भारत के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का मानना है कि अभी भारतीय सेना में ऐसे हालात नहीं बन सके कि महिलाओं को सैनिक या अधिकारी के तौर पर लड़ाकू भूमिका में तैनात किया जा सके. जनरल बिपिन रावत के तर्क, सामाजिक सोच और महिलाओं की भारतीय परिस्थितियों में निभाई जाने वाली भूमिका से जुड़े हुए हैं. वह कहते हैं कि अभी तक भारत, युद्ध भूमि से आने वाली महिला सैनिकों के ‘बॉडी बैग’ का सामना करने की स्थिति में नहीं है.
लगभग दो साल से दुनिया की दूसरे नम्बर के सबसे बड़ी सेना का नेतृत्व कर रहे 60 वर्षीय लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन सिंह रावत ने महिलाओं की भारतीय सेना में भूमिका पर टीवी पत्रकार श्रेया डोंडियाल के सवालों के जो जवाब दिए, उनका मतलब यही निकलता है.
जनरल रावत का कहना है कि मैं तैयार हूँ, सेना भी तैयार है लेकिन साथ ही वह मानते हैं कि ज्यादातर देहाती क्षेत्रों से आने वाले सैनिक जवान इसके लिए तैयार नहीं है. जनरल रावत का कहना है कि कमांडर के तौर पर महिला अधिकारी को सब कुछ करना होगा. वे अकेले जवानों का नेतृत्व करेगी. उसे सैन्य ऑपरेशंस पर भी जाना होगा. लेकिन आज भी हम इस परिस्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते. आज भी हमारे जवान ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं, इसलिए उन्हें स्वीकार करने में वक्त लगेगा.
जनरल रावत ने मिसाल देते हुए बताया कि कुछ साल के अनुभव वाली एक महिला की एक कार्रवाई के दौरान जान चली गई थी. उसका दो साल का बच्चा था. वह दिल्ली या चंडीगढ़ में है जिसे उसके नाना नानी पाल रहे हैं. वह कहते हैं कि सड़क दुर्घटना में भी ऐसी महिलाओं की मौत हो जाती है लेकिन सेना में आपरेशंस के दौरान मृत्यु को वे अलग नज़रिए से देखते हैं. जनरल रावत कहते हैं युद्ध में ‘बॉडी बैग’ आते हैं, हमारा देश अभी इसके लिए तैयार नहीं है.
जनरल बिपिन रावत ने इसी कड़ी में एक और बात कहते हुए उदाहरण किया. भारतीय सेनाध्यक्ष ने कहा कि हम पश्चिम की नक़ल करते हैं. उन्होंने बताया कि जब वह फौज में नये थे तो एक कोर्स के लिए अमेरिका गये थे जिसमें चार महिलायें और 10 पुरुष अधिकारी थे. कोर्स के दौरान 3 – 4 घंटे के अंतराल पर उन्हें एक घंटे का ब्रेक मिलता था जो खाना खाने के लिए या जिम में जाने का मौका होता था. जनरल रावत बताते हैं कि और वे सभी क्लास रूम में ही, जिम में ही कपड़े बदल लिया करते थे. जनरल रावत कहते हैं कि वह खुद अलग तरह से सोचते थे. वहां महिलाएं थीं और वे इस तरह से कर लिया करते थे. ये उनके तौर तरीके में है लेकिन यहाँ तो ये सिस्टम लाना पड़ेगा.
जनरल रावत इसी बात को आगे बढ़ाते हुए सवालिया अंदाज़ में कहते हैं कि ऐसी सूरत में यहाँ (भारत में) क्या होगा जब महिला अधिकारी हो. यहाँ के हिसाब से हमें उसे अलग जगह देनी होगी. फिर महिला अधिकारी कहेंगी कि ताक-झांक होती है. ऐसे में ढांपने के लिए चादर देनी होगी.
इसी सन्दर्भ में वह आगे कहते हैं कि ये बात तो मैं उस स्थिति की कर रहा हूँ जब महिला अधिकारी अकेले में 100 जवानों से घिरी हो लेकिन यहाँ दिल्ली में भी ऐसी स्थिति है कि महिलाएं बताती हैं कि ताकझांक होती है.
लड़ाकू भूमिका में महिला अधिकारी की तैनाती के सन्दर्भ में ही सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत एक और परिस्थिति का उदाहरण देते हुए सवालिया अंदाज़ में कहते हैं कि कमान अधिकारी बनाये जाने पर जब महिला अधिकारी बटालियन कमांड कर रही हो क्या 6 महीने तक उस अधिकारी का ड्यूटी से दूर रहना संभव है? यदि उस अधिकारी को 6 महीने का मातृत्व अवकाश (मेटरनिटी लीव – Maternity Leave) नहीं दिया गया तो हंगामा हो खड़ा हो जायेगा.