सैनिकों की जुबानी इतिहास बताता है ‘फौजी डेज़’

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'फौजी डेज़'
चंडीगढ़ में मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में ' फौजी डेज़ ' नाम का ये शाहकार लांच किया गया.

हरेक सैनिक अपने भीतर असंख्य कहानियां लिए जीता है. अपने अनुभव पर आधारित ऐसी घटनाएं जो किसी के लिए भविष्य में सबक तो किसी के लिए प्रेरणा बन सकती हैं. इनमें कुछ निजी तो कुछ सैन्य जीवन के दिलचस्प और रोमांचक किस्से भी होते हैं जिनका नतीजा कभी कामयाबी तो कभी नाकामी के तौर पर सामने आता है. आम तौर पर हरेक सैनिक के पास सुनाने को ऐसा होता है जो बहुतों के लिए ज्ञान पाने या मनोरंजन का कारण बन सकता है लेकिन कइयों के पास तो सूचनाओं, जानकारियों का ऐसा खज़ाना भी होता है जो इतिहास बनाने में अहम साबित हो सकता है.
अफसोसनाक ये है कि कुछ एक सैनिक ही या यूं कहें कि विशेष तौर पर अधिकारी ही अपने उन अनुभवों को किताब या लेख के तौर पर लिख पाने के अवसर पा पाते हैं. किसी को लिखना नहीं आता तो कोई हिचकता है, किसी को समझ नहीं आता कि अपनी बात कहां और कैसे लोगों तक पहुंचाई जा सके. लिहाज़ा फौजी जीवन के बहुत सारे किस्से और घटनाएं वो सदा के लिए अपने साथ लेकर इस दुनिया से रुखसत हो जाता है. या फिर गिने चुने लोगों के साथ ही उसने वो बातें साझा की होती हैं.

'फौजी डेज़'
चंडीगढ़ में मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में ‘ फौजी डेज़ ‘ नाम का ये शाहकार लांच किया गया.

अगर आप भी एक सैनिक रहे हैं और आपके पास भी कहने को कुछ है जो आपको लगता हो कि अनूठा है, मजेदार है या औरों के लिए किसी भी तरह से फायदेमंद है तो आपके लिए विशेष मौका है. चंडीगढ़ के प्रकाशक और ब्राउज़र बुक स्टोर के मालिक पंकज पुनीत सिंह व उनकी टीम आपकी बातें ऑडियो वीडियो कैमरे पर रेकॉर्ड करके उसे डिजिटल प्लेटफार्म फौजी डेज़ (fauji days) पर दिखाएगी. तो बात सैंकड़ों – हज़ारों लोगों तक पहुंचेगी. इसके लिए आपको कुछ खर्च भी नहीं करना.

प्रकाशक पंकज पुनीत सिंह की टीम ने हाल ही में चंडीगढ़ में मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में ‘ फौजी डेज़ ‘ नाम का ये शाहकार लांच किया है. फौजियों की पंचाट में उनके मुकदमों की पैरवी करने वाले वकील मेजर नवदीप सिंह भी पंकज को इस काम में सहयोग कर रहे हैं. ये एक तरह से सैनिकों की जुबानी मौखिक इतिहास की लांचिंग कही जा सकती है. इस अवसर पर लेफ्टिनेंट जनरल हरवंत सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल कमल डावर भी विशेष रूप से उपस्थित थे.

‘ फौजी डेज़ ‘ शाहकार की शुरुआत उन मेजर डी पी सिंह से की गई है जिन्होंने सैन्य ऑपरेशन के दौरान शरीर पर इतने ज़ख्म खाए कि उनकी गिनती करना भी असम्भव है. हालत ये थी कि डॉक्टरों ने तो उनको घायल अवस्था में ही मृत घोषित कर डाला था. हालांकि डॉक्टरों की कोशिशों और अपनी इच्छा शक्ति के बूते न सिर्फ मौत को मात दे सके बल्कि अब नकली टांग के बूते मेजर डीपी सिंह मैराथन दौड़ कर अच्छे अच्छों को चौका देते है. वे भारत के पहले ब्लेड रनर हैं.