शौर्य चक्र विजेता मेजर राकेश शर्मा का आतंकियों की गोलियों से साक्षात्कार

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शौर्य चक्र विजेता मेजर राकेश शर्मा
शौर्य चक्र विजेता मेजर राकेश शर्मा

सन 1996 में कमीशन प्राप्त करने के तुरंत बाद जैसी मुझे उम्मीद थी, मुझे कश्मीर में सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट में एक युवा भारतीय सैन्य अधिकारी के रूप में तैनात किया गया. कश्मीर में आतंकवाद के कारण युद्ध जैसे हालात है और स्थिति तनावपूर्ण है ऐसा ट्रेनिंग के दौरान हम इसके बारे में सुनते थे. यहां मैं अपने एक प्रिय मित्र का उल्लेख भी करना चाहूंगा जो अकादमी में मेरे साथ ट्रेनिंग कर चुका था मेरा रूममेट सेकंड लेफ्टिनेंट विवेक सजवान हम दोनों कश्मीर में एक साथ विभिन्न रेजिमेंट और विभिन्न स्थानों पर तैनात हुए, प्रशिक्षण के दौरान कैडेट्स के रूप में हम एक दूसरे के साथ मजाक करते थे कि हम दोनों में से पहले कौन शहीद होगा.

कश्मीर में मेरी सर्विस के शुरू के 2 सालों में मेरा LOC पर सिर्फ छोटी झड़पों से ही सामना हुआ, जबकी एक योद्धा और नायक के रूप में मेरी परीक्षा होनी बाकी थी ..वो मौका भी जल्द ही

शौर्य चक्र विजेता मेजर राकेश शर्मा लिखित ये लेख उनकी फेसबुक वाल से लिया गया है

आ गया जब सन 1998 में रात के 2:00 बजे 15 जवानों की टीम के साथ मुझे कश्मीर में combat & Destroy ऑपेरशन करने का मौका मिला. ये क्षेत्र पहाड़ियों से घिरा एक तराई वाला इलाका था जहाँ कुछ गांव थे जो घने जंगलों के बीच बसे हुए थे.

कुछ इनपुट के अनुसार 2-3 आतंकवादी एक महत्वपूर्ण व सम्मानित व्यक्ति और उसके परिवार को मारने के उद्देश्य से इस इलाके में छिपे हुए है. सुबह करीब 4 बजे तक हमने पूरे क्षेत्र को घेर लिया औऱ पहली किरण के साथ हमने अपना आपरेशन शुरू कर दिया. जंगलों के बीच बसे गांवों के प्रत्येक घर को सावधानी से निरीक्षण करना बहुत ही थका देने वाला काम है जिसे बहुत ही दक्षता से किया जाता है…

शौर्य चक्र विजेता मेजर राकेश शर्मा
मेजर राकेश शर्मा को शौर्य चक्र प्रदान करते तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम. फोटो : मेजर राकेश शर्मा के फेसबुक वाल से

सर्च आपरेशन शुरुआत में अत्याधिक सतर्कता व फुर्ती से किया जाता है पर धीरे धीरे समय बीतने के साथ ये काफी उबाऊ होता जाता है और कभी कभी सैनिकों को बहुत ज्यादा थका देने वाला होता है. हम फिर भी आपरेशन जारी रखे हुए थे ..पर इसके बावजूद नीरसता, निराशा और झुंझलाहट लगातार बढ़ती जा रही थी क्योंकि हमें परिणाम में कुछ नहीं मिल रहा था. करीब दोपहर के 3 बजे (15:00 Hrs) किसी आतंकवादी के निशान न मिलने पर मैंने आपरेशन रोकने का फैसला लिया ..कोई संकेत या सुराग न मिलने के कारण मैं काफी निराश भी हो गया था..

