भारत के पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ( general manoj mukund naravane) की आत्मकथा ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ ( मुकद्दर के चार सितारे ) का ब्यौरा तो ऑनलाइन बिक्री करने वाले पोर्टल अमेजन , फ्लिपकार्ट आदि पर तो है लेकिन किताब फिलहाल पाठकों के लिए उपलब्ध नहीं है. पोर्टल पर टिप्पणी में स्पष्ट लिखा है कि यह उपलब्ध नहीं है . साथ ही यह भी लिखा है – हमें नहीं पता कि यह आइटम कब स्टॉक में होगा और होगा भी या नहीं.
‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ ( four stars of destiny ) को छपे साल भर से ज्यादा का अरसा हो चुका है. इसकी कुछ प्रतियां ही छपी थीं लेकिन पूरा स्टॉक वापस ले लिया गया.
भारतीय सेना के शीर्ष पद चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ( chief of army staff ) से सेवानिवृत्त हुए जनरल नरवणे ने अपनी किताब पर लगी सरकार की रोक पर अब चुप्पी तोड़ी है . उन्होंने कहा मेरा काम किताब लिखना था जो मैंने किया , बाकी काम प्रकाशक और रक्षा मंत्रालय का है .
जनरल नरवणे ने यह टिप्पणी हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह साहित्य महोत्सव के एक सत्र के बाद की, जहां उनकी नवीनतम काल्पनिक कृति, “द कैंटोनमेंट कॉन्सपिरेसी: अ मिलिट्री थ्रिलर” पर रियर एडमिरल ( सेवानिवृत्त) निर्मला कन्नन के साथ चर्चा हुई थी.
साहित्यकार और पत्रकार खुशवंत सिंह को कसौली बहुत पसंद था और वे अक्सर यहां अपने आवास में रहने दिल्ली से आया करते थे . उनकी याद में यह साहित्य महोत्सव हर साल मनाया जाता है जिसमें जाने माने साहित्यकार , लेखक शामिल होते हैं. पुस्तकों पर चर्चा भी होती है .
शनिवार को जनरल नरवणे और रियर एडमिरल ( सेवानिवृत्त) निर्मला कन्नन के बीच चर्चा के बाद , महोत्सव में आए एक अतिथि ने जब यह पूछा कि उनकी “फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी” अब तक प्रकाशित क्यों नहीं हुई तो उन्होंने कहा, “मेरा काम किताब लिखकर प्रकाशकों को देना था. प्रकाशकों को ही रक्षा मंत्रालय से अनुमति लेनी थी. उन्होंने ही उन्हें यह (किताब) दी. यह समीक्षाधीन है.” यह अभी भी एक साल से ज़्यादा समय से समीक्षाधीन है.
क्या है ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में ?
आखिर ऐसा क्या है ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में जिसे लेकर भारत सरकार और उसके रक्षा मंत्रालय ( ministry of defence ) ने समीक्षा करने के नाम पर रोक लगा रखी है . दो चार महीने नहीं , साल भर से ज्यादा का अरसा हो चुका है लेकिन रक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञ एक ऐसी किताब की मंज़ूरी पर निर्णय नहीं ले पा रहे जो सेना के शीर्ष पद पर रहे अधिकारी ने लिखी है और वो भी उस विषय पर जिसकी उनको भरपूर समझ है . स्वाभाविक है कि इस ओहदे पर रहा ज़िम्मेदार , अनुभवी और अलंकृत अधिकारी ऐसा तो कुछ नहीं सार्वजनिक करेगा जो देशहित में न हो . किताब भी प्रसिद्ध और ज़िम्मेदार माने जाने वाले प्रकाशकों में से एक ‘ पेंगुइन ‘ ने छापी है . तो फिर क्या कारण हो सकते हैं कि इतने लम्बे अरसे से छपी हुई यह किताब सार्वजनिक बिक्री के लिए मंज़ूर नहीं की जा रही.
