स्पेशल रिपोर्ट : कोविड 19 संकट से सबक – ड्रोन ज़रूरी हैं पुलिस के लिए

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दिल्ली की मार्केट में पुलिस का ड्रोन

वैश्विक महामारी नोवेल कोरोना वायरस (कोविड 19) के संक्रमण के संकट के बीच फ्रंट लाइन वारियर्स के तौर पर उभर कर सामने आये पुलिस विभाग की तरफ से इस दौरान किया जा रहा ड्रोन का इस्तेमाल और इससे मिलने वाली कामयाबी भविष्य की पुलिस व्यवस्था के लिए क्रांतिकारी सन्देश लेकर आया है. अब से पहले तक क़ानून व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति, बड़ी भारी भीड़ पर नज़र रखने या किसी खास ऑपरेशन को अंजाम देने से पहले हालात का जायज़ा लेने के लिए ही आमतौर पर, रिमोट से चलने वाले हवाई उपकरण यानि ड्रोन (Drone) की तकनीक इस्तेमाल की जाती थी. लेकिन कोविड संकट में संक्रमण से जंग में ‘लॉक डाउन’ व ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की स्थिति पर नज़र रखने और इसके नियमों का पालन कराने में तो पुलिस को ड्रोन से मदद मिली ही, इस तकनीक ने अपने इस्तेमाल के और रास्ते भी दिखाए. कई यूरोपीय और एशियाई देशों की तरह भारत में भी राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में ड्रोन का इस्तेमाल संक्रमण रोकने वाले केमिकल/सेनेटाइज़र/कीटाणुनाशक के छिड़काव में भी किया गया.

दिल्ली में ड्रोन का काम :

इस तरह, जो ड्रोन तकनीक अब तक आँख और कान का काम कर रही थी उसने हाथ का भी काम कर सकने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर डाला. यही नहीं, साथ साथ ये भी बता दिया कि ये ड्रोन तकनीक जुबान का भी काम कर सकती है अगर इसमें लाउड स्पीकर भी लगा दिया जाये. दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने तो एक दिलचस्प घटना बताई जब कोविड 19 संकट के शुरूआती दौर में हॉट स्पॉट प्वाइंट्स वाले दिलशाद गार्डन में दुकानों या सार्वजनिक स्थलों पर सोशल डिस्टेंसिंग पर नज़र रखने के लिए ड्रोन उड़ाये गये. ड्रोन बेशक आकार में छोटा होता है लेकिन ज़्यादा ऊंचाई पर न उड़ाये जाने के कारण और बिलकुल अलग तरह की अपनी मशीनी आवाज़ की वजह से आसपास के इलाके में लोगों का ध्यान वो अपनी मौजूदगी की तरफ एकदम खींच लेता है. अधिकारी ने बताया कि लोगों को जब पता चला कि ये ड्रोन पुलिस के हैं तो लोग खुद ही सतर्क हो गये. जो लोग घरों के बाहर सड़क पर खड़े थे, वो भीतर चले गये. यहाँ तक कि बालकनी में खड़े लोग भी कमरों में चले गये. यूँ भी कहा जा सकता है कि ऐसे में ड्रोन उस पुलिसकर्मी का भी रोल अदा कर रहा था जो ट्रैफिक सिग्नल पर यातायात सुचारू रखने की ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी करता है. वाहन चालकों को हमेशा ये भी डर बना रहता है कि ट्रैफिक नियम का उल्लंघन करने पर उसके हाथों पकड़े जायेंगे और चालान भुगतना पड़ेगा. यहाँ ड्रोन सिग्नल पर खड़े पुलिस कर्मी और गश्त पर निकले सिपाही जैसा तो काम कर रहा ही था और जांच अधिकारी की तरह, कानून तोड़ने वालों के खिलाफ वीडियो कैमरे की रिकॉर्डिंग से. सबूत भी इकट्ठा कर रहा था.

