सियाचिन में इन बच्चों की ड्राइंग और पेंटिंग्स भेजने का मकसद ख़ास है

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सेना
मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल

बच्चों में सेना , सैनिकों के लिए सम्मान और देशप्रेम की भावना जगाने के लिए तजुर्बेकार अध्यापिका कोमल चड्ढा ने एक ऐसी रंग बिरंगी शुरुआत की है, जो सरहद की पहरेदारी की खातिर, परिवारों से सैकड़ों हज़ार मील दूर तैनात फौजियों के चेहरों पर भी मुस्कान ले आएगी. कोमल चड्ढा मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान हर बार स्थापित की जाने वाली कला दीर्घा की इंचार्ज हैं. उनकी अनुशासनप्रियता, कड़क आवाज़ व अंदाज़ के बावजूद बच्चे उनके आसपास दिखाई देते हैं. कारण है इस महिला में बच्चों के स्वभाव की एक अच्छी परख होना जो उनको अलग अलग उम्र और पृष्ठभूमि वाले बच्चों को समझने व अपनी बात समझाने में मदद करती है. इस अस्थाई कला दीर्घा के बीचों बीच छोटी सी मेज के इर्द गिर्द दो तीन कुर्सियों पर बैठ कर या किनारे खड़े होकर अपनी कल्पनाओं और भावनाओं को आकार और रंगों के ज़रिये अभिव्यक्त करते बच्चों के बीच वे दिखाई देती हैं.

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मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल

उनकी ये कोशिश बच्चों में कला और रंगों के प्रति लगाव पैदा करने का एक स्वाभाविक तरीका तो है ही उनमें सेना, सैनिकों , देश भक्ति जैसे विषयों को लेकर जिज्ञासा भी पैदा करती है. इसी जिज्ञासा की खातिर ज़हन में सवाल उठते है और उन सवालों के जवाब जानकारी व ज्ञान बढ़ाने में मदद करते हैं . लिहाज़ा जब इन बच्चों को सेना या देश भक्ति से जुड़े किसी थीम पर ड्राइंग या पेंटिंग बनाने को कहा जाता है है उनके मन में भी कई सवाल उठते हैं लिहाज़ा वे विषय को समझने की कोशिश करते हैं. इससे बच्चों में एकाग्रता , सकारात्मकता और सृजनात्मक व्यक्तित्व विकसित करने में मदद मिलती है.

फौजी परिवार में पली बढ़ी कोमल चड्डा की शादी भी एक फौजी से हुई है. उनके पति राजीव चड्डा भारतीय सेना में कर्नल हैं. सेना उनकी रग रग में हैं . वो कहती हैं , ‘ माय ब्लड इज ग्रीन नॉट रेड ‘ ( मेरे खून का रंग हरा है , लाल नहीं } . दरअसल हरे रंग से उनका इशारा सेना की ‘ ओलिव ग्रीन’ वर्दी के रंग की तरफ है. कोमल चड्डा बच्चों से इस ड्राइंगशीट पर कोई सैनिकों के लिए कोई संदेश लिखने , साथ ही अपना नाम व फोन नम्बर लिखने को भी कहती हैं . इन बच्चों की बनाई गई पेंटिंग दुनिया के सबसे ऊँचें युद्ध के मैदान ‘ सियाचिन ‘ या ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में सरहद पर तैनात सैनिकों को भेजी जाएंगी . सैनिकों को इससे संदेश मिलेगा कि सैंकड़ों मील दूर देश के अलग अलग कौनों में रह रहे वे बच्चे भी उन्हें याद करते हैं. अपनत्व बढ़ाने वाली ऐसी भावना उन सैनिकों की हौसला अफजाई भी करती है. सैनिक भी चाहेंगे तो उन बच्चों से या परिवारों से सम्पर्क कर अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकेंगे.

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मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल

ड्राइंग – पेंटिंग कर रहे बच्चों को वो तब गाइड करती हैं जब बच्चे कुछ समझना चाहते या उलझ जाते हैं. पास खड़े अभिभावकों या परिवार वालों को वो बच्चों को निर्देश देने से मना करती हैं , ‘ आप उनको न बताए, उनको जैसा ठीक लगता है बनाने दें .’ जब बच्चे ड्राइंग पूरी कर लेती हैं तो कभी कभार कोमल उन बच्चों से ‘ जय हिन्द ‘ का उद्घोष कराती हैं . देश की जय जयकार करने वाले इस उद्घोष के पीछे की भावना को सैनिक परिवारों के बच्चे बखूबी जानते है लेकिन सिविलियन परिवारों के बच्चों में से काफी को इसकी अहमियत का अंदाजा नहीं होता .

चंडीगढ़ में मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत 2017 में हुई थी . ये कला दीर्घा तभी से है और कोमल चड्डा इस काम को देख रही हैं लेकिन बच्चों से ड्राइंग कराना और फिर सियाचिन में तैनात सैनिकों के पास भेजने का आईडिया 2019 में आया. तब तकरीबन 150 ड्राइंग बनाई गई थीं. उसके बाद कोविड 19 संकट के कारण मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल का यहां आयोजन नहीं हुआ. कोमल बताती हैं कि उस साल की बनाई बच्चों की कलाकृतियों और इस बार की ड्राइंग भी सियाचिन साथ ही भेजी जाएंगी.