बेमिसाल सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम मानेकशा को वेलिंग्टन में सलामी

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सैम बहादुर यानि सैम मानेकशा की 12वीं पुण्य तिथि पर वेलिंग्टन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज मेंपारसी जोरोस्ट्रियन सीमेट्री, उधगमंडलम की तरफ से पुष्पांजलि अर्पित की गई.

महावीर चक्र के साथ साथ पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशा यानि सैम बहादुर यानि सैम मानेकशा की 12वीं पुण्य तिथि मनाने के लिए वेलिंग्टन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज में पारसी जोरोस्ट्रियन सीमेट्री, उधगमंडलम की तरफ से पुष्पांजलि अर्पण समारोह आयोजित किया गया. तीनों सेनाओं की तरफ से डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल वाईवीके मोहन ने स्थानीय पारसी समुदाय की मौजूदगी में के बीच फील्ड मार्शल सैम मानेकशा को उनकी अंतिम विदाई के स्थल पर माल्यार्पण किया. उन्होंने 27 जून 2008 को अंतिम सांस लीं.

सैम मानेकशा

फील्ड मार्शल मानेकशा सेना से रिटायर होने के बाद बाद वेलिंगटन में बस गए थे. इस जगह से उनका जुड़ाव उस वक्त से था जब वह डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज के कमांडेंट थे. उनका नीलगिरि से विशेष लगाव था और स्थानीय लोग भी उनसे बहुत प्रेम करते थे. स्थानीय लोगों के साथ फील्ड मार्शल मानेकशा के घनिष्ठ लगाव की याद में, डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज की तरफ से स्थानीय एनजीओ के जरिये जरुरतमंदों को अनिवार्य वस्तुएं उपलब्ध कराई गई. अदम्य नैतिक साहस और नेतृत्व के अनुकरणीय गुणों वाले व्यक्ति के रूप में उनके जीवन को सशस्त्र बलों एवं राष्ट्र के लिए सदा एक प्रेरणा स्रोत के रूप में याद किया जाता है.

सैम मानेकशा

फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशा ने 8 जनवरी 1969 को सेनाध्यक्ष का ओहदा संभाला. उन्होंने 1971 की लड़ाई में सफलतापूर्वक संचालन किया और भारत को उसकी सबसे बड़ी विजय दिलाई जिसका नतीजा सिर्फ 13 दिन में ही बांग्लादेश की आजादी के रूप में सामने आया. इसके फ़ौरन बाद उन्हें 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. इससे पहले उन्हें 1968 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. जनरल ऑफिसर द्वारा सशस्त्र बलों एवं राष्ट्र को उनके असाधारण योगदान के सम्मान में उन्हें 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के रैंक पर पदोन्नत किया गया.

सैम मानेकशा और तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम.

फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशा का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के शहर अमृतसर में हुआ था. उनका चार दशकों का शानदार सैन्य कैरियर रहा. द्वितीय विश्व युद्ध में, एक युवा कैप्टन के रूप में उन्होंने बर्मा में युद्ध में हिस्सा लिया जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे. शत्रु से मुकाबले में दिखाई गई अतुलनीय बहादुरी के लिए उन्हें 1942 में मिलट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया. 1946-47 के दौरान फील्ड मार्शल मानेकशा की नियुक्ति सैन्य प्रचालन निदेशालय (Directorate of Military Operation) में हुई और वहां उन्होंने विभाजन से संबंधित विभिन्न मुद्दों के योजना निर्माण तथा प्रशासन और बाद में जम्मू एवं कश्मीर में सैन्य प्रचालनों की देखरेख की. 1962 के ऑपरेशन के दौरान एक कोर कमांडर के तौर पर, उन्होंने विशिष्ट नेतृत्व का परिचय दिया और सकारात्मक रूप से ऑपरेशन का संचालन किया. सैम मानेकशा मध्य प्रदेश के महू स्थित इनफैन्टरी स्कूल के भी कमांडेंट रहे.