कश्मीर में पत्थरबाजों का इलाज, पुलिस ने जोखिम भरा पुराना नुस्खा अपनाया

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जम्मू कश्मीर पुलिस
इस तरह मास्क पहने जम्मू कश्मीर पुलिस के इस जवान ने पत्थरबाज बनकर असली पत्थरबाज को दबोच लिया. चित्र में दिख रही पिस्तौल खिलौने वाली है. फोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स

पुलिस और सुरक्षा बलों के काम में लगातार रुकावट खड़ी करने के साथ खून खराबे के हालात पैदा करने वाले पत्थरबाजों से निपटने के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस ने एक बार फिर से वही तरीका आज़माना शुरू कर दिया है जो बरसों पहले भी अपनाया गया था. जोखिम भरे इसी तरीके से जम्मू कश्मीर पुलिस ने जुमे की नमाज़ के बाद कल श्रीनगर में सुरक्षाकर्मियों पर पत्थर बरसाने और भीड़ को उकसाने वाले दो पत्थरबाजों को दबोचा और वह भी खिलौने वाली पिस्तौल के बूते पर.

ऐसे दबोचे पत्थरबाज :

पुलिस की आशंका के मुताबिक़, हर बार की तरह कल भी जैसे ही पुराने शहर की जामा मस्जिद से जुमे की नमाज़ ख़त्म होने के बाद बाहर सड़क पर भीड़ जमा हुई तो कुछ लोगों ने वहां पहले से तैनात पुलिस और केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ-CRPF) के जवानों को पत्थर मारने शुरू कर दिए. लेकिन इसी बीच सादी वर्दी में जम्मू कश्मीर पुलिस के कुछ जवान भी पत्थरबाज बनकर भीड़ में शामिल हो गये. इस बात से बेखबर कि पुलिस वाले उनके इर्दगिर्द ही हैं, दो युवक लगातार न सिर्फ पत्थर बरसा रहे थे बल्कि लोगों को उकसा भी रहे थे. पुलिस कर्मियों के उन्हें दबोच लिया और उन लगभग 100 लोगों की भीड़ में से अलग ले जाकर अपने वाहन में बिठा लिया. इसके थोड़ी देर बाद ही पथराव बंद हो गया.

जम्मू कश्मीर पुलिस
इस तरह मास्क पहनकर जम्मू कश्मीर पुलिस का यह जवान बन गया पत्थरबाज. फोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स

क्या है ज़ोखिम :

पुलिस ने 2010 में भी पथराव के दौरान ये नुस्खा कश्मीर में अपनाया था लेकिन ये भी जोखिम से कम नहीं हैं. हिंसक भीड़ के बीच में घुसकर पत्थरबाज को काबू करना और उसके साथियों या समर्थकों के बीच में से बाहर निकालना, ताकत से ज्यादा हौसले वाला काम है. पुलिसकर्मियों को भीड़ में घुसते वक्त अपनी सुरक्षा के लिए हथियार भी नहीं दिया जाता क्यूंकि भेद खुल जाने पर भीड़ उसकी दुश्मन बन सकती है जो पुलिसकर्मी की जान के लिए खतरा है या हथियार गिर सकता है अथवा छीने जाने का खतरा हो सकता है. हालाँकि इस आपरेशन को हिंसक भीड़ में घुसकर पूरा करने वाले जवानों पर उनके साथी लगातार न सिर्फ नज़र रखते हैं बल्कि उन्हें कवर भी किया जाता है.

खिलौना बंदूक :

कल श्रीनगर में जो पुलिसकर्मी भीड़ में घुसे उनको खिलौना बंदूक से लैस किया गया था (असली लगने जैसी) ताकि इस तरह के कुछ जोखिम कम किये जा सके और काबू किये गये पत्थरबाज को बंदूक का भय दिखाकर उसे काबू किया जा सके.

पहले भी अपनाया गया तरीका :

प्रदर्शनकारियों और हिंसा करने वाली भीड़ के बीच में ऐसे लोगों की शिनाख्त करके उन्हें भीड़ से निकाल कर अलग करने के लिए भारतीय और विदेशी सुरक्षा एजेंसियां ये तरीका पहले भी अपनाती रही हैं, जो लोग भीड़ में ज्यादा सक्रिय होते हैं. दिल्ली पुलिस ने ऐसा कई बार किया जब सादी वर्दी में पुलिस वाले प्रदर्शनकारियों के बीच घुसे. ऐसा एहतियात के तौर पर भी किया जाता है, खासतौर से तब जब वहां किसी वीआईपी की मौजूदगी हो.

इजरायल में भी :

सुरक्षा के मामले में विश्व में अव्वल माने जाने वाली इजरायली सुरक्षा एजेंसियों ने कुछ अरसा पहले पत्थरबाजी कर रहे फलस्तीनी प्रदर्शनकारियों को जब ये तरीका आज़माकर पकड़ा तो इसका वीडियो वायरल हुआ था.