सेना को अमेठी फैक्टरी से AK- 203 असाल्ट राइफलें जल्द मिलने की उम्मीद

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AK- 203 असाल्ट राइफलें

उत्तर प्रदेश के अमेठी क्षेत्र स्थित हथियारों की फैक्टरी में, भारतीय सेना को सप्लाई की जाने वाली एके 203 (AK- 203) असाल्ट राइफलों का निर्माण जल्द शुरू होने की उम्मीद है. रूस की मदद और रूसी तकनीक से बनाई जा रही ये राइफल सेना, विभिन्न सुरक्षा बलों व पुलिस संगठनों के इस्तेमाल में फिलहाल ली जा रहीं इन्सास राइफल का विकल्प है. यानि एके 203 आयेगी तो इन्सास जायेगी. तकरीबन 1000 डॉलर की कीमत वाली करीब 6 लाख 70 हज़ार राइफलों की पहली खेप सेना को मिलेगी.

इकोनोमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक़ थल सेना की तरफ से अगले महीने तकनीकी हरी झंडी और व्यवसायिक बोली की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उत्पादन शुरू होने की तरफ पहला बड़ा कदम होगा लेकिन इससे पहले ऐक्व्जीशन मीटिंग अक्टूबर में ही होगी. इसके बाद उत्पादन के करार पर दस्तखत होंगे. इस खबर में बताया गया है कि योजना के मुताबिक़ रूस इस आधुनिक राइफल के निर्माण की पूरी तकनीक भी हस्तांतरित करेगा. तकनीक हस्तांतरण के लिए ज़रूरी है कि एक लाख राइफलों के निर्माण के बाद बनने वाली राइफलों में, भारत में बनाये पुर्जे लगाये जायेंगे.

भारत और रूस के साझा उपक्रम वाली अमेठी की ये वही फैक्टरी है जिसका उद्घाटन भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिन पहले मार्च में किया था और ये उद्घाटन अमेठी से इस दफा हारे कांग्रेस के राहुल गांधी और पिछली बार उनसे हारकर इस बार यहाँ से जीती उन स्मृति ईरानी के बीच तकरार की वजह बना था जो चर्चित टीवी सीरियल सास भी कभी बहू थी की मुख्य किरदार के तौर पर मशहूर हुईं. वर्तमान में स्मृति ईरानी केन्द्रीय मंत्री भी हैं.

अमेठी की फैक्टरी में, भारत के साथ क्लास्निकोव राइफल बनाने का ये रूस का सबसे तेज़ रफ्तार से वजूद में आया पहला साझा उपक्रम है. रूस के सैन्य तकनीक सहयोग विभाग से जुड़े एक अधिकारी व्लादमीर द्रोझ झोव की टिप्पणी थी कि दोनों देशों के उच्च स्तर पर राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति की वजह से ही इतनी जल्दी साझा उपक्रम के गठन का रास्ता तय हो पाया है. ये रुसी इंडो रशियन प्राइवेट लिमिटेड नाम से भारत के ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड (Ordnance Factory Board) और रूस के क्लास्निकोव ग्रुप की रोसो बोरोन एक्सपोर्ट (Rosoborone Export) व रोस्टेक (Rostec) का ये साझा उपक्रम है.

सेना की ज़रूरत पूरी होने के साथ ही तकरीबन एक लाख राइफलें अन्य सुरक्षा बलों के लिए बनाई जायेंगी. राइफल बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें मंगाने के साथ ही उन्हें चालू भी किया जा रहा है. इस काम की देखरेख के लिये, अपवाद के तौर पर, मेजर जनरल रैंक के एक अधिकारी को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.