हेलिकॉप्टर क्रैश : लापता पायलटों की तलाश में सेना अंतर्राष्ट्रीय मदद लेगी

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भारतीय सेना
भारतीय थल सेना के क्रैश हेलिकॉप्टर का मलबा

जम्मू के कठुआ में रंजीत सागर बांध की झील में दुर्घटना का शिकार होकर डूबे हेलीकॉप्टर में सवार भारतीय सेना के पायलटों की तलाश के लिए अब विदेशों से मदद लेने के संकेत मिले हैं. लापता पायलटों की खोज में लगाए गए स्थानीय गोताखोरों से लेकर नौसेना तक के विशेषज्ञ दल को भी इस दिशा में कामयाबी नहीं मिली है. हालांकि भारत में मुहैया बेहतरीन तकनीक व उपकरण इस तलाशी अभियान में लगाये जा चुके हैं.

भारतीय थल सेना का ये हेलिकॉप्टर 3 अगस्त की सुबह मामून छावनी से उड़ा था. हेलिकॉप्टर रंजीत सागर बांध और उसके आसपास के जंगल वाले इलाके में काफी नीचे की उड़ान भर रहा था. जिस वक्त हेलिकॉप्टर क्रेश हुआ तब ये जलाशय के ऊपर था. हेलिकॉप्टर का काफी हिस्सा तो मिल गया लेकिन उसमें सवार पायलट लेफ्टिनेंट कर्नल और को -पायलट कैप्टन का सुराग नहीं मिल सका. सेना ( Indian Army) , नौ सेना (Indian Navy) , वायु सेना ( Indian Airforce ) स्थानीय प्रशासन , राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF ) , राज्य आपदा मोचन बल (STRF) , पुलिस आदि समेत राहत और बचाव के काम से जुड़े तमाम विभागों और संस्थाओं ने भी अपने अपने तरीके से कोशिशें जारी रखी हुई हैं.

लापता पायलटों की खोजबीन में अंतर्राष्ट्रीय मदद लेने की बात सेना की तरफ से पीआरओ (PRO) कर्नल देवेन्द्र आनंद ने कही है. साथ ही उन्होंने कहा कि पायलट अधिकारियों का पता लगाने के प्रयास में सेना किसी तरह की कसर नहीं छोड़ रही. सेना का ये बयान लापता पायलटों में से एक के भाई की तरफ से इस प्रयासों की रफ्तार पर सवाल उठाये जाने के बाद आया है. सेना ने अभी तक लापता पायलटों के नाम आदि का ब्यौरा जारी नहीं किया है.

भारतीय सेना
रंजीत सागर बाँध

दरअसल जलाशय का आकार और गहराई तो , आर्मी एवियेशन कोर ( Army Aviation Corps ) के दुर्घटनाग्रस्त इस हेलिकॉप्टर के , पायलटों का पता लगाने में एक चुनौती तो है ही , वहीं पानी में गहराई में गंद्लेपन और घनत्व के कारण कुछ भी दिखाई नहीं देना इस अभियान में बड़ी रूकावट बन गया है. गहराई तक पहुँचने के बावजूद भारतीय नौसेना के विशेषज्ञ गोताखोर खाली हाथ लौट के आ जाते हैं क्यूंकि नीचे उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता. वहीं 25 किलोमीटर लम्बाई , 8 किलोमीटर की चौड़ाई और 500 फुट तक की गहराई वाले इस बाँध के जलाशय क्षेत्र में सिर्फ गोताखोरों के बूते पर तलाशी अभियान की कामयाबी में शक की गुंजायश देखते हुए मल्टी बीम सोनार (SONAR – sound navigation and ranging) , साइड स्कैनर समेत अलग अलग तरह की तकनीक व उपकरण चंड़ीगढ़ , दिल्ली , मुंबई से लेकर कोच्चि तक से मंगवाए गये हैं . इनसे काम लिया जा रहा है लेकिन ये भी कुछ मददगार होते नहीं दिखाई पड़ रहे. यूँ तो खराब मौसम के बावजूद बचाव राहत का ये अभियान जारी रखा जा रहा है. रिमोट संचालित वाहन भी लापता पायलटों की खोज में लगाया गया लेकिन उससे भी फायदा नहीं हुआ.

जिस जगह पर क्रेश होकर ये हेलिकॉप्टर गिरा था उसके आसपास के इलाके को चिन्हित करके और एक तरह से घेराबंदी करते हुए तलाशी अभियान चल रहा है लेकिन वहां पानी की स्थिति ऐसी है कि कोच्चि से खासतौर पर मंगाए गये ‘सोनार ‘ सिस्टम के सेंसर भी ठीक से काम नहीं कर पा रहे. पानी के भीतर की आकृतियाँ और हलचल का पता नहीं चल पा रहा.