कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ( cm siddaramaiah) को संबोधित करते हुए लिखे दो अलग-अलग लेकिन समन्वित खुले पत्र, सोमवार को सार्वजनिक हुए . देश के कई महत्वपूर्ण पुलिस संगठनों , खुफिया एजेंसियों और राज्यों के पुलिस प्रमुख जैसे पदों पर रहे सेवानिवृत्त अधिकारियों के हस्ताक्षर युक्त इन पत्रों में , न्यायिक जांच पूरी होने से पहले, शीर्ष पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया है. पत्रों में तर्क दिया गया है कि 4 जून की घटना के लिए रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (royal challengers bengluru) का प्रबंधन और कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (karnatak state cricket association) अधिक जिम्मेदार है, जिन्होंने कथित तौर पर पुलिस की चेतावनी के बावजूद जीत के तुरंत बाद जश्न मनाने पर जोर दिया.
मालूम हो कि क्रिकेट मुकाबले आईपीएल 2025 (ipl 2025) में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की टीम विजेता रही. आरसीबी प्रबन्धन ने 18 साल बाद मिली इस जीत का जश्न टीम के अहमदाबाद से लौटने के साथ ही मनाने का फैसला किया. इसके लिए बेंगलुरु का चिन्नास्वामी स्टेडियम चुना गया जोकि जश्न मनाने के लिए आने वाली क्रिकेट फैन्स की अपेक्षित भीड़ के हिसाब से काफी छोटा था.
भारतीय पुलिस फाउंडेशन ( indian police foundation) की तरफ से 8 जून को जारी किए गए पहले पत्र में लिखा है, “सार्वजनिक बयानों और उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु… आईपीएल में 18 साल बाद आरसीबी की जीत का भव्य जश्न मनाना चाहता था.”
इसमें अहमदाबाद से टीम के लौटने के कुछ ही घंटों बाद कार्यक्रम की मेजबानी करने पर पुलिस की पिछली आपत्तियों का हवाला देते हुए कहा गया है, “पुलिस अधिकारियों ने लिखित रूप से और अन्यथा अनुरोध को स्वीकार करने के खतरे के बारे में बताया था.” फाउंडेशन ने भीड़ नियंत्रण उपायों के बिना परेड के आयोजन में “जल्दबाजी” की निंदा की. पत्र में कहा गया कि पुलिस स्टेशन स्तर के अधिकारियों से लेकर खुद कमिश्नर तक ने अपेक्षित बड़ी भीड़ की तैयारी के बारे में गंभीर चिंताएं जताई थीं. उसी फाउंडेशन जारी एक अलग पत्र में जोर दिया गया कि न्यायिक निष्कर्षों की प्रतीक्षा किए बिना अधिकारियों को निलंबित करना उनको बलि का बकरा बनाने के रूप में देखा जाएगा.
पत्र में कहा गया है, “दंडात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस को अलग-थलग करना और अन्य हितधारक कों छांटकर जांच से बचा लिया जाना साझा जिम्मेदारी की असलियत को विकृत करता है,” पत्र में कहा गया कि यह “संस्थागत अखंडता को कमजोर करता है” और पुलिस बल का मनोबल गिरा सकता है.
सेवानिवृत्त अधिकारियों ने इस आयोजन को सरकार के मौन समर्थन की भी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि “पुलिस को उनकी आपत्तियों को खारिज करने के लिए कोई लिखित निर्देश नहीं दिए गए थे.” उन्होंने आयोजकों पर परेड आयोजित करने, मुफ्त पास देने और क्षमता सीमाओं के बावजूद प्रशंसकों को कार्यक्रम स्थल पर आने के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया.
पत्र में तीखे शब्दों में कहा गया है कि , “आम धारणा यह है कि पुलिस अधिकारियों को पीड़ित किया गया है, जबकि जल्दबाजी करने , अति-उत्साह दिखाने और स्टैंड लेने की अनिच्छा वाले लोग बच निकले . ” फाउंडेशन ने न्यायिक जांच के नतीजे आने तक आईपीएस बी दयानंद समेत सभी पांच निलंबित अधिकारियों को बहाल करने की मांग की है. न्यायिक जांच के एक महीने के भीतर पूरी होने की उम्मीद है.
पत्रों में कहा गया है कि यदि अनुशासनात्मक कार्रवाई आवश्यक हो, तो निष्कर्षों के बाद होनी चाहिए, न कि उनसे पहले.” घटना से सबक लेने में राज्य सरकार की सहायता करने के लिए, फाउंडेशन ने घटना के बाद एक स्वतंत्र समीक्षा करने की पेशकश की है, जिसका उद्देश्य दोष ढूंढना नहीं बल्कि प्रणालीगत कमियों की पहचान करना और सार्वजनिक सुरक्षा प्रोटोकॉल में सुधार करना है.
इन पत्रों पर 30 से अधिक सम्मानित पूर्व आईपीएस अधिकारियों और विशेषज्ञों ने हस्ताक्षर किए हैं. हस्ताक्षर करने वाले लोकप्रिय नामों में प्रकाश सिंह प्रमुख हैं जो उत्तर प्रदेश व असम राज्यों के पुलिस प्रमुख के अलावा सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक भी रहे . सीबीआई के निदेशक रहे डी.आर. कार्तिकेयन, कैबिनेट सचिवालय के पूर्व विशेष सचिव ( रॉ ) जी.बी.एस. सिद्धू, अन्य पूर्व सचिव सी.डी. सहाय, इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व विशेष निदेशक बी.सी. नायक, मेघालय के पूर्व राज्यपाल आर एस मूशाहरी भी हैं .
वैसे इस मामले में कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक एम ए सलीम ( ips m a salim) का पुलिस कमिश्नर बी दयानन्द ( police commisioner b dayanand) के पक्ष में खड़ा न होना भी आलोचना का हिस्सा बन रहा है. जबकि अपने वरिष्ठों के साथ नाइंसाफी को महसूस करते एक हवलदार ने सरे आम विरोध किया था और उसे हिरासत में ले लिया था .