वापस लौटने की तैयारी करते मेरे साथी मुझे इस तरह से देख रहे थे जैसे मैं ओलिंपिक का मेडल हार गया हूँ, अचानक जवानों में से एक जिनके पास एक LMG – Light Machine Gun थी वो मेरे पास आये, वह LMG के स्टैंड को फोल्ड कर रहे थे मैंने उन्हें एक रणनीति के तहत एक रिक्त स्थान पर कुछ राउंड फायर करने का आदेश दिया. ..जैसे ही उन्होंने 3 राउंड फायर किए तभी गांव के घरों के बीच से 3 लोग भागते नजर आए, घाटी की तरफ वे हमसे बमुश्किल 100 मीटर दूर ही होंगे. ..हमने अपनी पोजीशन सम्भालते हुए उन पर फायर किए पर असमतल पहाड़ी जमीन होने के कारण हमारी गोलियाँ कारगर साबित नहीं हुई जिससे मेरी उम्मीदों को एक जबरदस्त झटका लगा. ..और कुछ पलों के लिए मैं हतोत्साहित हुआ.

उस समय मेरे मस्तिष्क में हजारों विचार एक साथ हिलोरे ले रहे थे पर जो विचार सबसे सशक्त था वो था कि इन आतंकवादियों को हर हाल में खत्म करना है …बस मेरे कदम अचानक से उस दिशा में तेजी से दौड़ पड़े जिस दिशा में वो आतंकवादी भाग रहे थे ..इस बीच मुझे इस बात का भी आभास नहीं था कि मेरे साथी मेरे पीछे आ रहे हैं या नहीं ..मैं बस दौड़ रहा था और बीच बीच मे फायरिंग भी कर रहा था ..मुझे महसूस हो गया था कि मेरे साथी मुझसे थोड़ा पीछे आ रहे थे वो भी एक अंतराल के बाद फायरिंग कर रहे थे.

करीब 30 मिनट आतंकियों का पीछा करने के बाद अंततः घने जंगलों में हमने उन लोगों को खो दिया ..हालांकि मैं अपनी टीम के साथ सामान्य दिशा में आगे बढ़ रहा था ..मैंने अपनी टीम को निर्देश दिए कि वे सामने की दिशा से आने जाने वाले किसी से भी पूछताछ करे.

जब हम ढलान से नीचे उतर गए और रास्ते में पड़ने वाली नदी पार करने वाले थे तभी मैंने देखा कि 2-3 पुरुष व इतनी ही महिलाएं और 4-5 बच्चों के एक परिवार ने सामने हमारे रास्ते को पार किया ..मुझे इस स्थिति पर कुछ शक हुआ ..मैंने बस एक सामान्य ड्रिल के तौर पर उनके बारे में पूछताछ की ..उन्होंने एक अलग गांव का नाम बताया और कहा कि वे लोग यहाँ अपने रिश्तेदारों के घर आये थे अब वापस लौट रहे हैं ..ये जवाब मुझे सन्देहास्पद लगा.

..ज्यादा जोर देने पर सच सामने आ गया ..उन्होंने कहा कि 3 आतंकवादी हमारे घर में घुस आए हैं जिनके पास हथियार हैं और हमें जान से मारने की धमकी दी है इसलिये हम लोग भाग रहे हैं.

“मुझमें अभी भी दुश्मनों को खत्म करने की आग जिंदा थी ..”

मैंने उनको अपना घर दिखाने के लिए कहा ..सभी ने मना कर दिया ..जोर देने पर एक अनिच्छा से हमारे साथ आने को तैयार हुआ ..उसने दूर से ही जमीन के अपेक्षाकृत उठे हुए हिस्से के पीछे स्थित अपना घर दिखाया जहां आतंकवादी छुपे हुए थे ..ये कोई 4-5 बड़े कमरों का व चट्टानी पत्थर से बना हुया मज़बूत घर था. बिना एक पल गवाएं मैंने टीम को घर को घेरने के संकेत दिए…करीब शाम के 04:30 (16:30 Hrs) बजे पर हमने घर पर फायरिंग शुरू कर दी ..मैं रात घिर आने से पहले इस ऑपरेशन को खत्म कर देना चाहता था क्योंकि इस गांव में हम संख्या में कम थे और औऱ मुख्य सर्च पार्टी से हम इस भागदौड़ में अलग भी हो गए थे. मुश्किल से 5 मिनट की इस रुक रुक कर की जाने वाली फायरिंग के बाद गोलियों की बौछार ने आतंकियों की ओर से जवाबी कार्रवाई करते हुए हमारा स्वागत किया ..मैंने राहत की सांस ली क्योंकि ऐसा महसूस हुआ कि जो ओलिम्पिक मेडल मैं हार चुका था उसे पुनः जीतने की संभावना दिखने लगी थी.

