भारत के हरियाणा राज्य में अम्बाला छावनी में बने ऐतिहासिक काली पलटन पुल का नाम बदल कर विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित जांबाज़ सूबेदार मेजर उमराव सिंह के नाम पर रखा जाएगा. अम्बाला छावनी बोर्ड ने पुल का नाम बदलने का फैसला लिया है. यही नहीं यहीं पर कुछ अरसा पहले ही एक द्वार का नाम भारतीय वायुसेना के जांबाज़ फाइटर पायलट विंग कमांडर अभिनव वर्तमान के नाम पर रखने वाले अम्बाला छावनी बोर्ड ने कुछ और स्थानों के नाम भारतीय सेना के बहादुर सैनिकों या शहीदों के नाम पर रखने की योजना बनाई है.
उमराव सिंह की शूरवीरता और शक्ति :
आनरेरी कैप्टन उमराव सिंह यादव हरियाणा के झज्जर के गांव पलड़ा के रहने वाले थे. उनका जन्म 21 नवम्बर 1920 में हुआ था और 19 साल की उम्र में रॉयल इंडियन आर्टीलरी में भर्ती हुए थे. दिसम्बर 1944 में बर्मा में तैनाती के दौरान कलादान की घाटी में जापानी सेना के साथ भीषण मुकाबले में उन्होंने अदम्य साहस, शूरवीरता और सूझबूझ का परिचय दिया था. उमराव तब फील्ड गन डिटैचमेंट कमांडर थे. अपने अकेले के दम पर उन्होंने आक्रमणकारी जापानी सैनिकों के हमले को न सिर्फ रोका बल्कि उनका डटकर मुकाबला करने के साथ तगड़ा जवाब भी दिया. पहले बन्दूक, फिर हथगोलों के बाद आमने सामने की लड़ाई उन्होंने लड़ी. वो एक के बाद एक जापानी सैनिक को धराशायी करते गये. जब तक वो रुके तब तक दस दुश्मनों को वो मार चुके थे.
उमराव सिंह यादव को इस बहादुरी के लिए ब्रिटिश सेना का विक्टोरिया क्रॉस सम्मान दिया गया था जो भारत के परमवीर चक्र के बराबर होता है. भारत सरकार ने ओनेररी कैप्टन उमराव सिंह यादव को 1983 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था. अक्सर ये चर्चा भी सुनने में आती है कि विक्टोरिया क्रॉस सम्मान को खरीदने के लिए कुछ लोगों ने और ब्रिटिश मेडल जमा करने वालों ने उन्हें मेडल के बदले 50 लाख रुपये तक की की पेशकश भी की थी जिसे उमराव सिंह ने ठुकरा दिया था.
जन्म दिन पर ली अंतिम सांस :
बीमार होने पर सेना के आर आर अस्पताल में भर्ती कराये गये कैप्टन उमराव सिंह यादव ने अपने जन्मदिन पर ही आखिरी सांस ली. वो तारीख थी 21 नवम्बर 2005. इस जांबाज़ कैप्टन उमराव सिंह का अंतिम संस्कार झज्जर में उनके गाँव में ही किया गया था.
काली पलटन पुल का नाम क्यूँ :
जिस काली पलटन पुल का नाम बदला जाना है वो अम्बाला छावनी में रेलवे कालोनी की तरफ है जहां भारतीय सेना को रखा जाता था जिसे ब्रिटिश काली पलटन बुलाते थे. क्यूंकि पुल से उस तरफ रास्ता जाता था इसलिए इस पुल को काली पलटन पुल कहा जाने लगा. भारत को अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्ति मिल गई लेकिन इस तरह की शर्मनाक घटनाओं की वजह से रखे गये नाम का जारी रहना दुर्भाग्यपूर्ण है. ये मुद्दा कुछ अरसा पहले अम्बाला छावनी बोर्ड की बैठक में उठाया गया था. बोर्ड के सदस्य कर्नल आर डी देसाई ने पुल का नाम ओनेररी कैप्टन उमराव सिंह यादव के नाम पर रखने का सुझाव दिया था जिसे मान लिया गया.
अब इस सम्बन्ध में आगे की कार्यवाही चल रही है और जल्द ही पुल के नये नामकरण का कार्यक्रम भी होने की उम्मीद है.