
मैं 28 वर्ष पहले का संस्मरण आप लोगों से शेयर कर रहा हूँ. आज ही का दिन था जब 24 मई 1992 को दिल्ली, समीपवर्ती हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के माफिया सरगना तेजपाल ने हवलदार महेंद्र सिंह त्यागी की हत्या पुलिस लाइन मेरठ में करायी थी.
1990 में तेजपाल ने पटियाला हाउस कोर्ट में माफिया बब्बू त्यागी की हत्या की थी. उसके बाद त्यागी और तेजपाल गूजर गैंग के बीच ऐसा गैंगवार छिड़ा कि दिल्ली, समीपवर्ती हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश लहूलुहान हो गया और दोनों तरफ़ से तीन दर्जन से अधिक बदमाश और गैंग के सहयोगी मारे गये. तेजपाल को उस समय कांग्रेस के दो केंद्रीय कैबिनेट मंत्रियों का संरक्षण प्राप्त था और वह प्रतिदिन लगभग एक लाख रुपये का गुंडा टैक्स वसूलता था.
मैंने आज के दिन महेंद्र त्यागी के अंतिम संस्कार पर प्रण लिया था कि मै उसे एक महीने में मारकर बदला लूँगा और मैंने बारात बनाकर 22 जून 92 को उसे ग्राम उस्तरा बुलन्दशहर में हुई मुठभेड़ में महीना पूरा होने के दो दिन पहले मार गिराया था. मुझे और मेरे सहयोगी एसआई बृज़पाल सोलंकी को भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा बहादुरी के लिए पुलिस मेडल प्रदान किया गया था. दिल्ली सरकार ने भी मुझे एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया था.

सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फेसबुक पर 24 मई 2020 को साझा किये गये इस संस्मरण और असली जिंदगी के नायकों-खलनायकों की असल जिंदगी और असल ही मौत की ऐसी और बहुत सी कहानियाँ बहुत जल्द लोगों के बीच उस किताब की शक्ल में पहुँचने वाली हैं जिसके लेखक हैं बृज लाल. जी हाँ, अपने जमाने के दबंग पुलिस अधिकारी उत्तर प्रदेश कैडर के 1977 बैच के आईपीएस बृजलाल जो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी के तौर पर रिटायर हुए.

पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ साथ दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में 90 के दशक और उससे थोड़ा पहले उभरे, पनपे और बाद में बड़े सत्ताधीशों के दरबार तक में गहरे घुस गये सरगना माफियाओं की ये कहानियाँ जुर्म की दुनिया से जुड़े कई किस्म के लोगों के लिए सबक भी लिए होंगी. कुछ के राज़ भी खोलेंगी. कुछ नेताओं के भी राज खुल सकते हैं इस रिटायर्ड डीजीपी की किताब से, जो उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति/ जन जाति आयोग के चेयरमैन भी रहे और खुद भी राजनीति से अछूते नहीं रहे. 2015 में वह भारतीय जनता पार्टी में भी शामिल हुए.

सरगना तेजपाल की मौत वाले उपरोक्त संस्मरण से ही जुड़ा हुआ है उस किताब का टाइटल ‘पुलिस की बारात’. दरअसल अपनी तरह की ये अनूठी घटना तब की है जब बृज लाल मेरठ जिले के एसएसपी हुआ करते थे. बुलंदशहर के उस्तरा गाँव में छिपे सरगना की ताक में बृजलाल के नेतृत्व में पुलिस पार्टी बारात की शक्ल में गई थी. वहां तक पहुँचने के लिए गुपचुप तरीके से एक प्राइवेट बस ली गई थी ताकि तेजपाल के खबरियों को पुलिस के आने की भनक तक न लगे और हुआ भी उसी तरह. सब कुछ प्लान के मुताबिक़. यहाँ वही तेजपाल आखिर मारा गया जिसने कानून से बचने के लिए हत्या के मामले में अपने खिलाफ बचे चश्मदीद गवाह उत्तर प्रदेश पुलिस के हवलदार महेंद्र त्यागी की जान ली थी. जब तेजपाल ने अपने प्रतिद्वंद्वी सरगना बब्बू त्यागी पर गोली दागी थी तब महेंद्र त्यागी बब्बू के सुरक्षाकर्मी के तौर पर ड्यूटी पर था और उसे भी गोली लगी थी लेकिन वो बच गया था. मेरठ में महेंद्र त्यागी अपने परिवार के साथ पुलिस लाइंस में रहता था. तेजपाल ने उस केस के सब गवाहों का बन्दोबस्त कर दिया था. आखिर में उसने हवलदार महेंद्र त्यागी की भी जान ले ली. पुलिस लाइन में घुसकर पुलिसकर्मी की ही हत्या कर देना, ये पुलिस तंत्र के लिए चुनौती जैसा थी.