धीरे धीरे फायरिंग तेज होने लगी ..आतंकियों की संख्या चाहे जो भी हो वे 2 मोर्चों पर हमसे प्रभावी रूप से लड़ रहे थे. गोलियों की आवाजों से पूरा माहौल दहल उठा था..इन सनसनाती गोलियों की आवाज हम सभी में जोश भर रही थी. हम इस युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे…करीब 40 मिनट बाद लगातार चल रही फायरिंग में कमी आने लगी ..यही मौका था जब हम उस घर में घुस सकते थे …मैंने उस घर के मुख्य द्वार को तोड़ने के लिए एक विशिष्ट प्रकार के हथियार का इस्तेमाल किया..दरवाजा एक तेज धमाके के साथ उड़ गया.

जैसे जैसे रात घाटी को अपने आगोश में ले रही थी मेरे मन में उस घर के भीतर प्रवेश करने की इच्छा बढ़ती जा रही थी ..सीधे घर में घुसना मुझे खतरे से खाली नहीं लग रहा था. जैसा कि पहाड़ी की तरफ से हिस्सा ज्यादा खुला हुआ था मैं और 4 साथियों के साथ खेतों की ओर से एक चक्कर लगाते हुए ऊंची नीची पहाड़ी परतों के पीछे छिपते हुए हम घर के अहाते के नजदीक पहुंच गए थे, मैंने खेतों से 2-3 राउंड फायर किए पर कोई प्रतिक्रिया न होती देख मैं अहाते में कूद गया जबकि मेरे साथी पीछे आ रहे थे ..मैंने एक सुरक्षित पोजीशन से घर के मुख्य द्वार पर एक आतंकवादी की लाश देखी जो क्षत विक्षत हो चुकी थी …

मैं वापस घर में अंदर गया तो देखा कि बाएं हाथ पर कोने में खिड़की के पास एक और आतंकी की लाश पड़ी थी ..हमने उसका निरीक्षण किया कि कहीं उस पर कोई विस्फोटक तो नहीं बंधा है.. पुष्टि हो जाने पर उस लाश को भी बाहर लाया गया..अब जबकि 2 आतंकवादी मारे जा चुके थे फिर भी हम सर्च आपरेशन कर रहे थे क्योंकि हमने 3 आतंकवादियों को देखा था और गांव के उस व्यक्ति ने भी 3 आतंकवादी होने की जानकारी दी थी जो हमें नदी के पास मिले थे. तो अभी एक और आतंकवादी होना चाहिए था..अगले कुछ मिनटों तक हम किसी को भी नहीं ढूंढ पाए थे.

पूरे इलाके में घना अंधेरा हो चला था और मेरे साथी उस घर के बाहर आपरेशन सफल होने की खुशियां मनाने के लिए इकट्ठे होने लगे ..पर मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था कि तीसरा आतंकवादी कहाँ छिपा हो सकता है.. उस आतंकवादी को ढूंढ निकालने की बेचैनी निरन्तर बढ़ती जा रही थी क्योंकि ये मेरी पूरी टीम के लिए खतरा साबित हो सकता था.

जब ये विचार श्रंखलाबद्ध तरीके से मेरे मन मस्तिष्क को झकझोर रहे थे कि सहसा ही एक हल्की सी दरार चटकने की ध्वनि ने मेरा ध्यान तोड़ते हुए उस ओर आकर्षित किया…एक लकड़ी का बॉक्स जो कि कश्मीरी ग्रामीणों द्वारा अनाज आदि को जमा करने के लिए इस्तेमाल होता है वो मुझसे करीब 7-10 मीटर की दूरी पर था अचानक गोलियों की बौछार के साथ खुला ..मैंने उनसे बचने के लिए एक लंबी छलांग बाहर की ओर लगाई ..शायद मेरे जीवन की सबसे लंबी छलांग ..बाहर निकलते समय मुख्य द्वार के पास गिर पड़ा ..ये सब इतनी जल्दी हुआ कि कुछ समझ नहीं आया कि कितने लोग बाहर निकलने में सफल हुए, क्या उन्होंने कवर ले लिया है? जो लोग बाहर इंतज़ार कर रहे थे क्या वो सभी सुरक्षित है …?? गोलियों की तेज आवाज ने माहौल को दहला दिया था.

