इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक केरल के वायनाड में भूस्खलन त्रासदी 358 लोगों के प्राण लील चुकी थी और 250 से ज्यादा के लापता होने की सूचना थी. मलबे में इंसानों के निकाले गए शवों , बिखरे मानवीय अंगों और मदद के लिए पुकार करते घायलों का भयावह दृश्य था . ज़ख्मियों और दबे हुए लोगों को सुरक्षित तरीके से निकाल ईलाज मुहैया कराने के लिए चल जद्दोजहद चल रही थी. त्रासदी के इस मंजर के बीच चीत्कारों , आंसुओं के सैलाब के डरावने और शोक से भरे इस माहौल में भी कुछ ऐसी तस्वीरें दिखाई दे रहीं थी जो दिलासा देती थीं , हिम्मत , हौंसले और सकारात्मकता पैदा कर रही थीं. चुनौतियों और तकलीफों से भरपूर इस माहौल में भी यह तस्वीरें हल्की सी मुस्कराहट का बायस बनती हैं . यह तस्वीरें उन सैनिकों और वालंटियर्स की हैं जो राहत व बचाव के काम में लगे हैं . ऐसे ही तस्वीरों में हटकर एक तस्वीर भारतीय सेना की मेजर सीता अशोक शेलके की दिखाई दी.
एक तस्वीर में भारतीय सेना के मद्रास इंजीनियर ग्रुप ( madras engineer group ) की 70 पुरुष सदस्यों की टीम में एकमात्र महिला अधिकारी हैं मेजर सीता अशोक शेलके वायनाड के भूस्खलन ( wayanad landslide ) से प्रभावित चूरलमाला गांव में नवनिर्मित बेली ब्रिज की रेलिंग पर गर्व से खड़ी हैं . मेजर सीता की इन तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर लोगों का खासा ध्यान आकर्षित किया है. तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म भारतीय सेना और अधिकारी को उनकी बहादुरी और प्रतिबद्धता के लिए बधाई संदेशों से भरे पड़े हैं, क्योंकि आपदा की तबाही की कई तस्वीरों के बीच मेजर शेलके की तस्वीरें सबसे अलग हैं.
दरअसल जिस पुल पर मेजर सीता अशोक शेलके खड़ी हैं वह उनके नेतृत्व में सैनिकों ने मलबे, उखड़े हुए पेड़ों और तेज बहती नदी को पार करते हुए सिर्फ 31 घंटों के रिकॉर्ड समय में बना डाला . इन तस्वीरों में मेजर सीता अशोक शेलके की सैनिकों के साथ वो तस्वीरें भी हैं जिसमे सब लोग मिलाकर पुल ( beily bridge) निर्माण में जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं . राहत और बचाव के काम में इस पुल का निर्माण बेहद महत्वपूर्ण रहा.
साहसी सैनिक आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लगातार काम कर रहे हैं और वहां की हर तरह की ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं. यही नहीं यहां सेना नींद और यहां तक कि नियमित भोजन भी त्याग रही हैं. ऐसे में मेजर सीता और उनकी टीम ने अथक परिश्रम किया है ताकि कई लोगों को बचाया जा सके और शवों को बिना किसी देरी के बरामद किया जा सके. भारी बारिश और पुल निर्माण के लिए सीमित जगह के कारण पुल निर्माण में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इन बाधाओं के बावजूद, मेजर शेल्के और उनकी टीम ने पुल का सफल निर्माण सुनिश्चित किया, जो चल रहे बचाव कार्यों के लिए इकलौता रास्ता बना हुआ है.
एक प्रशिक्षित इंजीनियर मेजर सीता अशोक शेलके (major sita ashok shelke ) महाराष्ट्र के अहमदनगर के गादिलगांव गांव की रहने वाली हैं . अहमदनगर के ही एक कॉलेज से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की. दरअसल मेजर सीता के पिता अशोक भीकाजी शेलके पेशे से वकील हैं और मेजर सीता यूपीएससी की परीक्षा पास करके भारतीय पुलिस सेवा ( indian police service ) की अधिकारी बनना चाहती थीं. खैर इसी दौरान उन्होंने दिशा बदली और सेना की तरफ उनका रुझान हुआ. तीन बार के प्रयासों के बाद एसएसबी में कामयाबी मिली और मेजर सीता चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकेडमी ( OTA chennai) से प्रशिक्षण पूरा करके 2012 में सेना का हिस्सा बनी.
मेजर सीता को इंजीनियरिंग और सेना में करियर अपनाने पर परिवार की तरफ से भरपूर साथ मिला. मेजर सीता की संकल्प शीलता , दृढ़ता , साहस और मेहनत करने व कराने का जज्बा एक मिसाल है. यह बहुतों के लिए प्रेरणा भी है. खासतौर से उन लड़कियों के लिए जो सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहती हैं.
मेजर सीता अशोक शेलके सेना की जिस यूनिट में हैं उसे सेना के लिए रास्ता साफ करने, पुल बनाने और युद्ध के दौरान बारूदी सुरंगों को खोजने और उन्हें निष्क्रिय करने जैसे अन्य कई तरह के चुनौतीपूर्ण काम सौंपा जाते है. इसके अलावा, यूनिट प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तत्काल बचाव कार्यों में भी मदद करती है. केरल में 2018 की बाढ़ के दौरान भी यह इकाई बहुत सक्रिय थी.
भारतीय सेना ने सूजीपारा हिल्स से दो घायल स्वयंसेवकों को निकाला :
सुजीपारा हिल्स से मराठा लाइट इन्फैंट्री (एमएलआई) की घातक टीम ने हेलीकॉप्टर के ज़रिये बेली ब्रिज के पास चूरलमाला में फंसे हुए पाए गए दो स्वयंसेवकों सलीम (36 वर्ष) और मुहसिन (32 वर्ष) को निकाला . यह दोनों वालंटियर्स तब घायल हो गए, जब वे सूजीपारा हिल्स में शवों को निकालने के काम में लगे थे. दोनों एक दिन पहले उस स्थान पर चढ़े और चढ़ने के दौरान अपने पैरों में ज्यादा चोट लगने के कारण नीचे नहीं आ सके.