किरण बेदी के वीडियो ने यूँ पुलिस की मजबूरी और दर्द याद दिलाया

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किरण बेदी
किरण बेदी को पुदुचेर्री की लुभावनी बरसात को देख कर पुराने दिनों की याद ताजा हो गई.

भारतीय पुलिस सेवा की पहली महिला अधिकारी किरण बेदी पुदुचेर्री की लुभावनी बरसात को देखकर अनायास ही पुलिस की एक ऐसी मजबूरी, दर्द बयान कर गईं जिसे 44 साल पहले उन्होंने बेहद करीब से महसूस किया था. और असलियत ये है तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राज से लेकर भारत में सत्ता कितने ही काबिल हाथों में रही लेकिन वो हालात चार दशक से ज़्यादा का लम्बा अरसा बीतने के बाद भी कुछ ख़ास नहीं बदले.

उस जमाने की दबंग आईपीएस अधिकारी किरण बेदी आज उपराज्यपाल हो चुकी हैं लेकिन पूरा करियर पुलिस की वर्दी में बिताने की वजह से, इस मेगसेसे पुरस्कार विजेता की जुबां से खाकी से जुड़ी यादें अक्सर ताज़ा होकर निकलती हैं. हफ्ते के पहले दिन यानि सोमवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ.

उपराज्यपाल किरण बेदी केन्द्रशासित प्रदेश पुदुचेर्री के राजनिवास में रूटीन का काम निपटा रही थीं और उनके साथ ही पुलिस के एक अधिकारी भी शायद मदद के लिए या किसी आदेश के इंतजार में खड़े थे. राजभवन में बाहर झमाझम बरसात होती दिख रही थी. खिड़की से ये ख़ूबसूरत नज़ारा देखते ही अभिभूत हुईं किरण बेदी फ्लैश बैक में चली गईं और उन्होंने एक वीडियो बना डाला.

उपराज्यपाल किरण बेदी को याद आये बरसात के वो दिन जब वो प्रोबेशनर अधिकारी थीं और ट्रेनिंग के उस दौर में उन्हें दिल्ली के एक थाने के एसएचओ की ड्यूटी करनी होती थी ताकि ऊँचे ओहदे पर तैनाती से पहले थाना स्तर पर पुलिस के काम सीखे जा सकें. थाने में बहुत काम हुआ करता था. कुर्सी से हटने की फुर्सत नहीं मिलती थी क्यूंकि शिकायतें और फरियादें लेकर आने वालों का तांता लगा रहता था.

किरण बेदी इस वीडियो में बताती हैं कि आज की बरसात को देखते ही वो दिन याद आ गये जब बरसात आने पर उनकी सांस में सांस आती थी और खुशी इस बात की मिलती थी कि कुछ पल उन्हें आराम के मिल सकेंगे क्यूंकि ऐसी बरसात में कोई फरयादी थाने में नहीं आता था. दिल्ली के कई थानों में ऐसा महसूस किया जाता था.

किरण बेदी के खुशगवार मौसम में बनाए वीडियो ने भारतीय पुलिस के उस दर्द को एक बार फिर उभार दिया जो अभी भी सुधार कार्यक्रमों की बाट जोह रही है. जहां आबादी, अपराध और क्षेत्र के अनुपात के हिसाब पुलिस बलों की तादाद बेहद कम है. ज्यादा काम की वजह से इन्हें मज़बूरी में इन्हें शारीरिक और मानसिक दबाव झेलने पड़ते हैं लिहाज़ा तरह तरह के शारीरिक और मानसिक विकारों से घिरते रहते हैं.

आज भी बहुत से पुलिसकर्मी काम के दबाव के बीच परिस्थितियों की वजह से मिलने वाले आराम के पलों को चुराने का इंतज़ार करते हैं. ये हालात तो तब हैं जब सुप्रीम कोर्ट को पुलिस सुधार कार्यक्रमों से जुड़े निर्देश दिये बरसों गुज़र चुके हैं और देश की सबसे बड़ी अदालत बार बार राज्यों को चेता चुकी है.