चंद पलों में ही मुझे स्थिति का एहसास हो गया और मेरी सारी इन्द्रियों ने बड़ी तेजी से काम करना शुरू कर दिया था ..मुझे गिरने के कारण हल्की खरोंच लगी थी ..उस अंधेरे आँगन में मैंने अपने आपको अकेला पाया ..जो काफी ठंडा था… आपरेशन पर मेरा नियंत्रण पूरी तरह से खो चुका था ..और मेरे सभी सभी फौजी साथी सुरक्षित हैं या नहीं इसका मुझे अनुमान नहीं लग पा रहा था ..बड़ा ही ग्लानि भरा क्षण था वो. उस अंधेरे घर से मैं बड़ी फुर्ती से बाहर निकला और लगभग 50 मीटर दूर एक झोपड़ीनुमा ढांचे तक पहुंचा ..मेरा मस्तिष्क अब तक अपनी रफ्तार पकड़ चुका था…

वहां रेडियो पर अपनी लोकेशन को सभी के साथ साझा किया.. धीरे धीरे लगभग 15 मिनट में ही मेरी पूरी टीम वहाँ एकत्र होने लगी… सभी को जीवित और सुरक्षित देखकर ऐसा लगा मानो मेरे जीवन का सबसे अनमोल क्षण हो.. मैंने पुनः पुष्टि के लिए 2 बार सभी फौजी जवानों को गिना और फिर राहत की सांस ली.

पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से उस स्थान पर गहरा अंधेरा था ..और काली स्याह रात माहौल को और भी भयावह बना रही थी ..मैंने फिर से उस घर में घुसने का निश्चय किया हालांकि मैं जानता था कि ये मूर्खतापूर्ण होगा और सभी के लिए जोखिम से भरा होगा… क्योंकि कुछ देर पहले ही हम मौत को हराकर बाहर निकले थे और सौभाग्यशाली थे कि कोई इसमें घायल नहीं हुआ था. मुझे पता था कि तीसरा आतंकवादी उस लकड़ी के बॉक्स में ही छुपा है, उसने अंधाधुंध और लक्ष्यविहीन फायरिंग की है इससे साबित होता है कि वो बुरी तरह से घायल है ..वो ढंग से फायर नहीं कर पा रहा है अन्यथा मैं थोड़ी देर पहले उसकी गोलियों का निशाना बना चुका होता.

All Safe

इसी बीच हमारे रेडियो सेट पर सबसे नजदीकी बेस से सम्पर्क स्थापित हुआ.. और Head Quarter को हमने मिशन दल के सभी सैनिकों के सुरक्षित होने का संदेश “All Safe” प्रसारित कर दिया.

मैंने उस आतंकवादी को खत्म करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया …और ये सूचना HQ को दे दी कि हो सकता है इस आपरेशन में पूरी रात भी लग सकती है और अगली सुबह तक भी ये आपरेशन चल सकता है …हमने इस घर को फिर से घेरने के लिए 6 विभिन्न समूह बनाये ..वास्तव में मैं उस घर के अंदर से आने वाली आवाजें सुनना चाहता था. सभी टीमों ने अपनी निर्धारित पोजीशन ले ली थी.. घर से 20-25 मीटर दूरी पर आसपास के घरों के नजदीक सभी अपनी पोजीशन ले चुके थे.

खेतों के बीच खुले में एक बेहद ठंडे वातावरण में हम लोग ये आपरेशन कर रहे थे जिसके लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं था पर ये एक रोमांचक और बेहद चुनौतीपूर्ण अनुभव था. आधी रात के करीब मुझे HQ ने रेडियो पर सन्देश दिया कि अंदर छिपा हुआ आतंकवादी उस दल का कमांडर है जो बेहद घायल अवस्था मे अपने साथियों से वायरलेस के जरिये मदद मांग रहा था.

