डीएसपी अंजू यादव , जिन्होंने तक़दीर से ज्यादा खुद पर भरोसा कर सपने पूरे किए

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अंजू यादव : तब और अब

सरसरी तौर पर देखें तो यह तस्वीरें दो महिलाओं की दिखाई देती हैं . एक उत्तर भारत के साधारण से ग्रामीण परिवार की महिला की है तो दूसरी खाकी वर्दी में  शान से तन कर खड़ी आत्म विश्वास से लबरेज  पुलिस अधिकारी की . अगर गौर से शक्ल देखें तो पता चलेगा कि चेहरे हुबहू हैं. हालांकि ऐसे में यह जुड़वा बहनों की फोटो लगती हैं लेकिन ऐसा है नहीं . जब तक इस रिपोर्ट को आगे नहीं पढ़ेंगे तब तक यकीन नहीं होगा कि यह दोनों एक ही  महिला की हैं .

जी हां , यह महिला है अंजू यादव जो 37 साल की उम्र में पुलिस विभाग में उपाधीक्षक ( deputy superintendent of police ) यानि डीएसपी हैं . हाल ही में राजस्थान पुलिस सेवा ( rajasthan police service ) के अधिकारियों की पासिंग आउट के दौरान अंजू के जीवन की कहानी खुलकर सामने आई.   हरियाणा की बेटी और राजस्थान की बहू अंजू की  जिंदगी के संघर्ष और उतार चढ़ाव की असलियत जानकर हर कोई हैरान रह जाता है वहीं यह बहुतो के लिए प्रेरणा से भरपूर है . खासतौर से उन महिलाओं के लिए जिनके सपने मजबूरी में दम तोड़ देते हैं .

डीएसपी अंजू यादव

अंजू की पैदाइश 1988 में हरियाणा के नारनौल जिले के एक गांव में रहने वाले साधारण किसान लालाराम के घर हुई जो परचून की एक दूकान भी चलाते हैं. अंजू के बाद उनकी तीन और बेटियां मंजू , संजू और रंजू हुई . सीमित संसाधनों के बावजूद लालाराम ने बेटियों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह निभाई. बारहवीं तक स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ने के बाद अंजू कॉलेज तो न जा सकी लेकिन उन्होंने ग्रेजुएशन घर में ही रहकर दूरस्थ शिक्षा ( distance education ) से की . लालराम ने दोनों बड़ी बेटियों अंजू और मंजू की एक साथ शादी कर दी. अंजू तब 21 साल की थी .  उनके पति नित्यानंद  राजस्थान के बहरोड़ जिले  के परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
शादी के तीन साल बाद अंजू और नित्यानंद के एक बेटा मुकुलदीप पैदा  हुआ लेकिन यह परिवार  सामान्य तरीके से जीवन  नहीं जी पा रहा था. ससुराल में  जिंदगी की कुछ ज़रूरतें पूरी न  होने के कारण अंजू ने अपना और बेटे के भविष्य की ज़िम्मेदारी खुद के कंधे पर लेने का फैसला करते हुए मायके में रहना ज्यादा मुनासिब समझा. ससुराल में जो सपोर्ट नहीं मिली उसकी कसर  मायके में पूरी हो गई. अंजू ने पढ़ाई लिखाई से फिर से नाता जोड़ लिया . 2016 में उनको पहली नौकरी मिली और वे मध्य प्रदेश के भिंड के स्कूल में बतौर टीचर पढ़ाने लगीं . इसके बाद राजस्थान और फिर दिल्ली में भी स्कूल टीचर की नौकरी की लेकिन उनका सपना पुलिस अधिकारी बनने का पूरा नहीं हुआ था . उन्होंने इसे पूरा करने की ठानी  चल सका.

अंजू उसके बाद कभी ससुराल नहीं गई. हालांकि उनका तलाक भी नहीं हुआ. यानि अंजू का जीवन सिंगल मदर ( single mother ) जैसा हो गया . यूं उनके बेटे को पालने पोसने में पिता और अन्य परिवारजनों का भरपूर सहयोग रहा . अंजू के पति नित्यानंद की बीमारी के कारण 2021 में  मृत्यु हो गई . इन हालात के बावजूद अंजू ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि खुद को और भी ताकतवर बनाया. उन्होंने राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में बैठने का इरादा बनाया हुआ था .  विधवा  श्रेणी से उन्होंने फॉर्म भरा और उनका चयन भी हो  गया. ट्रेनिंग के बाद सितंबर 2025 में पासिंग आउट परेड के बाद अब बस उनको अपनी पहली पोस्टिंग का इंतज़ार  है . उम्मीद है कि दीवाली के आसपास उनकी तैनाती भी हो जाएगी .