सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक पुलिस प्रमुख तैनात करने पर रोक लगाई

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पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति
पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय (फाइल फोटो)

भारत की शीर्ष अदालत ने राज्यों में कार्यवाहक पुलिस प्रमुख की तैनाती के प्रथा पर रोक लगा दी है. साथ ही अदालत ने नये महानिदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया भी स्पष्ट करते हुए कहा है इस ओहदे पर उन तीन अधिकारियों में से किसी एक की तैनाती होगी जिनके नाम संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) तय करेगा.

सुप्रीम कोर्ट के ये निर्देश चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के नेतृत्व वाली पीठ ने, पुलिस सुधार कार्यक्रम से जुड़ी उस याचिका की सुनवाई के दौरान दिए जिसमें केंद्र सरकार ने शिकायत की थी कि राज्य सरकारें, सुप्रीम कोर्ट के 2006 के प्रकाश सिंह बनाम यूनियन आफ इंडिया केस में दिए उस फैसले का बेजा इस्तेमाल कर रही हैं जिसमें कहा गया था कि पुलिस महानिदेशक के ओहदे पर नियुक्त किये जाने वाले अधिकारी का कार्यकाल कम से कम दो साल का रखा जाना चाहिए.

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि राज्य सरकारों ने ऐसा रवैया अपना लिया है. वो किसी अधिकारी को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक बना देती हैं और जब अधिकारी की सेवानिवृत्ति की तारीख नज़दीक आने वाली होती है तो उसको नियमित कर दिया जाता है ताकि उस अधिकारी को 2 साल का वक्त और मिल जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी राज्य के पुलिस महानिदेशक की रिटायरमेंट की तारीख से कम से कम तीन महीने पहले सम्बन्धित राज्य को, डीजीपी के पद के लिए प्रस्तावित अधिकारियों के नाम यूपीएससी के पास भेजने होंगे और यूपीएससी उनमें से तीन के नाम छांट कर राज्य सरकार को भेजेगा. उसमें से किसी एक अधिकारी को पुलिस प्रमुख बनाया जायेगा. लेकिन साथ ही कहा कि उस अधिकारी को 60 साल की उम्र में रिटायर होना है. इन नामों का निर्णय लेते वक्त उसके सेवाकाल, विशेषज्ञता, अनुभव, सर्विस रिकार्ड को ध्यान में रखा जायेगा.

जाने माने वकील प्रशांतभूषण ने अदालत का ध्यान 2006 के निर्देशों के प्रति आकर्षित करते हुए कहा कि राज्य सरकारें उनका उल्लंघन कर रहीं हैं. ये इसलिए किया जा रहा ताकि ये देखा जा सके अधिकारी से राज्य सरकार के आदेश का पालन करता है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि महानिदेशक के ओहदे के लिए चुने जाने वाले उम्मीदवार की सेवानिवृत का समय उसके चयन में बाधा नहीं बनना चाहिये वैसे चाहे तो यूपीएससी उम्मीदवार को पैनल में रखते समय इस पर बिन्दू पर विचार कर सकता है. अदालत ने राज्य सरकारों के बनाये उन नियमों को निलम्बित कर दिया है जो 2006 के पुलिस सुधार के लिए बाधा हैं हालांकि इस संदर्भ में दिए गये निर्देशों में से किसी मुद्दे पर राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आने की स्वतंत्रता दी गई है.

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