उत्तर प्रदेश पुलिस की नीति और नीयत को बेपर्दा करती है यह घटनाएं

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ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर आफाक खान
ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर आफाक खान

क्या भारत में पुलिस किसी ख़ास तरीके से किए जाने वाले पूजा पाठ पर विश्वास करती है ? क्या पुलिसकर्मियों के लिए  कोई आधिकारिक धर्म तय होता है ? बिलकुल स्पष्ट जवाब है कि नहीं.. ऐसा कुछ भी नहीं है .  पुलिस तो क्या भारत में किसी भी वर्दीधारी संगठन का कोई भी धर्म नहीं होता . न ही इसके लिए किसी भी ऐसे संगठन के कार्मिक को मजबूर किया जा सकता है . लेकिन उत्तर प्रदेश में संभवत खाकी वर्दी का धर्म तय कर दिया गया है. यहां  के कन्नौज शहर में तैनात उप  निरीक्षक आफाक खान (afaq khan) का मामला तो कम से कम यह इशारा साफ़ साफ़ करता है.

यातायात के नियमों का पालन कराने के लिए फील्ड में शानदार काम कर रहे उपनिरीक्षक आफाक खान कन्नौज में ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर ( traffic sub inspector ) यानि टीएसआई ( tsi ) हैं. हाल में यहां के कन्या विद्यालय आदर्श इंटर कॉलेज में उन्होंने यातायात जागरूकता के नजरिए से छात्राओं को संबोधित करते हुए ‘ हेलमेट ‘ पहनने के महत्व पर जोर देते हुए मोहम्मद पैगम्बर के उस विचार को साझा किया जो परिवार में बेटी के पैदा होने को शुभ मानता है . उनका यह वीडियो काफी वायरल हुआ.

टीएसआई आफाक खान वीडियो में जो कहते सुनाई दे रहे है वो बात कुछ इस  से है  – पहले क्या होता था अरब में, जिस घर में बेटी पैदा होती थी उसे जिंदा दफन कर दिया जाता था. शादी करना लोग तौहीन समझते थे. मोहम्मद साहब जब आए तो उन्होंने उसका विरोध किया और बेटियों को सुरक्षा देना शुरू किया. जिस घर में बेटी पैदा होती है, वहां रहमत बरसती है.  बेटियों की जिम्मेदारी है कि वो अपने पिता को बिना हेलमेट पहने दुपहिया न चलाने दें . पापा घर से निकले तो बेटी सुनिश्चित करे पापा हेलमेट पहने हों .

इसे मुद्दा बनाकर कुछ हिंदूवादी संगठनों के स्थानीय नेता कन्नौज के एडीशनल एसपी अजय कुमार के पास पहुंच गए और टीएसआई आफाक खान को लाइन हाज़िर कर दिया गया. यही नहीं इस वीडियो को आधा दिखाकर कुछ तत्व ऐसा दर्शा रहे है जैसे आफाक खान मोहम्मद पैगम्बर की अथवा इस्लाम की शिक्षा का प्रचार कर रहे हों. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने कुछ इसी प्रभाव में  या  दबाव में आकर सब इंस्पेक्टर आफाक खान के खिलाफ कार्रवाई कर डाली .

कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को कन्नौज में पुलिस ने गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया
कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को कन्नौज में पुलिस ने गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया

अगर किसी  वर्दीधारी संगठन के कर्मी का वर्दी पहनकर  किसी धार्मिक आयोजन में जाना या धार्मिक बात करना अथवा किसी धर्म विशेष का प्रचार करना नियम विरुद्ध है तो यूपी पुलिस में ही ऐसे कितने ही प्रकरण हैं जहां सनातनी या हिन्दू तौर तरीके से किए जाने वाले कार्यक्रमों में पुलिस अधिकारियों ने खुल कर हिस्सा लिया.  लेकिन उनके मामले में विभाग का ऐसा रुख कभी दिखा. हाल ही में बहराइच में तो सनातनी कथा वाचक पुंडरीक गोस्वामी को पुलिस परेड ग्राउंड में पुलिसकर्मियों को सम्बोधित करने  के लिए न सिर्फ आमंत्रित किया गया बल्कि पुलिस की तरफ से सलामी ( guard of honour) भी दिया गया. खुद एसपी राम  नयन सिंह ने सलामी में शामिल हुए. यही नहीं कथा वाचक पुंडरीक गोस्वामी  के कार से उतरने से रेड कारपेट वेलकम , सलामी मंच पर आने को वीडियो शूट भी हुआ. नवंबर की इस घटना को लेकर आँखें मूंदे रहे यूपी पुलिस के अफसरों को इस पर कार्रवाई करने की सुध आई लेकिन इसे मात्र स्पष्टीकरण मांगने तक ही सीमित रखा गया. राम नयन सिंह पीपीएस अधिकारी के तौर पर भर्ती हुए थे और 2016 में उनको आईपीएस अधिकारी ( indian police service officer ) बनाया गया था.