पंजाब में पुलिस का ड्रोन

भारत में यहाँ यहाँ ड्रोन :

यूँ पूरे भारत में इस दौरान सैकड़ों ड्रोन इस्तेमाल किये जा रहे है. दर्जन भर से ज्यादा राज्यों के मिला दें तो तकरीबन 700 -800 के बीच तो ये संख्या है ही. एक रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक़ कोविड 19 संकट के दौर में सबसे ज्यादा ड्रोन पंजाब में इस्तेमाल किये जा रहे हैं जिनकी तादाद 160 के आसपास है. वहीं महाराष्ट्र में तकरीबन 100 और दिल्ली में भी 80 के आसपास ड्रोन इस्तेमाल किये जा रहे हैं. केरल में 48 , ओडिशा 46 , आंध्रप्रदेश में 38 , तेलंगाना में 17, मध्य प्रदेश में 13 तमिलनाडु में 12 , मणिपुर में 7, हरियाणा में 34 और राजस्थान में 9 ड्रोन ऑपरेट किए जा रहे हैं.

मुंबई में गेट वे ऑफ़ इंडिया के इलाके में निगरानी करता पुलिस का ड्रोन

बड़े बड़े काम के लायक ड्रोन :

ये तो बात ड्रोन की पुलिस के प्रतीक के तौर पर मौजूदगी की थी लेकिन ड्रोन तकनीक की मदद से असलियत में भी ऐसे काफी काम लिए जा सकते हैं जिसके लिए पुलिसकर्मी की आवश्यकता होती है. यूँ कहा जाये कि सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर की ज़रूरत के मद्देनज़र ही नहीं रोजमर्रा के पुलिस के कई अहम काम भी इस तकनीक की मदद से बेहतर और रफ्तार से किये जा सकते हैं. जैसे किसी सड़क दुर्घटना के होने पर उस स्पॉट पर निगरानी के लिए. बड़े औद्योगिक क्षेत्र में वैसी दुर्घटना पर नज़र रखने के लिए जैसी हाल ही में आंध प्रदेश के विशाखापत्तनम में हुई जिसमें गैस रिसाव में कई लोग मारे गये और एक बड़े क्षेत्र की आबादी प्रभावित हुई. ऐसे इलाके की ऊंचाई से ली जाने वाली तस्वीरों से हालात का बेहतर तरीके से और ज्यादा जल्दी अंदाज़ा लगाकर अगला निर्णय लिया जा सकता है. ट्रेन दुर्घटना या इमारत में आग लगने या उसके गिरने का हादसा हो, हड़ताल, प्रदर्शन, रैली और आन्दोलन जैसे हालात में भी निगरानी पर ये तकनीक पुलिस और अन्य एजेंसियों के वास्ते बहुत काम की है.

भुवनेश्वर में कीटनाशक स्प्रे छिड़कने में ड्रोन का इस्तेमाल

सुरक्षा और ऑपरेशन में इस्तेमाल :

समुद्र किनारे की जगह हो, पर्यटकों की आवाजाही वाले मुम्बई का गेट वे ऑफ़ इण्डिया हो या राजधानी दिल्ली में इण्डिया गेट के आसपास का इलाका. संसद, विधान सभा की सुरक्षा हो या रेलवे स्टेशन, यूनिवर्सिटी अदालतों के आसपास के खुले परिसर. ये वो तमाम जगह हैं जहां ड्रोन हवाई गश्त करके हालात पर नज़र रख सकते हैं. इतना ही नहीं यहाँ मौजूद लोगों तक इन ड्रोन में लगे लाउड स्पीकर से संदेश भी दिया जा सकता है. ऐसी जगह पर होने वाले अपराधों के सबूत भी इसमें लगे कैमरे के ज़रिये इकट्ठा किये जा सकते हैं जो जांच में भी और अदालती कार्यवाही में भी सहायक होंगे. वहीं संदिग्ध व्यक्तियों और दंगे जैसे हालात में निगरानी रखने और उन परिस्थितियों में भी सबूत जुटाने में इनसे काम लिया जा सकता है. संसद पर आतंकवादी हमले और मुंबई की 9/11 जैसे हमले की घटनाओं में भी बेहतर ऑपरेशन करने में ये निश्चित ही मददगार साबित हो सकते हैं. इनके कैमरों से मिलने वाले दृश्यों से हालात को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है वो भी बिना जोखिम उठाये. शहरों में बड़े चौराहों पर यातायात पर नज़र रखने से लेकर नाकों और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर तैनात पुलिसकर्मियों की मुस्तैदी पर वरिष्ठ अधिकारी अपनी सुविधानुसार निगाह रख सकते हैं. वीआईपी सिक्यूरिटी का प्लान बनाने से लेकर उसे अमल में लाने में और कहीं भी औचक निरीक्षण भी ड्रोन के ज़रिये किया जा सकता है. भीड़ भाड़ वाली जगह या बाज़ारों में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों पर या संदिग्धों को पहचानने में ड्रोन की सहायता से काम किया जा सकता है.

