अगर तुम्हारा दिल, दिमाग और घुटना एक लाइन में है तो इस बारे में सोच सकते हो – ये लाइन तब अचानक याद आती है जब भारतीय सेना की सबसे खतरनाक ट्रेनिंग पूरी करके मरून बेरे हासिल करने वाले स्पेशल फोर्सेज़ के जांबाजों का ज़िक्र होता है. उनकी ट्रेनिंग की शुरुआत ही ट्रेनर के इस तरह के जुमलों से होती है लेकिन उन जुमलों की लीक पर ही 10 पैरा के इन कोहिनूरों को चलना पड़ता है. ट्रेनिंग से पहले भी, ट्रेनिंग के दौरान भी और ट्रेनिंग के बाद भी. लोहे से भी मज़बूत जिस्म और उससे भी मज़बूत हौसला और दम रखने वाले गिनती के इन शूरवीरों में से ही एक थे कर्नल संग्राम सिंह भाटी. ‘थे’ लिखते हुए तकलीफ हो रही है लेकिन वास्तविकता यही है.
शौर्य चक्र से सम्मानित कर्नल संग्राम सिंह ने शुक्रवार की तड़के दिल्ली में सेना के आरआर अस्पताल में अंतिम सांस ली. वह बीमार थे और उन्हें मल्टी आर्गन फेलियर (Multi Organ Failure) हुआ.
राजस्थान की माटी उनके जन्म से ही नहीं कर्म और नाम से भी जुड़ी रही. रेगिस्तान के बिच्छू (Desert Scorpion) कहलाने वाले स्पेशल फ़ोर्स के असली स्कार्पियन का शनिवार को सैनिक सम्मान के साथ 19 अक्टूबर को जोधपुर में अंतिम संस्कार किया गया. उनके शोक संतप्त परिवार में पत्नी और दो बेटियाँ हैं.
स्पेशल फोर्सेज़ के आपरेशंस की चर्चा हो और उसमें संग्राम सिंह नाम का ज़िक्र न आये, ये तो हो ही नहीं सकता और खास तौर से तब जब जम्मू कश्मीर के आतंकवाद से निपटने के लिए सुरक्षा बलों के किये गये खतरनाक आपरेशंस के पन्ने पलटे जाएँ ..! संग्राम सिंह के असल आपरेशन की कहानी से, कमांडो जैसी खास कार्रवाई से किसी भी तरह का ताल्लुक रखने वालों के लिये जुड़ना लाज़मी बन जाता है.
ये आपरेशन किसी भी तरह के आत्मघाती आपरेशन जैसा ही था. या यूँ कहें कि उससे भी भयानक क्यूंकि इसके लिए लगभग 20 साल पहले भारतीय सेना के मेजर (उस समय) संग्राम सिंह को खुद आतंकवादी बनना पड़ा था. बेहद खतरनाक आतंकवादी संगठन लश्करे तैयबा की रीढ़ तोड़ने के लिए किये गये इस आपरेशन ने ये साबित भी किया कि भारतीय सैनिक बड़े से बड़े जेहादी से उसी के स्टाइल में उससे निपटने की ताकत रखते हैं. मेजर संग्राम सिंह और उनके साथी कैप्टन विकास ने ऐसे नौजवानों का रूप धरा जो समाज की मुख्यधारा से अलग हो गये. ऐसे ही भटके नौजवानों को अपना चारा बनाने वाले आतंकवादी संगठनों में से ही एक लश्करे तैयबा को भी उन जवानों में भारत में तबाही मचाने वाले युवकों वाली सम्भावनाएं व जज़्बा दिखाई दिया. इसके बाद आतंकवादी उन्हें अपने ठिकाने पर ले गये. चार दिन आतंकियों के साथ, उनके बीच में गुजारने के बाद मेजर संग्राम सिंह और कैप्टन विकास लौटे तो उनके पास लश्कर-ए-तैयबा के बारे में काफी जानकारियाँ जमा हो चुकी थीं.
10 पैरा स्पेशल फोर्सेज़ के मेजर संग्राम सिंह और कैप्टन विकास चार दिन तक जंगल में लश्कर-ए-तैयबा के उन आतंकियों के साथ उनके ठिकाने पर उन्हीं की तरह रहे. ज़रा सी भी चूक हो जाती और आतंकियों को उनकी असलियत पता लग जाती तो समझा जा सकता है कि क्या होता. इतना ही नहीं, उन्होंने वहां मौजूद चार आतंकियों का खात्मा भी किया. जब वे लौटे तो उनकी दी गई ख़ुफ़िया जानकारियों के आधार पर सुरक्षा बलों ने कार्रवाइयां कीं जिससे उस आतंकी गुट के पाँव उखड गये. इस शूरवीरता और साहस के लिए मेजर संग्राम सिंह को वर्ष 2000 में राष्ट्रपति ने शौर्य चक्र से नवाज़ा.
rakshaknews.in की टीम की तरफ से जांबाज़ कर्नल संग्राम सिंह को नमन. यदि आपको इस शौर्य चक्र विजेता के साहस की घटना प्रेरणा दायक लगती है तो इस आलेख को शेयर करें.