नेताजी बोस के साथ सरदार मोहन सिंह को भी याद करना ज़रूरी है

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सुभाष चन्द्र बोस
सुभाष चन्द्र बोस और मोहन सिंह

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 123 जयंती के अवसर पर भारत में जगह जगह विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. भारत की आजादी में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को तरह तरह से याद करने या श्रद्धासुमन भेंट करने के लिए संदेश भी लोग एक दूसरे को भेज रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल होते संदेशों में कुछ लोग इंडियन नेशनल आर्मी यानि आज़ाद हिन्द फ़ौज के गठन के बारे में, शायद कम जानकारी होने के कारण, जाने-अनजान गलत प्रचार भी कर रहे हैं.

असल में आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन सरदार प्रीतम सिंह और मोहन सिंह ने किया था और स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस के नेतृत्व में बनी इन्डियन इंडिपेंडेंस लीग़ के पास किये प्रस्ताव के तहत मोहन सिंह को आर्मी ऑफ़ लिबरेशन फॉर इण्डिया (Army of Liberation for India ) जोकि इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) भी है. ये 1942 के मध्य की बात है जबकि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने इसके साल भर बाद यानि जून 1943 आईएनए को आज़ाद हिन्द फ़ौज के नाम से पुनर्स्थापित किया था.

कौन थे मोहन सिंह :

सरदार मोहन सिंह

पाकिस्तान के पंजाब के सियालकोट में 1989 में जन्मे मोहन सिंह ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय सेना यानि ब्रिटिश इन्डियन आर्मी में 1927 में भर्ती हुए थे. वो 14 पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए थे और ट्रेनिंग के बाद रेजिमेंट की दूसरी बटालियन में तैनात किये गये थे. 1931 में अधिकारी बनाये जाने के तौर पर चुने गये मोहन सिंह को 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए मध्य प्रदेश स्थित किचनर कॉलेज भेजा गया. इसके बाद ढाई साल देहरादून स्थित इन्डियन मिलिटरी अकेडमी (आईएमए) में ट्रेनिंग और पढ़ाई के बाद 1 फरवरी 1935 को उन्होंने कमीशन प्राप्त किया. पहले उन्हें एक साल के लिए ब्रिटिश सेना के साथ बॉर्डर रेजिमेंट की दूसरी बटालियन में तैनात किया गया और फिर फरवरी 1936 में उन्हें 14 पंजाब रेजिमेंट में भेजा गया जो तब झेलम इलाके में थी. अपने ही साथी फौजी की बहन जसवंत कौर से उनका विवाह हुआ था.

इन्डियन नेशनल आर्मी का गठन :

दूसरे विश्व युद्ध के समय में मार्च 1941 को उनकी यूनिट को मलाया (वर्तमान मलेयशिया) भेज दिया गया था. बाद में जब जापानी सेनाओं ने भी विश्व युद्ध में हिस्सा लिया ओर दक्षिण पूर्व एशिया में वर्चस्व कायम करना शुरू किया. इसी दौरान जापान ने बड़ी तादाद में सैनिकों को बंदी बना लिया. तभी एक जापानी सैनिक अधिकारी मेजर फुजिवारा ने, विदेश में रहकर भारत की आजादी के लिए काम कर रहे ज्ञानी प्रीतम सिंह से सम्पर्क साधकर मोहन सिंह को राज़ी किया. उन्होंने बंधक बनाये हज़ारों सैनिक, जिनमें बड़ी तादाद में भारतीय भी थे, मोहन सिंह को सौंप दिए. ये इंडियन नेशनल आर्मी के गठन की शुरुआत थी.

जापानी सैनिक अधिकारी मेजर फुजिवारा के साथ सरदार मोहन सिंह

इसके बाद अलग अलग जगह बंधक बनाये सैनिकों को भी इसमें शामिल कर दिया गया. इसमें फिर और युवक भी आ गये. 1 सितम्बर 1942 को मोहन सिंह इसके जनरल बने. 1915 में ब्रिटिश शिकंजे से बचकर जापान जा बसे, रास बिहारी बोस के नेतृत्व में बनी इंडियन इंडिपेंडेंस लीग ने बैंकाक में 15 -23 जून के बीच हुई कान्फ्रेंस में पास किये गये 35 प्रस्ताव में से एक के मुताबिक़ मोहन सिंह को आर्मी ऑफ़ लिबरेशन फॉर इण्डिया यानि इन्डियन नेशनल आर्मी का कमांडर इन चीफ बना दिया.

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