असल में ये तब की घटनाएँ हैं जब पश्चिम उत्तर प्रदेश में गिरोह फिरौती के लिए अपहरण, व्यवसायियों को धमकियां देकर रंगदारी वसूलने, प्रोटेक्शन मनी वसूलने जैसे जुर्म की धड़ाधड़ वारदात के साथ सरकारी निर्माण कार्यों के और शराब के ठेके दिलवाने में भी खूब सक्रिय हो चुके थे. इतना ही नहीं विवादित सम्पतियों को बिकवाने दिलवाने में अपने दखल व बाहुबल का इस्तेमाल भी कर रहे थे. इन्हीं सब गोरख धंधों के बीच होने वाली उनकी आपसी कलह, झगड़े और कम्पीटीशन गैंग वार को भी जन्म दे चुके थे. कहीं न कहीं इनमें सफेदपोश, पुलिस के कुछ अधिकारियो और नेताओं की साठगांठ भी रहती थी जो इन्हें पनाह देकर अपने फायदे के लिए अलग अलग तरह से इस्तेमाल करते थे.

वहीं अपराध और दबंगई के साथ राजनीति की गठजोड़ की कहानी पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो बेहद ज्यादा थी. उन कहानियों के किरदारों से भी आईपीएस बृजलाल का खूब वास्ता पड़ा. क्यूंकि खुद उस इलाके से थे तो हालात वहां के तो उस तरीके से भी समझते थे. इन हालात में तजुर्बों और उनसे निबटने में आजमाये पुलिसिया नुस्खों के रोचक किस्से ‘पुलिस की बारात’ मे पढ़ने को मिलेंगे.

पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल कहते हैं, “पुलिस में काम करने वाले या इस प्रोफेशन से जुड़े लोगों के लिए ही नहीं, ये किताब ‘पुलिस की बारात’ आम पाठकों के लिए भी दिलचस्प होगी”. किताब में असली कहानियाँ असली चित्रों के साथ होंगी. निश्चय ही ऐसी किताब पुलिस का काम, अपराधियों के हथकंडों, अपराध के रुझान आदि जैसे विषयों का अध्ययन करने वालों के लिए एक तरह से संकलन के तौर भी उपलब्ध होगी. बृजलाल कहते हैं, “किताब तो काफी पहले से तैयार है लेकिन इस कोविड संकट और लॉक डाउन के कारण प्रकाशन की दिशा में काम अटक गया”.

असल में अपराधों और अपराधियों से निपटने जैसी कहानियों वाली ‘ पुलिस की बारात ‘ के साथ साथ पूर्व आईपीएस 66 वर्षीय बृजलाल अपने जीवन के संस्मरणों पर आधारित एक किताब और तैयार करे बैठे हैं. नाम है ‘अग्निपथ’. ज़मीन से जुड़े और खेतीबाड़ी के शौक़ीन बृजलाल का जीवन शुरू से ही अभाव की मार झेलता रहा हैं लिहाज़ा उसका संघर्षपूर्ण होना तो स्वाभाविक है.
सबसे दबंग, बाहुबली और राजनीति के घाघ मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के भाई के खिलाफ उन्हीं के राज्य में एफआईआर दर्ज करके दुश्मनी मोल लेने का साहस करने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी बृजलाल एक ऐसे गरीब परिवार में पैदा हुए थे जिसमें अपने बच्चे के स्कूल की फ़ीस देने की भी हिम्मत नहीं थी. बृजलाल उत्तर प्रदेश के दूरदराज़ के इलाके के जिस गाँव में पैदा हुए, वहां तो क्या, आसपास भी स्कूल नहीं था. बृजलाल बताते हैं,” स्कूल पढ़ने के लिए रोजाना पैदल 24 किलोमीटर चलना पड़ता था.” उनका गाँव नेपाल सीमा से चार किलोमीटर के फासले पर ही है. लेकिन पढ़ाई में हमेशा आगे रहने वाले बृजलाल के लिए ऐसे संघर्षों में रास्ते निकल ही आते थे. विज्ञान के छात्र रहे बृजलाल करीब करीब सारी परीक्षाओं में टॉप रैंकिंग वाले नम्बरों के साथ पास होते थे. वह बड़े बड़े फख्र से कहते हैं,” मैंने पूरी पढ़ाई का खर्चा तरह तरह के वजीफे – स्कॉलरशिप से निकाला है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर मुरली मनोहर जोशी से मैंने पढ़ा है.”

दो गैलेंट्री मेडल समेत राष्ट्रपति के पुलिस मेडल से चार बार सम्मानित आईपीएस अधिकारी बृजलाल के पुलिस जीवन में वो भी अजीब मौका आया जब उन्हें ज़रूरत से ज्यादा समय ऐसी पोस्टिंग पर रखा गया जहाँ सक्रिय पुलिसिंग ही नहीं होती थी जबकि विभिन्न जिलों के अनुभव और अहम ओहदों पर रहते हुए वह तेज़ तर्रारी के लिए मशहूर रहे हैं. बृजलाल बताते हैं कि इसी समय में काम में कम व्यस्तता असल में उनकी किताबों और लेखन की सहूलियत भी बनी. उस समय को ही बृजलाल ने किताब के लिए तरह तरह की सामग्री जमा करने में उपयोग किया.