खुद वाईएस डडवाल को नहीं पता था कि वह पुलिस कमिश्नर बना दिए गए हैं

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युद्धवीर सिंह डडवाल
युद्धवीर सिंह डडवाल

दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर, सशस्त्र सीमा बल के महानिदेशक और अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के सलाहकार रहे युद्धवीर सिंह डडवाल के बारे में कुछ दिलचस्प घटनाएं दिल्ली में नवभारत टाइम्स के मेट्रो एडीटर रहे वरिष्ठ पत्रकार दिलबर गोठी ने साझा किये हैं. उन्ही की कलम से :

युद्धवीर सिंह डडवाल से मेरा परिचय तब हुआ था जब वह पूर्वी जिले के डीसीपी (पुलिस उपायुक्त – DCP) थे. झील कुरंजा, गीता कॉलोनी में उस वक्त एक बड़ा अग्निकांड हुआ था. अग्निकांड की वजह असल में आसपास किसी पेट्रोल पम्प का न होना था. ऑटो रिक्शा मरम्मत की एक बड़ी मार्केट वहां तब भी थी और आज भी है. उन दिनों ऑटो पेट्रोल से ही चला करते थे. ऑटो वाले मरम्मत के लिए ऑटो वहां लाते थे और कई बार पता चलता था कि पेट्रोल नहीं है. इंजन के पार्ट्स की सफाई के लिए भी पेट्रोल की जरूरत होती थी. इसलिए वहां अवैध रूप से पेट्रोल बेचने का धंधा जोरों पर चल रहा था. ज्यादातर दुकानों में काउंटर पर ही पेट्रोल की बोतलें सजाकर रखी जाती थी.

युद्धवीर सिंह डडवाल
वृत्तांत के लेखक पत्रकार दिलबर गोठी के साथ मुलाक़ात जब वाईएस डडवाल दिल्ली पुलिस कमिश्नर बने ही थे

जो अग्निकांड हुआ, वह भी पेट्रोल बेचने वाली एक दुकान में ही हुआ था जिसमें कई लोगों की जान गई थी. पुलिस पेट्रोल की अवैध मार्केट को खत्म कराने में सफल नहीं हो पा रही थी. बड़े पुलिस अफसर मौके पर पहुंचते थे तो उसकी सूचना पहले ही मार्केट में पहुंच जाती थी. एक दिन डडवाल साहब ने टू व्हीलर स्कूटर लिया और बिना किसी को बताए खुद ही झील कुरंजा और गीता कॉलोनी स्कूटर पर पहुंच गए. आम आदमी की तरह जायजा लिया. देखा कि कहां-कहां और कैसे पेट्रोल बिक रहा है. पुलिस की भूमिका को भी देखा और उसके बाद जो कार्रवाई हुई वह काफी सख्त थी. उन्होंने समस्या की गहराई में जाते हुए यह सिफारिश की कि इलाके में दो पेट्रोल पंप खोले जाएं और इस पर अमल भी हुआ. तब कहीं जाकर इस समस्या पर काबू पाया जा सका. ऐसा था वाई.एस. डडवाल का काम करने का तरीका. इस खबर से उनसे परिचय हुआ तो फिर संपर्क बढ़ता गया.

2007 में दिल्ली का पुलिस कमिश्नर कौन बनेगा? इस सवाल का जवाब कोई ढूंढ नहीं पा रहा था. एक तरफ किरण बेदी जैसी शख्सियत जो देश-विदेश में नाम कमा चुकी थी (हालांकि कई विवाद भी थे) लेकिन दूसरी तरफ लो प्रोफाइल में रहने वाले वाई.एस. डडवाल. लोगों को उम्मीद थी कि किरण बेदी ही बाजी मारेंगी लेकिन इसमें बाजी मारी डडवाल ने.

जिस दिन दिल्ली पुलिस के कमिश्नर का फैसला होना था, काफी गहमागहमी थी. शाम को करीब 6 बजे मुझे होम मिनिस्टरी के एक सोर्स से पता चला कि डडवाल साहब का नाम क्लीयर हो गया है. मैंने उन्हें फोन करके बधाई दी. तब तक उन्हें सूचना नहीं थी और उनका कहना था कि मुझे अभी कुछ नहीं पता. इसलिए वह बधाई लेने में भी कतरा रहे थे लेकिन एक घंटे बाद उन्होंने मुझे फोन करके बताया कि खबर ठीक है और होम मिनिस्टरी से बुलावा आ गया है.

डडवाल साहब को सख्त पुलिस अफसर के साथ-साथ मैं जानता हूं कि वह सिद्धांतों वाले आदमी भी थे. 15 मई 2009 को मेरी बेटी की शादी थी जिसमें जाहिर है कि मैंने डडवाल साहब को भी न्योता दिया था. आमतौर पर वह शादियों जैसे सार्वजनिक समारोहों में नहीं जाते थे. वजह यह थी कि अक्सर ऐसे सार्वजनिक समारोहों में हर तरह के लोग होते हैं. वे वहां प्रभावशाली लोगों के साथ फोटो भी खिंचवा लेते हैं और फिर अपनी शान के लिए या फिर किसी और लाभ के लिए उसका इस्तेमाल भी कर सकते हैं. कई बार मीडिया में ऐसी फोटो छपती रही हैं जिसमें कोई पुलिस अफसर या नेता संदिग्ध व्यक्ति के साथ किसी समारोह में नजर आता है तो उस पर काफी विवाद भी होता है.

बहरहाल, डडवाल साहब शादी में पहुंचे. मेरी बेटी की शादी 15 अशोक रोड पर हुई जो सज्जन कुमार के भाई सांसद रमेश कुमार को अलॉट कोठी थी. शादी में सज्जन कुमार भी मौजूद थे और जगदीश टाइटलर भी. दोनों पर 84 दंगों में शामिल होने के आरोप लगते रहे थे. वे लॉन में रखे सोफों पर बैठे थे. डडवाल साहब पहुंचे तो मैं उनका स्वागत करते हुए उन्हीं सोफों की तरफ ले जाने लगा. डडवाल ठिठके और वहीं रुक गए. मेरे कान में बोले-मुझे इन लोगों के साथ मत बिठाओ. मैं भी फौरन सारी बात समझ गया और फिर उन्हें सीधा उस कमरे में ले गया जहां बिटिया तैयार होकर बैठी थी. डडवाल साहब ने वहीं पानी पिया और फिर कुछ देर रुक कर चले गए.

अब अचानक उनके निधन की खबर आई तो विश्वास नहीं हुआ. हालांकि पिछले कुछ अरसे से उनसे संपर्क नहीं हुआ था. यों भी कोरोना काल ने सभी संपर्कों को सीमित कर दिया है. एक ईमानदार, काम के पक्की धुन वाले और सिद्धांतों वाले इंसान को मेरी तरफ से श्रद्धांजलि.