कावड़ियों की सेवा करते पुलिस अधिकारी
कावड़ियों की सेवा करते पुलिस अधिकारी

इससे पहले  यूपी के ही एक अन्य पीपीएस अधिकारी अनुज चौधरी का एक धार्मिक कार्यक्रम में भजन गाने का वीडियो खूब  वायरल हुआ था. तब अनुज चौधरी सर्कल अधिकारी ( circle officer ) थे जो अब तरक्की पाकर एएसपी बनाए गए हैं .   अधिकारी की व्यक्तिगत बात तो अलग उत्तर प्रदेश की पुलिस तो सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्रा के आयोजन के दौरान कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा तक करती है. ऐसे कितने ही वीडियो और फोटो वायरल हुए हैं जिनमें  यूपी पुलिस के अधिकारी कांवड़ियों की सेवा करते दीखते हैं. शिविरों में पहुंचे घायल कांवड़ियों के पैरों में दवा या मरहम आदि लगाते खूब फोटो तक खिंचवाते हैं . होली के आयोजन में शामिल होते वर्दी धारी यूपी पुलिस के तो कई फोटो व वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं . लेकिन इन तमाम मामलों में कभी किसी के खिलाफ नियमों के उल्लंघन करने और फलस्वरूप  कार्रवाई होने की बात कभी भी देखी सुनी नहीं गई.

टीएसआई आफाक खान के केस में  एक दलील यह भी सुनने में आई है कि उन्होंने पुलिस की  सोशल मीडिया पालिसी के नियमों को तोड़ा है . जबकि असलियत एकदम उलट है . खुद यूपी पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध , 8 फरवरी 2023 तिथि से लागू , सोशल मीडिया पालिसी के मुताबिक़ आफाक खान का संबोधन उल्लंघन के दायरे में नहीं आता. सात पन्नों की इस पॉलिसी में पेज नम्बर 6 में सबसे ऊपर बिंदु में उल्लेखित है कि – पुलिसकर्मियों के द्वारा अपने कार्य सरकार को प्रभावित किए बिना कर्तव्य निर्वहन , जन सेवा , मानवतापूर्ण कार्यों एवं व्यक्तिगत उपलब्धि से संबंधित पोस्ट , फोटो /वीडियो को अपने व्यक्तिगत सोशल मीडिया एकाउंट से साझा किया जा सकता है .

वर्दी पहने मंच पर भजन गाते तत्कालीन सीओ अनुज चौधरी
वर्दी पहने मंच पर भजन गाते तत्कालीन सीओ अनुज चौधरी

आम लोगों को ट्रैफिक नियमों का पालन करने और सुरक्षित तरीके से वाहन चलाने को लेकर आफाक खान की असंख्य वीडियो और पोस्ट सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं . इनमें  न तो वे किसी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतीत होते हैं और उनकी भाषा व कंटेंट भी शालीन होता है. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यू ट्यूब पर उनके सब्सक्राइबर्स की संख्या 85 हजार से ऊपर है और इंस्टाग्राम पर तो उनके फॉलोअर्स की तादाद 1 मिलियन यानि दस लाख की गिनती भी पार कर चुकी है जो किसी भी अच्छी खासी सेलेब्रिटी के फैंस की होती है . यातायात प्रबन्धन संबंधी अपनी ड्यूटी करते वक्त आफाक खान लोगों को यातायात के नियम और उनका महत्व समझाते हैं ,  नियम तोड़ने वाले चालकों को उनकी गलती का अहसास कराते हैं , लोग न सिर्फ गलती कबूल करते हैं बल्कि कई दफा आफाक खान की इसके लिए तारीफ़ भी करते हैं. ज़रूरी होने पर सज़ा के तौर पर जुर्माना भी करते हैं यानि चालान भी काटते हैं. इन सबको वीडियोग्राफ कर वे सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करते हैं. कई दफा चालक अपना वाहन रोक उतरकर उनसे  मिलने भी आते हैं. कुछ बच्चे आफाक खान से प्रेरित होकर या प्रभावित होकर सम्मान पूर्वक उनके पांव तक छूते हैं .

इन्स्टा ग्राम पर उनकी 1700 से ज्यादा पोस्ट हैं. ज़ाहिर सी बात है कि इस तरह के एकाउंट को फलने फूलने में , कंटेंट बनाने और लोकप्रिय होने में एक लंबा अरसा लगा होगा .  ज़्यादातर वीडियो में वे वर्दी में दिखाई देते हैं . ऐसे में अब इतने दिन के बाद  उनके खिलाफ कार्रवाई करने में , नियम टूटने की यह दलील भी हजम नहीं होती कि उनके सोशल मीडिया अकाउंट के बारे में अभी पता चला. वैसे भी यूपी पुलिस के ही कई अधिकारियों के सोशल मीडिया पर ऐसे अकाउंट हैं जहां वह वर्दी में होते हुए भी वीडियो /फोटो आदि वाली पोस्ट साझा करते हैं .

इस पूरे मामले का विश्लेषण करने से इशारा तो यही मिलता है कि उत्तर प्रदेश के आला  अधिकारी कई तरह के फैसले लेने या न  लेने,  या फिर देर से लेने में इस पहलू का हमेशा ख्याल रखते हैं कि कहीं उस फैसले से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को लाभ या नुक्सान तो नहीं होता..!  और अगर ऐसा बार बार साबित होता दिखाई देता है तो यह किसी भी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश की व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है जिस पर कार्यपालिका के साथ साथ न्यायपालिका को भी सोचना और काम करना होगा . वरना वर्दीधारी संगठनों का तानाशाही प्रवृत्ति रूप बनता जाएगा या वो ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाले विचार की चपेट में आ जाएंगे .