जनरल मनोज मुकुंद नरवणे भारतीय सेना के अट्ठाईसवें प्रमुख बने. उन्होंने दिसंबर 2019 से अप्रैल 2022 तक सेना की कमान संभाली. यह वो चुनौती भरा दौर था जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस संक्रमण काल से दो बार गुज़री. जम्मू कश्मीर में भीतर और उससे सटी पाकिस्तान सीमा पर तनाव तो था ही चीन ने भी लदाख में गलवान घाटी में घुसपैठ की. इसी दौरान सरकार ने अग्निवीर योजना लागू करने का भी फैसला लिया. भारत के पहले चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ बिपिन रावत और उनकी पत्नी की हेलिकॉप्टर हादसे में मौत भी जनरल नरवणे के कार्यकाल में दुर्भाग्यपूर्ण घटना रही. स्वाभाविक है कि जनरल नरवणे के पास उनके समृद्ध अनुभव, संस्मरण और ढेरों जानकारियां हैं जो बहुत से पाठकों , सैनिकों , प्रशासकों , रक्षा विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण सामग्री हो सकती है .
जनरल नरवणे और उनकी किताब के बारे में बिक्री पोर्टल और विशेषज्ञ क्या कहते है :
जनरल मनोज मुकुंद नरवणे 2019 में भारतीय सेना के अट्ठाईसवें प्रमुख बने. भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने का उनका सफ़र रोमांचक और चुनौतीपूर्ण दोनों ही घटनाओं से भरा रहा है .
अपने संस्मरणों में, जनरल नरवणे उन असंख्य अनुभवों का वर्णन करते हैं जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया, उनके बचपन से लेकर सेवाकाल और उसके बाद के वर्षों तक. सिक्किम में एक युवा अधिकारी के रूप में चीनियों के साथ उनकी पहली मुठभेड़ से लेकर गलवान में उनसे निपटने तक ( जब वे सेना प्रमुख थे ) , नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी की दैनिक घटनाओं से लेकर पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम लागू करने तक, जनरल नरवणे हमें अपने चार दशकों से ज़्यादा के विशिष्ट करियर से रूबरू कराते हैं, जिसमें उन्होंने देश के सभी कोनों में सेवा की. यह उन चीज़ों पर एक विशेषज्ञ का दृष्टिकोण है जो हमारी सेनाओं को विशिष्ट बनाती हैं, विशेष रूप से वे जो अभियानों की योजना और संचालन से संबंधित हैं – जो सेना का अस्तित्व का कारण है.
फोर स्टार्स ऑफ़ डेस्टिनी में, जनरल नरवणे सार्वभौमिक प्रयोज्यता वाले नेतृत्व और प्रबंधन के सबक साझा करते हैं, और हमें एक आंतरिक दृष्टिकोण देते है कि अपने सशस्त्र बलों को इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक राष्ट्रीय शक्ति के तौर पर जयादा मज़बूत ज़रिया बनाने के लिए और क्या करने ज़रूरत है . जनरल नरवणे का जीवन और करियर विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक शक्ति और लचीलेपन, परिवार के महत्व और कार्य-जीवन संतुलन को दर्शाता है—ऐसा कुछ जो आज की चौबीसों घंटे काम करने वाली कार्य संस्कृति में नजरअंदाज हो गया है.
और भी कुछ:
फोर स्टार्स ऑफ़ डेस्टिनी के ब्लर्ब ( कवर के पिछले हिस्से ) पर किताब के बारे में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल ( सेवानिवृत्त ) वी पी मलिक ने टिप्पणी की है. उन्होंने भारत चीन के बीच गलवान में हुई झड़प से पहले और बाद में पूर्वी लदाख में हुए संघर्ष के दिए गए ब्यौरे की प्रशंसा की है . कसभा सदस्य और लेखक शशि थरूर ने भी इस किताब पर अपनी राय व्यक्त करते हुए लिखा है कि यह प्रेरणादायक है और विचारोत्क है जिसे हरेक पीढ़ी को पढ़ना चाहिए. कुछ अन्य विशेषज्ञों के टिप्पणियां भी इसमें हैं जो इस किताब को एक शानदार लेखन कार्य बताती है .