उत्तर प्रदेश में IPS और IAS टकराव अभी सिर्फ टला है, सुलटेगा कैसे ?

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यूपी में आईएएस-आईपीएस विवाद
यूपी के पुलिस महानिदेशक का आफिस (फाइल फोटो)

फिलहाल तो मामला सुलट गया है लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि उत्तर प्रदेश के पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं के अफसरों में ये तकरार का कारण नहीं बनेगा. गौतमबुद्ध नगर के ज़िलाधीश (DM ) ब्रजेश नारायण सिंह ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) डा. अजय पाल शर्मा के पुनर्विचार सम्बन्धी पत्र पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए उन 10 इंस्पेक्टरों के तबादले स्वीकार कर लिए हैं जो एसएसपी ने पहले उनकी बिना मंज़ूरी के कर डाले थे.

डीएम ने शुक्रवार की शाम को तबादले वाले आदेश को ये कहकर रुकवा दिया था कि SSP ने इन्हें जारी करने से पहले उनकी मंजूरी नहीं ली थी. इसे उन्होंने हाल ही में जारी किये गये सरकारी आदेश का उल्लंघन बताया जो राज्य के गृह विभाग की तरफ से आये थे.

असल में हुआ ये था कि डीएम की मंज़ूरी के औपचारिक आदेश आने से पहले ही नोएडा में उन थाना प्रभारियों और इंस्पेक्टरों ने ही नई पोस्टिंग्स की जगह पर पहुंचना शुरू कर दिया था जिसके एसएसपी ने आदेश दे तो दिए थे लेकिन उससे सम्बन्धित पत्र डीएम के दफ्तर तक पहुंचा ही नहीं था. हालत ये थी कि डीएम से पहले ही मीडिया तक को तबादलों की खबर मिल गई थी.

खैर इसके तुरंत बाद केन्द्रीय आईपीएस एसोसिएशन ने भी नाराजगी ज़ाहिर की और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ट्वीट करके अपील भी की कि गृह विभाग के आदेश वापस लिए जाएँ हालांकि उस पर (अभी भी) सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रया तो नहीं हुयी, अलबत्ता अगले ही दिन गौतमबुद्ध नगर के डीएम की मंजूरी से ये मामला शांत हो गया. इससे पहले 9 मई को DM ने राज्य के प्रधान सचिव (गृह) के सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा था कि उनकी स्वीकृति लिए बगैर तबादलों के आदेश करके जिला पुलिस प्रमुख ने पुलिस रेगुलेशन एक्ट के अनुच्छेद 6 और 524 के प्रावधानों क उल्लंघन किया है.

दूसरी तरफ IPS एसोसिएशन ने उत्तरप्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय को @CMOffice पर ट्वीट करके कहा कि ये आदेश ज़िला पुलिस प्रमुख (SSP /SP ) के ओहदे का अनादर है. साथ ही ये भी कहा कि ये आदेश सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के तय किये नियमों से टकराव वाला है. एसोसिएशन ने रिट पिटीशन संख्या 51116/2017 (अमित कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व 6 अन्य) पर दिए गये फैसले के पैराग्राफ 14 का हवाला देते हुए दोहराया है कि एसोसिएशन अपने रुख पर कायम है. एसोसिएशन ने ये ट्वीट प्रधानमन्त्री और केन्द्रीय गृह मंत्री कार्यालय को भी किया है.

अब ऐसे में हालात ये हो गये हैं कि अगर एसोसिएशन की दलील सही है तो उत्तर प्रदेश सरकार को सर्कुलर वापस लेना पड़ेगा या उसे सर्कुलर को कायम रखना है तो उसके पक्ष को कानूनन सही साबित करना पड़ेगा. वरना उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर के कई (दक्षिण के भी) ऐसे राज्यों में पुलिस और प्रशासनिक सेवा के अफसरों में इस मुद्दे पर टकराव टाले नहीं जा सकेंगे जहां की अफसरशाही राजनीतिक खेमों में पहले से ही बंटी हुई है. इन राज्यों में ऐसी कई मिसालें मिल जायेंगी जब एक सियासी दल ने सत्ता में रहते किसी अधिकारी से जुड़े मसले पर जो रुख अपनाया या फैसला लिया, उसे दूसरे दल ने सत्ता में आते ही उलट डाला.