एक क्षण के लिए मैंने उस घर को ब्लास्ट करने के बारे में सोचा क्योंकि दिसंबर के महीने में पूरी रात बेहद बेरहम ठंड में बेकार बैठकर अपनी जान गँवाना वो भी उस आतंकवादी के लिए जो अंदर बैठा हमारे ही खिलाफ षड्यन्त्र रच रहा था, जो कि एक बेहतर उपाय था.. पर मेरे अंतर्मन ने मुझे ऐसा करने से रोका, ये जानते हुए कि हमारे चारों और बहुत खतरा है. रात के 2 बजे हमने ठंड से बचने के लिए आग जलाई.. वहाँ न तो खाने के लिए कुछ था पर ठंड से बचने के लिए आग बेहद कारगर साबित हुई ..खाना नहीं है तो भी चलेगा पर ठंड में क्यों मरें?? हालांकि ये सैन्य रणनीति के विरुद्ध था किन्तु कारगर सिद्ध हुआ.

हम पूरी रात बाहर खुले में बैठे रहे ..उस भयावह सर्द अंधेरी रात की खामोशी दूरी पर भौंकते कुत्ते और सनसनाती बहती बर्फ़ली हवा ही तोड़ रही थी ..वहाँ आपस में बैठकर फौजी गपशप की जा सकती थी पर वो भी एक खतरा बन सकती है तो हमने चुप रहना ही बेहतर समझा. सुबह 6 बजे जब कुछ दिखने लगा हमने समय न गंवाते हुए उस घर पर धावा बोल दिया. मैंने टीम को उस घर के अंदर 3 ओर से फायर करने के आदेश दिए और हम 3 लोग जमीन पर रेंगते हुए घर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करने में सफल हुए..

प्लान के अनुसार निर्धारित समय पर सभी ने फायरिंग रोक दी ..हम तीन लोग रेंगते हुए आपस में कवर फायरिंग करते हुए उस जगह तक पहुंचे जहां वो लकड़ी का बड़ा बॉक्स रखा हुआ था.. हमने अपनी सांसें संयत करते हुए एक साथ उस बॉक्स पर फायर करते हुए उसकी धज्जियाँ उड़ा दीं ..और सुरक्षा के लिए वहाँ मौजूद हर चीज को हमने अपना निशाना बना डाला जो उस आतंकी के लिए छुपने के लिए इस्तेमाल हो सकती थी. करीब 2 मिनट बाद हमने उस बॉक्स से तीसरे आतंकवादी की लाश बाहर निकाल ली. दूसरी टीम ने इसी बीच तेजी से पूरे घर को अन्य सम्भावित खतरे को देखते हुए खंगाल लिया था..

लगभग 30 घण्टे तक चले इस आपरेशन में हमने 3 आतंकवादी ढेर किये थे ..ऐसा लगा की सच मे मैने अपना खोया हुआ ओलिंपिक पदक पा लिया. आपरेशन खत्म हो चुका था. हम सब बेहद उत्साही महसूस कर रहे थे …मैंने सभी को इस विजय के लिए शुभकामनाएं दीं. एक सैनिक के तौर पर एक सन्तोषजनक बात ये थी कि सेना में उभरते हुए मेरे करियर के पहले बड़े आपरेशन में मेरी टीम के सभी लोग सुरक्षित थे कोई भी घायल नहीं हुआ था और न ही कोई शहीद हुआ था. सौभाग्यशाली मैं भी था यदि उस आतंकवादी की गोलियां सही दिशा में चलती तो हो सकता था कि मैं शहीद हो जाता.. और ये कहानी कोई और मेरे लिए लिख रहा होता.

शुरुआत में मैंने अपने एक मित्र और सहकर्मी लेफ्टिनेंट विवेक सजवान के बारे में लिखा है.. जो सैन्य अकादमी में मुझसे मजाक किया करता था कि हम दोनों में से पहले कौन शहीद होगा ..उसके बारे में मुझे पता लगा कि जनवरी 1998 में वो कश्मीर में मात्र 24 साल की उम्र में एक आपरेशन के दौरान शहीद हो गया.. मुझमें इतना भी साहस न हो पाया कि मैं छुट्टियों पर लौटते समय उसके परिवार से मिल सकूं.

सैनिक कभी मरते नहीं हैं.. बस वो यादों में कहीं धूमिल हो जाते हैं… मेरा दोस्त मेरा भाई विवेक.. मेरे साथ सदा रहेगा ..मेरी यादों में.

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  1. Thank you Rakshak News for the Publication. Wish you motivate many many Indians and Do well- Regards Maj Rakesh Sharma, Shaurya Chakra

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