खेत में कीटनाशक के छिड़काव में ड्रोन का उपयोग

विदेशों में बढ़ता इस्तेमाल :

ड्रोन से उपरोक्त कुछ काम तो यूरोपीय देशों में एजेंसियों ने लेने भी शुरू कर दिए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 43 प्रान्तों में तकरीबन 350 से ज्यादा एजेंसियां ड्रोन का इस्तेमाल कर रही हैं. वहीं कनाडा में तो 2018 तक के आंकड़ों के हिसाब से 17 पुलिस एजेंसियां ड्रोन इस्तेमाल कर रही थीं और कुछ ने इसके लिए योजना बनाकर खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू कर डाली थी. फ्रांस, इटली और कज़ाखस्तान ने तो ड्रोन पर लाउड स्पीकर लगवा कर भी इस्तेमाल शुरू किया है.

भारतीय पुलिस के लिए ज़रूरी क्यूँ :

कोविड 19 के संकट में दुनिया भर में और खासतौर पर भारत में पुलिस विभाग ही एकमात्र सरकारी एजेंसी बन कर उभरा है जिसके कर्मचारियों ने ट्रेनिंग तो कानून व्यवस्था बनाने की ली हुई है लेकिन काम वो जन स्वास्थ्य विभाग और समाज कल्याण विभाग के कर्मचारियों का भी कर रहे थे. लॉक डाउन के दौर में कभी एम्बुलेस सेवा की तरह गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाते, कभी घरों मैं कैद लोगों तक दवा से लेकर राशन तक पहुँचाने का भी बीड़ा उन्होंने उठाया. और तो और जत्थों के रूप में दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों से अपने गाँव के लिए निकले प्रवासी गरीब मजदूरों से भिड़ने, उन्हें क्वारंटाइन केन्द्रों तक पहुँचाने, धकियाने से लेकर खाना पीना तक मुहैया कराने का काम जगह जगह खाकी वर्दीधारियों को करना पड़ा. इसका खामियाज़ा कइयों ने अपनी जान देकर भुगता. बिना किसी पुरानी ट्रेनिंग के पुलिस जिस वजह से इस काम को कर रही है उसका कारण उसके पास बाकी तमाम विभागों से ज्यादा बड़ा नेटवर्क होने के कारण सब जगह और हर समय मौजूदगी वाली अनुशासित व्यवस्था और अन्य विभागों के कर्मियों के मुकाबले ज्यादा शक्तियाँ.

