

कोर्ट ने कहा कि वह सीएपीएफ द्वारा व्यक्त की गई “शिकायत से अनजान” नहीं हो सकता.

अदालत ने कहा , ‘देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए हमारी सीमाओं की रक्षा करते हुए और देश के भीतर आंतरिक सुरक्षा बनाए रखते हुए उनकी समर्पित सेवा को नज़रन्दाज़  या अनदेखा नहीं किया जा सकता है. वे बहुत ही मुश्किल हालात कठिन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं. उनकी शिकायत है कि संबंधित सीएपीएफ के उच्च ग्रेड में पार्श्व प्रवेश के कारण, वे समय पर पदोन्नति पाने में असमर्थ हैं. … इस तरह की स्थिरता बलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है’.