डायनेमिक्स वेटरंस वेलफेयर एसोसिएशन का गठन , आखिर क्यों बनती हैं पूर्व सैनिकों की संस्थाएं … !

82
डायनेमिक्स वेटरंस वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारी व सदस्य पूर्व सैनिक

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में पूर्व सैनिकों ने  डायनेमिक्स वेटरंस वेलफेयर एसोसिएशन ( dynamics veterans association ) नाम से एक संस्था का गठन किया है . हाल ही में इस संस्था की बैठक हुई जिसमें सुरेंद्र सिंह रावत को अध्यक्ष और बिशन सिंह को महासचिव चुना गया.

एसोसिएशन की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़ संस्था  की कार्यकारिणी समिति में रमेश अरोड़ा  को उपाध्यक्ष , राजेन्द्र सिंह चौधरी को सचिव और  रामवीर चौहान को कोषाध्यक्ष बनाना तय किया गया . इनके अलावा, प्रबंधन और कानूनी क्षेत्र के विशेषज्ञों सहित 12 से 15 सदस्यों की एक सलाहकार समिति भी गठित होगी. सलाहकार समिति पूर्व सैनिकों की समस्याओं के समाधान और भविष्य की योजनाओं पर अपने विचार साझा करेगी.

भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण और एकजुटता के लिए उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के ग्रेटर नोएडा में  बनाए गए इस  संगठन का कार्यालय ग्रेटर नोएडा वेस्ट की गौड़  सिटी 2 ( gaur city 2) में  है .   डायनेमिक्स वेटरंस वेलफेयर एसोसिएशन में , भारतीय सशस्त्र सेवा के तीनों अंगों यानि  थल सेना, वायु सेना और नौसेना के पूर्व सैनिक शामिल हैं. विज्ञप्ति में कहा गया है कि संस्था का मकसद  पूर्व सैनिकों को एक मंच पर लाना और उनके अधिकारों-सम्मान की रक्षा करना है.  राष्ट्र निर्माण की पहलों में सक्रिय भागीदार बनाना भी इस संस्था का  एक मिशन है.

एसोसिएशन विभिन्न सिविल प्राधिकरणों, डीएवी (रक्षा लेखा विभाग), ईसीएचएस (भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना), सीएसडी (कैंटीन स्टोर्स डिपार्टमेंट) और अन्य संगठनों के साथ मिलकर पूर्व सैनिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. यह संस्था न केवल भूतपूर्व सैनिकों की समस्याओं का समाधान करेगी, बल्कि उनके परिवारों का भी समर्थन करेगी और समाज के विकास में उनके समृद्ध अनुभवों का उपयोग करेगी.

पूर्व सैनिकों के संगठन :
भारत में हर साल सशस्त्र बलों के लाखों सैनिक सेवानिवृत होते है और बहुत से समय से पहले स्वेच्छिक सेवामुक्ति ले लेते है. सेना की सेवा छोड़ने वाले सैनिकों में एक बड़ी तादाद शारीरिक रूप से  विकलांगता या रोगी होने  वालों की भी होती है . बरसों तक सैन्य क्षेत्रों में ,  अनुशासित वातावरण और सुचारू व्यवस्था के बीच सेवा करने के बाद पूर्व सैनिकों व् उनके परिवारों का नागरिक जीवन में लौटना उनके लिए अलग तरह की चुनौतियां सामने लाता है. इसके कारण उनको सामाजिक व शासकीय ताने बाने  में तरह – तरह की दिक्कतों  से  दोचार होना पड़ता है . हालांकि इन हालात और पूर्व सैनिकों की समस्याओं के मद्दे नजर केन्द्रीय स्तर पर रक्षा मंत्रालय में विभाग  से लेकर ज़िला स्तर तक संगठन हैं . यही नहीं पूर्व सैनिकों का ख्याल रखने के लिए सभी सेनाओं में अधिकारी भी तैनात रहते हैं लेकिन पूर्व सैनिकों की कई समस्याएं या तो हल  नहीं हो पाती या उनके निदान में देरी होती है . ऐसे में पूर्व सैनिकों को  इस तरह के संगठनों की ज़रूरत महसूस होती है .

राजनीति से नाता :
भारत बहुदलीय व्यवस्था वाला एक लोकतांत्रिक देश है जिसमें  लगभग हरेक  दल सत्ता में बने रहने के लिए वोट बैंक की राजनीति पर निर्भर हो चुका है. और क्योंकि यहां 18 साल के हर नागरिक को स्थानीय पंचायत से लेकर तमाम नागरिक निकायों , विधान सभा से लेकर  सता के शीर्षस्थ केंद्र लोकसभा तक जाने के लिए नेता को चुनने का अधिकार है इसलिए भी पूर्व सैनिक हरेक राजनीति दल के लिए बड़े ‘ वोट बैंक ‘ का काम करते हैं . शायद यह एक बड़ा कारण है जो हरेक सियासी पार्टी ने अपने संगठन में पूर सैनिकों का प्रकोष्ठ बना रखा है .

सैनिक संगठनों के जिला स्तर से लेकर केंद्र स्तर तक के अपने चुनाव भी होते हैं . उनकी अपनी राजनीति भी होती है जिस पर देश की राजनीति तथा विभिन्न दलों का  दखल या असर भी होता है. सेना और सैनिकों के नाम पर राजनीति भी होती है. भारत में राजनीति का यह अवगुण अब किसी से छिपा नहीं है .

काम करने की आजादी :
ऐसे तमाम हालात के मद्दे नज़र भारत में पूर्व सैनिकों के या उनके लिए ऐसी संस्थाएं बनाई जा रही है ताकि पूर्व सैनिक लामबंद हो सकें.  क्योंकि यह संस्थाएं सरकारी नियंत्रण में न  होकर , औपचारिक नियमों से आज़ाद होने के कारण विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा ले सकती हैं या कार्यक्रमों का आयोजन कर सकती हैं , इसलिए इनकी अलग तरह की उपयोगिला भी है . यह एक दबाव समूह का काम भी करता है .