भारत में बच्चियों को हवस और क्रूरता का शिकार बनाये जाने की घटनाओं से आहत देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ जैसा नया नारा दिया है. ‘बेटी बचाओ, बेटा समझाओ’. इस नारे का ज़िक्र उन्होंने अपने माइक्रो ब्लाग में किया है. श्रीमती बेदी केन्द्रशासित प्रदेश पुडुचेरी की उपराज्यपाल हैं और दिल्ली से चुनाव भी लड़ चुकी हैं.
मौजूदा माहौल पर उनकी टिप्पणी है – मासूम बच्चियों पर हमले, शक्तिशाली जगहों पर जमे विकृत/भूखे मर्दों से 1.3 अरब वाले भारत को छुटकारा नहीं मिल पायेगा. लेकिन जिस चीज़ से हमें छुटकारा चाहिए और जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है वो हैं वे कारण जिनकी वजह से आपराधिक प्रवृत्ति वाला हवस में अँधा होकर पाशविक बन जाता है.
पूर्व पुलिस अधिकारी बेदी ने इसके जड़ तक जाने की ज़रूरत बताते हुये कहा है कि ये कारण उनके घरों में हैं. उनके माता पिता, परिवार, उनका समुदाय और टीचर. इसके कारण उस राजनीतिक अपराध न्याय प्रणाली में भी हैं जिसका नेतृत्व पुलिस और जनता के चुने हुए नुमाइंदे करते हैं. क्यूंकि उन पर ही ऐसी प्रवृत्ति का पता लगाने और उसकी रोकथाम करने की ज़िम्मेदारी होती है, इसलिए ये असल नाकामी उनकी है.
श्रीमती बेदी का कहना है कि हरेक घर, परिवार, शिक्षा संस्थान, समुदायिक नेतृत्व और कानून का पालन करवाने के लिए ज़िम्मेदार लोगों को इस संदेश पर जोर देना चाहिए कि महिला बराबरी की हकदार है, हमले के लिए नहीं. उन्होंने लिखा है- हम उस हालत में पहुंच गये हैं जहां ‘बेटी बचाओ, बेटा समझाओ’ की मांग हो रही है.
किरण बेदी कहती हैं कि ये बात लम्बे समय तक, बार बार और नये नये तरीके से जोर देकर कहनी पड़ेगी जब तक कि लोगों की पुरानी और वर्तमान मानसिकता नहीं बदलती और जब तक वो नहीं मानते कि बेटा, बेटी एक समान. श्रीमती बेदी ने अपने ब्लाग में ऐसी घटनाओं को प्रसारित करने के तौर तरीके पर भी सवाल खड़े करते हुए कटाक्ष किया है कि वे इस काम को बायोलोजी की टीचर को करने दें.
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