भारतीय सेना ने अपने सबसे अलंकृत एक शूरवीर को फिर से याद किया

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भारतीय सेना के इतिहास  में नायब सूबेदार चुनी  लाल  का नाम हमेशा विरले जांबाजों की फेहरिस्त में रहेगा. चुन्नी लाल भारतीय सेना के सबसे अलंकृत सैनिक रहे हैं . जम्मू कश्मीर के डोडा के रहने वाले चुनी  लाल ऐसे थे कि उनकी बहादुरी के लिए उन्हें  वरिष्ठ अफसर भी सलाम करते हैं. 24 जून को भी नायब सूबेदार चुनी  लाल को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. सोलह साल पहले इसी तारीख को सेना ने अपने इस जांबाज़ नायब सूबेदार चुन्नी लाल को खोया था.

24 जून 2007 को जम्मू – कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकवादियों को खदेड़ने के ऑपरेशन में  नायब सूबेदार चुनी  लाल की जान गई थी.  लेकिन चुन्नीलाल आख़री सांस तक लड़े थे .  अशोक चक्र , वीर चक्र और सेना मेडल के अलावा कई अलंकरण नायब सूबेदार की बहादुरी के खाते में है जिनकी लम्बी लिस्ट है . बहादुरी , युद्ध आदि को लेकर इतने मेडल आज तक शायद ही , भारतीय सेनामें तैनात , किसी सैनिक को मिलें हों.  कितना ही पुराना क्यों न हो जाए , कुछ बहादुरी के इतिहास की कहानियाँ और उनके किरदार कभी भुलाये नहीं जा सकते .असा में  चुन्नी लाल भी ऐसे ही शूरवीर थे.

जम्मू कश्मीर के भद्रवाह में 6 मार्च 1968 को  पैदा हुए लेकिन पले बड़े डोडा में और भारतीय  सेना में 1984 में भर्ती हुए. चुनी लाल सैनिकों की उस टुकड़ी में शामिल थे जिसने दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध के मैदान सियाचिन ग्लेशियर पर नायब सूबेदार बाना सिंह की अगुआई में शूरवीरता का अनोखा इतिहास रचा था. भारतीय सेना के सबसे मुश्किल ऑपरेशन में से एक गिने जाने वाले इस ‘ ऑपरेशन  राजीव ‘ में सियाचिन की सबसे ऊंची चोटी को दुश्मन पाकिस्तानी सेना के कब्ज़े से छुड़ाया गया था. आज इस चोटी का नाम ‘ बाना पोस्ट ‘ है जिसका कभी  पाकिस्तान ने कब्ज़ा करने के बाद ‘ कायद पोस्ट ‘ के तौर पर नामकरण कर डाला था.   नायब सूबेदार बाना सिंह  को इस शूरवीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था . बाद में वे सूबेदार मेजर हुए और ऑनरेरी कैप्टन के तौर पर रिटायर हुए . कैप्टन बाना  सिंह वर्तमान में जम्मू के आर एस पुरा सेक्टर के अपने  गांव में परिवार के साथ रह रहे हैं .

कैप्टन बाना सिंह , चुनी  लाल और उनके साथियों ने दुश्मन सैनिकों  तक उसकी नज़र बचाकर पहुँचने के लिए  इस ऑपरेशन में 450 मीटर से भी  ऊँची बर्फ की लगभग सीधी सपाट दीवार पर चढ़ाई की थी . इस टुकड़ी का ताल्लुक सेना की जम्मू कश्मीर लाइट इनफेंटरी की 8 वीं बटालियन यानि 8 JAK LI से था. चुनी  लाल को इस ऑपरेशन में हिस्सा लेने के लिए बहादुरी के सेना मेडल से नवाज़ा गया था.  1999 में पूंछ सेक्टर में ‘ ऑपरेशन रक्षक ‘ के दौरा के दौरान उन 12 घुसपैठियों को मार गिराया था जो पाकिस्तानी फ़ौज की शह पर भारत की सीमा में घुसे  थे. इस तरह चुन्नीलाल ने एक सैनिक चौकी को दुश्मन के कब्ज़े से बचाया था. इस बहादुरी के लिए चुनी  लाल को शूरवीरता के वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.  देश ही नहीं , चुनी लाल ने विदेश में  रह कर भी भारत और भारतीय सेना का नाम रोशन किया . उनकी यूनिट को संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना के मिशन पर सोमालिया और सूडान में तैनात थी जिसे उसके काम के लिया संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा .

21 जून 2007 को चुनी  लाल को रैंक में तरक्की मिली और वे नायब सूबेदार बने लेकिन इसके तीन दिन बाद ही नियति ने उनके लिए शूरवीरता का आखरी तय किया हुआ था. तब चुन्नी लाल कुपवाड़ा में एक चौकी के इंचार्ज थे जो 14 हज़ार फुट की उंचाई पर थी. रात का वक्त था , बादल छाए हुए थे . 5 मीटर से आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और तापमान भी माइनस 5 डिग्री था . तडके 3. 30 बजे  नियत्रण रेखा पर बाड़ के पार से कोई हलचल महसूस होने पर  उन्होंने वहां जाकर जांच करने का फैसला लिया . इलाके की घेराबंदी करने के बाद आगे बढ़े . वे साथियों के साथ उन  झाड़ियों की तरफ  बढ़ रहे थे जहां कुछ गतिविधि दिखाई दी थी . इसी बीच दोनों पक्षों में गोलीबारी हुई . दो हमलावर मारे गए लेकिन इसमें  चुनी लाल के दो साथी सैनिक घायल हो गए . घुटनों और कोहनियों के बल रेंगते हुए वहां पहुंचे चुनी लाल ने दोनों घायल सैनिकों को खींचकर कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया . इसके लिए उन्होंने खतरे और अपनी जान की परवाह भी नहीं की . इसके बाद और हमलावरों की तलाश में उस तरफ गए जहां तीसरा दुश्मन छिपा था लेकिन भागने की कोशिश कर रहा था . चुन्नी लाल न उसको ललकारा और गोलियां बरसा दीं . लेकिन इस बीच में हमलावर की एक गोली नायब सूबेदार चुनी लाल के पेट में लगी जिससे उनके जिस्म से अत्यधिक रक्तस्राव  हुआ. इसके बावजूद चुनी  लाल ने आड़ लेकर मुकाबला जारी रखा और दुश्मन को धराशायी कर डाला.

बुरी तरह घायल नायब सूबेदार चुनी लाल को सेना के नजदीकी अस्पताल ले जाने के लिए हेलीकॉप्टर से एयर लिफ्ट किया गया लेकिन तब तक देर हो गई थी. चुन्नीलाल के जिस्म से इतना खून बहा कि उनके प्राण निकल गए . चुनी लाल को इस शूरवीरता के लिए अशोक चक्र ( मरणोपरांत ) से सम्मानित किया गया जो उनकी पत्नी चिंता देवी ने 26 जनवरी 2008 को गणतंत्र दिवस परेड के अवसर पर राष्ट्रपति से लिया