मुंबई के मोहल्ले गली में निगरानी करता पुलिस का ड्रोन

क्यूंकि पुलिस ने इस संकट में अपनी एक योद्धा के समान बहु आयामी उपयोगिता दिखाकर एक अलग किस्म की जगह इस व्यवस्था में बनाई है इसलिए उसे और बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए खुद को तैयार करना होगा. उसे कोविड 19 जैसे या इससे भी इतर किस्म की आपदा का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना होगा. वो इसलिए भी क्यूंकि नागरिक प्रशासन की पूरी व्यवस्था के बीच उसके जैसा कोई और महकमा है ही नहीं जो हर तरह की आपात स्थिति में काम करने की क्षमता रखता हो और वो भी चौबीसों घंटे. वर्तमान समय की चुनौतियों में से इसके लिए एक बड़ी चुनौती है न सिर्फ बाहरी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कराना बल्कि अपनी काम की जगहों यानि थानों, दफ्तरों, बैरकों आदि से लेकर अदालती प्रक्रिया पूरी करना. अपराध वाली जगह की जांच पड़ताल, सबूत जुटाना, मुल्जिम की गिरफ्तारी, अदालती पेशी के बाद उसे जेल भेजना आदि भी उसे सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने के दौरान करना है. पुलिस ने इसके लिए ज्यादातर तरीके खोजकर उन पर अमल शुरू कर दिया है और कुछ नये तरीके अभी आज़माए भी जा रहे हैं.

पुलिस के लिए फायदेमंद :

ड्रोन का इस्तेमाल पुलिस के लिए दोनों ही मामलों में फायदेमंद हो सकता है. बहुत सारे स्थानों पर जाने से अधिकारी बच सकते हैं अगर वे चाहें तो दफ्तर या थाने में बैठे बैठे ही, ड्रोन कैमरे से मिलने वाले दृश्य देखकर भी सम्बन्धित स्थल का मुआयना कर सकते हैं या निर्णय ले सकते हैं. यानि संक्रमण का खतरा भी अपने और दूसरों के लिए कम करेंगे बल्कि समय और आने जाने पर खर्च होने वाले धन और ऊर्जा की भी बचत. लेकिन ड्रोन की जैसी उपलब्धता अभी है, उसके आधार पर ये नहीं हो सकता क्योंकि सेना और इक्का दुक्का एजेंसियों को छोड़कर ज़्यादातर पुलिस बलों के पास ये हैं ही नही. कहीं कॉनट्रेक्ट पर ऑपरेटरों से लिए हुए हैं तो कुछ लोगों ने निजी तौर पर या संकट में समाजसेवा के भाव के साथ पुलिस को उपलब्ध कराए है. ऐसे में ड्रोन को ऑपरेटर या उसके हैंडलर ही चलाते हैं.

ड्रोन नीति और ट्रेनिंग :

ड्रोन की वर्तमान और भविष्य की ज़रूरतों को देखते हुए पूरे देश की पुलिस के लिए ड्रोन सम्बन्धी नीति बनाने, ड्रोन खरीदने और उसके अलग अलग तरीके से इस्तेमाल के तौर तरीके पता लगाने की ज़रूरत है. पुलिस की अन्य यूनिटों की तरह हर ज़िलास्तर पर ये यूनिट होनी चाहिए और हर थाने में ज़रूरत के मुताबिक़ ड्रोन की उपलब्धता के साथ उन्हें ऑपरेट करने के लिए उसी तरह से ट्रेंड स्टाफ होना चाहिए जैसे श्वान दस्ता, घुड़सवार दस्ता या संचार व्यवस्था में प्रशिक्षित पुलिसकर्मी होते हैं. इन सभी ड्रोन यूनिटों के इस्तेमाल की समीक्षा और इनको अपग्रेड करने का सिस्टम राज्य पुलिस मुख्यालय स्तर पर होना चाहिए. पुलिस की तरह ही ड्रोन का इस्तेमाल वन विभाग , अवैध निर्माणों पर नजर रखने के लिए स्थानीय निकाय , बड़े निर्माण परियोजनाओं पर निगरानी के लिए वहां का प्रबन्धन भी या ऐसे संगठन कर सकते हैं जिनका कार्यक्षेत्र में बड़ा फैला हुआ है या जिस पर अपने खुले परिसर में रहने वाले एक बड़े जनसमूह की ज़िम्मेदारी होती है. मसलन बड़ी यूनिवर्सिटी या ट्रेनिंग सेंटर हों.